PATNA : गांधी मैदान बम ब्लास्ट के आरोपियों को दोषी करार दिए जाने के फैसले सुनकर पीड़ितों के हरे हुए जख्म, सुनिए पीड़ित परिवारों की जुबानी

  • मृतक और घायलों के परिजन दोषियों को फांसी की सजा चाहते हैं

फुलवारी शरीफ (अजीत)। नरेंद्र मोदी की पटना के गांधी मैदान में आयोजित सभा में हुए बम ब्लास्ट में पटना के गौरीचक के कमरजी गांव निवासी मृतक राजनारायण सिंह और तीन घायलों रामपुकार सिंह, पप्पू सिंह एवं धर्मनाथ सिंह के परिजनों में सरकार के प्रति आक्रोश का माहौल है। बम ब्लास्ट मामले में एनआइए कोर्ट में आरोपियों को दोषी करार देने के फैसले के बाद मृतक और घायलों के परिवार वालों के 7 साल पहले के जख्म हरे हो गए। परिवार वालों का कहना है कि मौत की सजा मौत चाहिये। मृतक और घायलों के परिवार वाले कमरजी गांव में आसपास ही रहते हैं। 7 साल पहले 27 अक्टूबर को पटना के गांधी मैदान में बीजेपी के बड़े नेता नरेंद्र मोदी की सभा में भाषण सुनने आॅटो से गये थे। जहां बम ब्लास्ट में 62 साल के राजनारायण सिंह, पिता स्व. रामदीन सिंह, रामपुकार सिंह, पप्पू सिंह एवं धर्मनाथ सिंह बुरी तरह जख़्मी हुए थे। राजनारायण सिंह की इलाज के दौरान मौत अस्पताल में हुई थी।
राजनारायण सिंह की पत्नी बोली, जिन लोगों ने सुहाग उजाड़ा, उन्हें फांसी मिले
इनकी पत्नी शारदा देवी डबडबायी आंखों से पति को याद करते हुए भावुक हो गयी। पत्नी ने साफ कहा, जिन लोगों ने उनका सुहाग उजाड़ा है, उन्हें कोर्ट फांसी की सजा दे। वहीं राजनारायण सिंह की करीब सौ साल की वृद्ध मां रामपति देवी अब बोल भी नहीं पाती हैं। बेटे के चित्र को निहारती शून्य में खो जाती है। जुबान से बोल नहीं फूटते लेकिन डबडबायी आंखों से दर्द साफ झलकता है। इनके बड़े पुत्र विनोद सिंह गांव में ही खेती करते हैं। विनोद सिंह बेरोजगार हैं। सरकार से रोजगार की मांग करते हैं। वहीं दूसरे पुत्र प्रमोद सिंह और मनोज सिंह दोनों बेटे फौज में हैं जबकि एक पोता विशाल भी चाइना बार्डर पर सेना में ही तैनात है। राजनारायण के बेटे मनोज सिंह का बेटा है विशाल। मनोज सिंह कश्मीर में और प्रमोद सिंह पूंछ में देश के दुश्मनों से लड़ने सेना में पोस्टेड है। आज राजनारायण सिंह की सातवीं बरसी पर घर में उनके फोटो आंगन में रखकर परिजन और गांव वालों ने श्रद्धांजलि दी। परिजनों ने कहा कि राजनारायण सिंह नरेंद्र मोदी के बड़े फैन थे। अखबार पढ़ने गौरीचक बाजार जाना और भाषण सुनने का उन्हें बड़ा शौक था। इसी शौक ने गांव वालों के साथ उन्हें गांधी मैदान खींच ले गया, जहां बम ब्लास्ट में उनकी जान चली गयी। केंद्र और राज्य सरकार से 5-5 लाख की सहायता के अलावा कोई और सहायता नहीं मिला। घटना में राजनारायण सिंह की मौत के बाद परिवार वालों से मिलने कमरजी गांव में नरेंद्र मोदी जी हेलीकॉप्टर से उतरे थे। परिजनों के आंसू पोछे थे और हमेशा मदद का भरोसा दिया था। राजनारायण की पत्नी शारदा देवी एक कॉपी दिखाई, जिसमे नरेंद्र मोदी शत्रुध्न सिन्हा अश्विनी चौबे रविशंकर प्रसाद के हस्ताक्षर किए हुए हैं।
बम से घायल होने के बाद पेट में आज भी बड़ा सा निशान
इसी गांव निवासी रामपुकार सिंह को 27 अक्टूबर को गांधी मैदान ब्लास्ट में पेट में बड़ा जख्म हुआ था। बम से घायल होने के बाद पेट में आज भी बड़ा सा निशान है। रामपुकार सिंह की हालत अत्यंत दयनीय है। इनकी पत्नी नहीं है। एक बेटा गौतम 14 साल का हो गया है और आरा के बबुरा में अपनी फुआ इंदु देवी के घर रहता है। एक बेटी सुखली 20 साल की हो गयी है, जिसकी शादी की चिंता रामपुकार को सताए जा रही है। रामपुकार ने बताया कि 6 लाख खर्च हो गए राजेश्वरी हॉस्पिटल में। सरकार ने कोई मदद नहीं की। केवल पटना डीएम ने 20 हजार रुपये मात्र दिए थे। परिवार की माली हालत ठीक नही थी, तब जमीन बेचकर इलाज कराए थे। रामपुकार बताते हैं कि नरेन्द्र मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए। केंद्र और बिहार में उनकी पार्टी की सरकार है लेकिन आज बम ब्लास्ट के घायलों को देखने और उनकी मदद के लिए कोई सरकार ध्यान नहीं दे रही है। घर के नाम पर दो-तीन टूटे फूटे कमरे हैं। इसके बाहर खुले आसमान में दो गायें और एक बछिया बंधी है। भाई की पत्नी और भतीजियों के सहारे किसी तरह घर परिवार का काम हो पाता है। सरकार के प्रति गहरी नाराजगी है। कहते हैं नरेंद मोदी जी को बम ब्लास्ट में हुए घायलो के रोजी रोटी का इंतेजाम करना चाहिए। बेटी जवान हो गयी है जिसकी शादी के किये भीख मांगने की नौबत आ गयी है। घटना के बाद बड़े-बड़े नेताओं ने घर आकर पूरी मदद का भरोसा दिया था लेकिन कोई ताकने-झांकने भी नहीं आता। गांव में कोई मजदूरी नहीं मिल पा रहा है, जिससे खाने के लाले पड़े हैं। आर्थिक अभाव में बेटी की पढ़ाई नहीं हो पाई। रामपुकार कहते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ का नारा दे रहे हैं लेकिन उनकी बेटी को पढ़ाने के लिए कोई सरकारी मदद नहीं मिली। इलाज में लाखों खर्च हो गए।


