राज्य के 17 विश्वविद्यालयों में से 12 विश्वविद्यालयों का एकेडमिक सेशन लेट, समय पर डिग्री ना मिलने से छात्रों की बढ़ी परेशानी

पटना। राज्य के विश्वविद्यालयों का एकेडमिक सत्र पटरी से उतर चुका है। लेटलतीफी का आलम यह है कि कहीं 35 साल से तो कहीं 30 साल से तो कहीं स्थापना काल से ही सत्र लेट चल रहे हैं। 17 विश्वविद्यालयों में 12 में सत्र लेट चल रहे हैं। 2 वर्ष का कोर्स 3 वर्ष और 3 वर्ष का कोर्स पांच या छह वर्ष में पूरा हो रहा है। यह किसी आपराधिक लापरवाही से कम नहीं है। राज्य के करीब 15 लाख छात्र सीधे तौर पर प्रभावित हैं। इन छात्रों का करियर, उनका भविष्य दांव पर है। नौकरी, रोजगार से लेकर देश के अच्छे उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा से छात्र वंचित हैं। ऑल इंडिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन की 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार उच्च शिक्षा में कुल 23,55,469 नामांकन है। वही रिजल्ट लेट होने से छात्रों का सेशन गैप देश के अच्छे संस्थानों में नामांकन नहीं हो पाता, छात्रों को पूरे साल इंतजार करना पड़ता है। छात्र रेलवे, बैंकिंग, यूपीएससी, बीपीएससी की परीक्षा के लिए समय पर फॉर्म नहीं भर पा रहे हैं। सत्र नियमित करने के लिए जल्दी परीक्षा शिक्षा की गुणवत्ता पर असर क्योंकि छात्र बिना कक्षाएं किए परीक्षा में बैठने को मजबूर होते हैं। दूसरे राज्यों में पलायन करने की मजबूरी 2011 की जनगणना के अनुसार बाहर पढ़ने वालों में 14% छात्र बिहार के, यह बढ़ा ही है। वही कुछ विश्वविद्यालयों में यूजी का सत्र बहुत मुश्किल से पटरी पर आया है। वहीं पीजी कोर्स में करीब-करीब सभी विश्वविद्यालयों में सत्र लेट है। वोकेशनल कोर्स में यूजी-पीजी दोनों में सत्र ज्यादातर विश्वविद्यालयों में सत्र लेट चल रहे हैं। खासकर वोकेशनल कोर्स के छात्र, जो रोजगार के लिए ही रोजगारपरक कोर्स करते हैं, उन्हें सत्र लेट होने से नौकरियों में बहुत तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

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