हरियाली तीज के साथ मधुश्रावणी पर्व का समापन, बासी फूल से गौरी व टेमी दागने की है अनोखी प्रथा

  • सावन कृष्ण पंचमी से तृतीया तक हुई गौरी पूजा

पटना। श्रावण कृष्ण पंचमी 28 जुलाई से शुरू होकर हरियाली तीज सावन शुक्ल तृतीया बुधवार को मधुश्रावणी पर्व संपन्न हुआ। मिथिलांचल में विशेष तौर पर इस पर्व को काफी हर्षोल्लाष के साथ मनाया जाता है। इस पर्व में नवविवाहिता बासी फूल से शिव-पार्वती तथा नाग-नागिन की पूजा करती हैं। यह पूजा मायके में होती है तथा इस पूरे अंतराल में लगने वाली सभी सामग्री ससुराल से ही आती है। इस पर्व के प्रथम और अंतिम दिन विशेष विधि विधान होती है। पारंपरिक लोकगीत, विषहरी गीत, नचारी तथा शिव-पार्वती के जीवन चरित्र की कथाएं होती है। इस पूजा में पंडित भी महिलाएं ही होती हैं, जो पूजा करवाने से लेकर कथा वाचन का पूरा दायित्व निभाती है। अंतिम में उन्हें उपहार स्वरूप वस्त्र, फल प्रसाद आदि भेंट दिया जाता है।
बासी फूल से गौरी व टेमी दागने की अनोखी प्रथा
ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने बताया कि मधुश्रावणी पावण में नवविवाहिता पूजा हेतु नाना प्रकार के फूल, पत्र आदि एक दिन पूर्व ही लाती है तथा अगले दिन उसी बासी फूल से माता गौरी तथा महादेव की पूजा कर रही थी। मिथिला में बासी पुष्प से माता पार्वती की पूजा की अनोखी परंपरा है। इस पर्व के अंतिम दिन में विषहरी देवी, नाग-नागिन तथा महादेव के संग गौरी की पूजा के बाद टेमी दागकर पुन: पति द्वारा सिंदूर लगाने के साथ इसका समापन हो गया, चूंकि नवविवाहिता शादी के बाद एक ही बार इस पर्व को मनाती है। इसीलिए इसे काफी खुशनुमा माहौल में इसका निष्पादन करती है। पूजा समाप्ति के उपरांत सुहागिन महिलाओं के साथ अहिवाती पुराई यानि सुहागिन महिलाओं के साथ शुद्ध एवं पवित्र प्रसाद स्वरूप खीर खाकर इस पर्व को पूर्ण की।
प्रेम की प्रगाढ़ता का प्रतीक है मधुश्रावणी
पंडित झा के मुताबिक सावन शुक्ल तृतीया को मधुश्रावणी के अंतिम दिन टेमी दागने की अनोखी परंपरा है। नवविवाहिता के पति दुल्हन के आंखो को पान के पत्ते से ढ़क दिया और दूसरी महिलाएं दीये की लौ से नवविवाहिता के घुटने और पैरों को दागी। इसमें ऐसी मान्यता है कि जितने बड़े फफोले आते हैं, पति-पत्नी के बीच प्रेम उतना ही प्रगाढ़ होता है।
प्रकृति से जुड़ा है शिव का स्वरूप
हरियाली तीज मिट्टी के शिवलिंग एवं मधुश्रावणी में मिट्टी के नाग-नागिन तथा अन्य मूर्तियां बनाकर उसकी पूजा करती हैं। भगवान राम ने भी शिव की बालुकामयी प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा किये थे। यह पर्व प्रकृति से प्रेम व संरक्षण का प्रतीक है। माता पार्वती ने भी शिव को पाने के लिए पार्थिव शिवलिंग बनाकर कठोर तपस्या एवं पूजा की थी।

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