मिथिला पेंटिंग की दिग्गज कलाकार गोदावरी दत्त का निधन, 93 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस
पटना। मिथिला पेंटिंग की शिल्पगुरु मानी जाने वाली गोदावरी दत्त का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। पद्मश्री पुरस्कार सम्मानित गोदावरी दत्त 93 साल की थी। गोदावरी दत्त ने मिथिला पेंटिग को घर से निकालकर देश दुनिया में पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई। काफी वृद्ध होने के बाद भी वह अपनी पेंटिंग के हुनर से ऐसी पेंटिंग बनाती रहीं कि देखने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। गोदावरी दत्त का जन्म एक निम्न मध्यम वर्गीय कायस्थ परिवार में दरभंगा के लहेरियासराय में 1930 में हुआ था। इनका विवाह मधुबनी के रांटी गांव में उपेन्द्र दत्त से हुआ। उन्होंने मिथिला पेंटिंग की परंपरा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया और इसे वैश्विक पहचान दिलाई। उनकी कला की अनूठी शैली और गहरी समझ ने उन्हें इस क्षेत्र का एक प्रमुख चेहरा बना दिया था। जहां से उनकी पेंटिंग्स की यात्रा शुरू हुई। पारिपारिक सूत्राें के अनुसार मिथिला पेंटिंग की चर्चित कलाकार पद्मश्री गोदावरी दत्त का आज दिन के 12 बजे निधन हो गया है। 93 साल की गोदावरी दत्त बीते एक हफ्ते से कोमा में थीं। किडनी खराब हो गई थी। डॉक्टर ने जवाब दे दिया था। पद्मश्री से सम्मानित गोदावरी दत्त को दर्जनों राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। गोदावरी दत्त पिछले 5 दशक से बिहार मधुबनी में मिथिला पेंटिंग पर काम कर रही थी। बड़ी संख्या में लोग मधुबनी पेंटिंग इनसे सीखने आते हैं। उनकी कला को न केवल भारत में, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना मिली। गोदावरी दत्त ने कई अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनों में भाग लिया और मिथिला पेंटिंग को एक वैश्विक पहचान दिलाई। उन्होंने पेरिस, टोक्यो, लंदन और न्यूयॉर्क जैसी कई जगहों पर अपनी कला का प्रदर्शन किया। उनके कार्यों में परंपरा और आधुनिकता का एक अद्वितीय संयोजन देखने को मिलता था, जो उन्हें अन्य कलाकारों से अलग बनाता था। गोदावरी दत्त को उनकी कला के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार भी शामिल हैं। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक कला सृजन किया और नई पीढ़ी को मिथिला पेंटिंग सिखाने के लिए समर्पित रहीं। उन्होंने न केवल अपने गांव, बल्कि देश-विदेश के अनेक स्थानों पर जाकर इस कला का प्रचार-प्रसार किया। उनके निधन से कला जगत में एक गहरी शून्यता उत्पन्न हो गई है। मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में उनका योगदान अद्वितीय है, और वे हमेशा इस कला की दुनिया में एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में याद की जाएंगी। उनके द्वारा सृजित कला कृतियाँ और उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। गोदावरी दत्त का जीवन और उनका कार्य एक मिसाल है, जो हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और उसे आगे बढ़ाने की प्रेरणा देता है। उनका निधन भारतीय कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनकी कला और उनका योगदान हमेशा जीवित रहेगा।