जितिया 2 को, भोलेनाथ ने सुनायी थी माता पार्वती को सबसे पहले कथा

व्रती महिलाएं कल नहाय-खाय के साथ लेंगी महाव्रत का संकल्प

पटना। आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी मंगलवार दो अक्टूबर को आर्द्रा नक्षत्र तथा वरीयान योग में महिलाएं संतान की दीर्घायु एवं वंश वृद्धि के लिए जीमूतवाहन (जीउतिया या जितिया) की पूजा करके चौबीस घंटे का निर्जला उपवास रखेंगी। इस दिन माता लक्ष्मी और मां दुर्गा का पूजन करने का भी विधान है। इस पावन दिवस में कुश से जीमूतवाहन की मूर्ति बनाकर पूजा करने के बाद माताएं ब्राह्मण या योग्य पंडित से जीमूतवाहन की कथा सुनकर उनको दक्षिणा भी देंगी।
कर्मकांड विशेषज्ञ पंडित राकेश झा शास्त्री ने बताया कि माताएं अपने पुत्रों की मंगल कामना एवं दीघार्युष्य के लिए जीवत्पुत्रिका (जीउतिया) का व्रत मंगलवार को आर्द्रा नक्षत्र तथा वरीयान योग में करेंगी। इस उपवास से एक दिन पहले सोमवार को व्रती महिलाएं नहाय-खाय के साथ इस पुनीत व्रत का संकल्प लेंगी। हिन्दू धर्म में इस महाव्रत की खासी महत्ता बताई गई है। नहाय-खाय के दिन माताएं पवित्र नदियों या जलाशय में स्नान करके पूजा आदि के बाद मड़ुआ रोटी, नोनी का साग, कंदा, झिमनी, करमी आदि ग्रहण करेंगी। अगले दिन अष्टमी तिथि को उपवास करके नवमी में पारण करेंगी। इस महाव्रत का पारण व्रती महिलाएं केराव से करेंगी। तीन अक्टूबर को पारण प्रात: 6:08 बजे के बाद होगा। पंडित झा ने कहा कि इस व्रत के पारण से पूर्व अन्न का दान करने से विपन्नता का नाश होता है, साथ ही धन-धान्य की वृद्धि भी होती है।
सरगही- ओठगन सोमवार की रात्रि 2:41 बजे से पहले
ज्योतिषी पंडित राकेश झा ने कहा कि आश्विन कृष्ण सप्तमी सोमवार एक अक्टूबर के रात में 2:41 बजे तक ही सप्तमी तिथि है। व्रत करने वाली महिलाएं इसके पूर्व ही चाय, शरबत, मिष्ठान्न, ठेकुआ, पिरकिया आदि ग्रहण करके पुनीत व्रत का महा संकल्प लेंगी।
मड़ुआ रोटी, नोनी साग के सेवन की महत्ता
राष्ट्रीय पंडित राकेश झा के अनुसार महिलाएं संतान के लिए मड़ुआ रोटी, नोनी साग के सेवन करती है। मड़ुआ एवं नोनी साग उसर भूमि में भी उपजता है। इसी प्रकार उनकी संतान की सभी परिस्थितियों में रक्षा होगी। जिस प्रकार नोनी का साग दिनों-दिन विकास करता है, उसी प्रकार उनके वंश में भी वृद्धि होता है, इसीलिए जीउतिया के नहाय-खाय के दिन इसके सेवन का विधान है।
भोलेनाथ ने सुनायी थी माता पार्वती को कथा
पटना के ज्योतिष पंडित राकेश झा शास्त्री ने कहा कि जीमूतवाहन कि कथा सबसे पहले भोलेनाथ ने माता पार्वती को सुनायी थी। इस कथा में एक चूल्होरिन और सियारिन के द्वारा इस व्रत को करने का वर्णन है। इन दोनों ने जीमूतवाहन का व्रत रखा पर सियारिन को भूख बर्दाश्त नहीं हुई और उसने मांस का भोजन कर लिया। अगले जन्म में दोनों एक ब्राह्मण की पुत्री के रूप में जन्म लिया। चूल्होरिन (अब शीलावती) की शादी उस नगर के राजा के यहां कार्यरत मंत्री से हुई और सियारिन (अब कपूर्रावती) की शादी नगर के राजा मलयकेतु के साथ विधि-विधान से हुई। दोनों बहनों को सात-सात पुत्र हुए लेकिन सियारिन के सातों पुत्रों की मृत्यु हो गई और चूल्हारिन के जीवित रहे। बाद में इसका कारण जानने पर आत्मग्लानि से कपूर्रावती ने प्राण त्याग दिए।

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