स्वाती नक्षत्र में चैत्र पूर्णिमा 27 अप्रैल को, उसी दिन सिद्धि योग में हनुमत जयंती भी

  • व्रत की पूर्णिमा 26 को, चैत्र पूर्णिमा पर स्नान-दान की है महत्ता

पटना। सनातन धर्मावलबियों के सबसे पवित्र चैत्र मास की पूर्णिमा 27 अप्रैल को स्वाती नक्षत्र एवं सिद्धि योग में मंगलवार को मनायी जाएगी। इसी दिन दक्षिणी संप्रदाय के लोग हनुमान जयंती (दक्षिणात्य) का पर्व मनाएंगे। कोरोना महामारी के कारण गंगा स्नान या अन्य नदी, जलाशयों में स्नान संभव नहीं है। ऐसे श्रद्धालु अपने घरों में ही स्नान जल में गंगाजल मिलाकर हर हर गंगे या गंगे-गंगे कहते हुए स्नान कर व्रत-उपवास तथा भगवान नारायण की पूजा तथा दान-पुण्य करेंगे।
26 को व्रत की पूर्णिमा, स्नान-दान की पूर्णिमा 27 को
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने बताया कि चैत्र पूर्णिमा हिन्दू नववर्ष की प्रथम पूर्णिमा होती है। चैत्र पूर्णिमा को मधु पूर्णम के नाम से भी जाना गया है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदी, तीर्थ में स्नान तथा दान-पुण्य करने से समस्त दुखों से छुटकारा मिलता है। इस दिन भगवान नारायण की पूजा से श्रद्धालुओं को सुख, धन और वैभव की प्राप्ति होती है। इस दिन विष्णु जी के स्वरूप भगवान सत्यनारायण की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। साथ ही इस दिन सत्यनारायण का व्रत करने से जातकों को समस्त प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलता है। हनुमानजी के जन्मोत्सव पर श्रद्धालुओं ने उनके जैसा बल, बुद्धि, ज्ञान, कौशल का समावेश अपने व्यक्तित्व समाहित करने तथा वर्तमान कोरोना महामारी के संकट से उबरने के लिए प्रार्थना करेंगे।
घरों में होगी चालीसा पाठ व कथा-पूजा
चैत्र पूर्णिमा एवं हनुमान जयंती होने पर श्रद्धालुओं अपने घरों में ही हनुमान चालीस, बजरंग बाण, सुंदरकांड आदि का पाठ करेंगे। वहीं भगवान विष्णु के उपासक सत्यनारायण की कथा-पूजा करेंगे। पूजा की शुरूआत प्रत्यक्षदेव भगवान भास्कर को जलार्पण से करेंगे। क्योंकि मान्यता है कि सूर्य के तेज में महामारी को नष्ट करने की क्षमता विद्यमान है। हिन्दू धर्मावलबी हनुमान जी को तेल-सिंदूर का लेप, ध्वज दान, रोट प्रसाद का भोग अर्पण कर अपनी पूजा करेंगे।
मतंग ऋषि के आश्रम में जन्मे थे हनुमान
पंडित झा ने धार्मिक मान्यताओं के आधार पर बताया कि कर्नाटक के हंपी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास मतंग पर्वत है। वहां मतंग ऋषि के आश्रम में ही केसरी नंदन हनुमान का जन्म हुआ था। हंपी का प्राचीन नाम पंपा था। कहा जाता है कि पंपा में ही प्रभु श्रीराम की पहली मुलाकात हनुमान जी से हुई थी। हनुमान जी को भगवान शिव का 11वां रुद्र अवतार माना जाता है। हनुमान जी को संकटमोचन भी कहा जाता है। श्री हनुमान महाराज किष्किंधा नरेश सुग्रीव के महामंत्री भी थे तथा प्रभु श्रीराम-लक्ष्मण से ब्राह्मण के रूप में भेंट करनेवाले सुग्रीव के प्रथम प्रतिनिधि थे।
वाकशैली में निपुण थे हनुमान
ज्योतिषी झा ने बताया कि पवन पुत्र हनुमान की विद्वता भी अतुलनीय थी। उनके गुणगान बारे में ‘श्रीमद्वाल्मीकीयरामायण’ में श्रीराम के मुख से महर्षि वाल्मीकि वर्णन करते हुए कहते हैं नानृवेदविनीतस्च नायजुर्वेद धारिण: नासामवेदविदुष: शक्यमेवं विभाषितुम्॥ (किष्किन्धाकाण्ड/3/28) अर्थात जिसे ऋग्वेद की शिक्षा नहीं मिली, जिसने यजुर्वेद का अभ्यास नहीं किया तथा जो सामवेद का विद्वान नहीं है, वह इस प्रकार सुंदर भाषा में वातार्लाप नहीं कर सकता।
इस स्तुति से होगी हनुमान की प्रार्थना
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहम् दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्य। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥ (श्रीरामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड) अर्थात अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत के समान कान्तियुक्त शरीरवाले, दैत्यरूपी वन के लिए अग्निरूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवन पुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ।

About Post Author

You may have missed