बम ब्लास्ट के बाद पैर से ठीक से चलने लायक नहीं रह गया
वहीं इस बम बलास्ट में जख्मी हुए कमरजी गांव निवासी धर्मनाथ सिंह, पिता स्व. द्वारिका सिंह का भी परिवार काफी गरीबी में जी रहा है। धर्मनाथ सिंह बम ब्लास्ट में इस कदर जख़्मी हुए थे कि अब पैर से लंगड़ा कर चलते हैं। बमुश्किल बिजली मैकेनिकल काम करके किसी तरह पत्नी और आठ-आठ बच्चों की परवरिश करते हैं। इनके बड़े भाई जितेंद्र बहादुर सिंह घटना को याद कर फफक पड़े। उन्होंने बताया कि पहले उनका भाई आॅटो चलाता था लेकिन बम ब्लास्ट के बाद पैर से ठीक से चलने लायक नहीं रह गया तब इलेक्ट्रिशियन का किसी तरह काम कर लेता है। निजी हॉस्पिटल में तब धर्मनाथ सिंह के इलाज में तीन लाख खर्च हुए थे। पैर टूट गया था। पैर में रॉड लगा हुआ है उसे निकालने के लिए भी पैसे नहीं हैं। बड़े भाई और पत्नी सहित जमा मोहल्ले वाले धर्मनाथ के पैर में आॅपरेशन के बाद लगा रॉड निकलवाने के लिए सरकार से मदद की गुहार लगाते हुए मीडिया को घेर लेते हैं। पांच भाईयों में चौथे नंबर पर धर्मनाथ हैं। पत्नी अंजलि देवी के साथ बच्ची मानसी कुमारी 13 साल, बेटा 12 साल का शिवा कुमार, प्रेम कुमार 10 साल, सूरज 8 साल, बेटी सोनी कुमारी 5 साल, पायल कुमारी 3 साल, गोद में बेटी अदिति कुमारी डेढ़ साल है। चार बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं, जो स्कूल गए हुए थे। वहीं बाकी छोटे-छोटे हैं जो उस वक्त घर में मौजूद थे। धर्मनाथ के परिवार वाले बम ब्लास्ट के आरोपियों को मौत की सजा की मांग कर रहे हैं।
घायलों को जमीन बेचकर और कर्ज लेकर इलाज कराना पड़ा
इसी गांव में रहने वाले बम ब्लास्ट में तीसरे घायल पप्पू सिंह बैंक में नौकरी करते हैं। परिजन बताते हैं कि सरकारी मदद बीस हजार ही मिली। हाजीपुर इंडियन ओवरसीज बैंक में क्लर्क पप्पू सिंह हाजीपुर ड्यूटी गए थे। पत्नी पत्नी पूनम देवी बच्चे आद्या, आवव्या दोनों बेटी बहुत छोटी-छोटी हैं। पप्पू सिंह की मां धर्मशीला देवी, पति स्व. राम इकबाल सिंह और घर में मौजूद भौजाई व दो बहनों ने कहा, सरकार को घायलों को भी इलाज में खर्च हुई राशि देकर मदद करनी चाहिए थी। डबडबायी आंखों में आंसू लिए पप्पू की मां बम ब्लास्ट के कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए गए आरोपियों को मौत की सजा दिलाने की मांग सरकार से कर रही है। यहां बड़ी संख्या जमा गांव वाले मीडिया पर भी जमकत भड़ास निकालने लगे। गांव वालों का भी कहना था कि बम ब्लास्ट के समय तो नेताओं और अधिकारियों ने मदद करने की बड़ी बड़ी बातें की थी और मीडिया ने काफी हाईलाइट किया था लेकिन जब इलाज में मदद नही मिली तब किसी ने कुछ नहीं किया। घायलों को जमीन बेचकर और कर्ज लेकर इलाज कराना पड़ा। पप्पू सिंह की मां ने बताया कि बेटे के इलाज में निजी अस्पतालों में 7 लाख खर्च हो गए लेकिन सरकार ने मदद नही की।

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