जीउतिया : नहाय-खाय बुधवार को, जान लिजिए इतना बजे के बाद नहीं होंगे सरगही-ओठगन
पटना। आश्विन कृष्ण अष्टमी गुरुवार (10 सितंबर) को महिलाएं संतान की दीर्घायु एवं वंश वृद्धि के लिए जीमूतवाहन (जीउतिया या जितिया) की पूजा करके लगभग 32 घंटे का निर्जला उपवास रखेंगी। इस दिन माता लक्ष्मी और मां दुर्गा का पूजा करने का भी विधान है। इस पावन दिवस में कुश से जीमूतवाहन की मूर्ति बनाकर पूजा करने के बाद माताएं ब्राह्मण या योग्य पंडित से जीमूतवाहन की कथा सुनकर उनको दक्षिणा प्रदान करेंगी।
ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा शास्त्री ने बताया कि माताएं अपने पुत्रों की मंगल कामना एवं दीर्घायुष्य के लिए जीवत्पुत्रिका (जीउतिया) का व्रत बुधवार की रात्रि 09:53 बजे से शुक्रवार की सूर्योदय तक तकरीबन 32 घंटे का कठिन व्रत करेंगी। गुरुवार को सुबह 10:39 बजे तक रोहिणी, उसके बाद पूरे दिन मृगशिरा नक्षत्र में जितिया व्रत करेंगी। इस उपवास से एक दिन पहले सप्तमी बुधवार को महिलाएं नहाय-खाए करेंगी। गंगा सहित अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद मड़ुआ रोटी, नोनी का साग, कंदा, झिमनी, करमी आदि का सेवन करेंगी। व्रती स्नान-भोजन के बाद पितरों की पूजा भी करेंगी। बुधवार की रात्रि 09:53 बजे से पहले सरगही-ओठगन करके इस पुनीत व्रत का संकल्प लेंगी। सनातन धर्मावलंबियों में इस व्रत का खास महत्व है। अगले दिन 10 सितंबर अष्टमी तिथि को उपवास करके शुक्रवार 11 बजे की सुबह सूर्योदय के बाद नवमी में पारण करेंगी। इस महाव्रत का पारण व्रती महिलाएं केराव से करेंगी। इस व्रत के पारण से पूर्व अन्न का दान करने से विपन्नता का नाश होता है, साथ ही धन-धान्य की वृद्धि भी होती है।
नहीं होंगे मध्यरात्रि बाद सरगही-ओठगन
पंडित झा ने कहा कि आश्विन कृष्ण सप्तमी बुधवार को रात्रि 09:53 बजे से ही अष्टमी तिथि शुरू हो जाएगा, इसीलिए व्रती कल रात में 09:53 बजे से पहले ही सरगही-ओठगन करेंगी। यह व्रत अष्टमी तिथि का व्रत होता है, इसीलिए इस बार मध्यरात्रि या ब्रह्म मुहूर्त में सरगही-ओठगन नहीं होगा। व्रत करने वाली महिलाएं इस समय में ही भोजन, चाय, शरबत, मिष्ठान्न, ठेकुआ, पिरकिया आदि ग्रहण करके इसी समय से पुनीत व्रत का महा संकल्प लेंगी।
मड़ुआ रोटी, नोनी साग के सेवन की महत्ता
ज्योतिषी झा के अनुसार, महिलाएं संतान के लिए मड़ुआ रोटी, नोनी साग के सेवन करती हैं। मड़ुआ एवं नोनी साग उसर भूमि में भी उपजता है। इसी प्रकार उनकी संतान की सभी परस्थितियों में रक्षा होगी। जिस प्रकार नोनी का साग दिनों-दिन विकास करता है, उसी प्रकार उनके वंश में भी वृद्धि होता है, इसीलिए जीउतिया के नहाय-खाय के दिन इसके सेवन का विधान है।
भगवान शिव ने सुनायी थी माता पार्वती को कथा
पटना के प्रमुख ज्योतिष विद्वान पंडित राकेश झा शास्त्री के मुताबिक, जीमूतवाहन की कथा सबसे पहले भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनायी थी। इस कथा में एक चूल्होरिन और सियारिन के द्वारा इस व्रत को करने का वर्णन है। इन दोनों ने जीमूतवाहन का व्रत रखा पर सियारिन को भूख बर्दाश्त नहीं हुई और उसने मांस का भोजन कर लिया। अगले जन्म में दोनों एक ब्राह्मण की पुत्री के रूप में जन्म लिया। चूल्होरिन (अब शीलावती) की शादी उस नगर के राजा के यहां कार्यरत मंत्री से हुई और सियारिन (अब कर्पूरावती) की शादी नगर के राजा मलयकेतु के साथ विधि-विधान से हुई। दोनों बहनों को सात-सात पुत्र हुए लेकिन सियारिन के सातों पुत्रों की मृत्यु हो गई और चूल्हारिन के जीवित रहे, बाद में इसका कारण जानने पर आत्मग्लानि से कर्पूरावती ने प्राण त्याग दिए।


