सौम्य व स्थिर योग में पूरा होगा अनुष्ठान, बरसेगी छठी मैया की कृपा

नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व के चार दिवसीय अनुष्ठान कल से शुरू

लोक आस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान आज कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के नहाय-खाय से शुरू हो रहा है। छठ पूजा मुख्य रूप से प्रत्यक्ष देव भगवान भास्कर की उपासना का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ सूर्यदेव की बहन हैं। मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माता प्रसन्न होती है तथा परिवार में सुख, शांति व धन-धान्य से परिपूर्ण करती है।
कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा शास्त्री ने कहा कि सौम्य एवं स्थिर योग में चार दिवसीय छठ महापर्व शुरू हो रहा है। आदित्य ह्रदय तथा रावण संहिता के मुताबिक रविवार को सप्तमी तिथि में सूर्य का प्रभाव एक हजार गुणा अधिक हो जाता है। इस तिथि को गंगा स्नान मात्र से शरीर के सारे कष्टों का नाश हो जाता है और एक सौ अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।

 

छठ महापर्व पर ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग

पंडित झा के मुताबिक आज कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को रवियोग में नहाय खाय के साथ छठ महापर्व शुरू हो रहा है। इस बार छठ महापर्व पर ग्रह-गोचरों के शुभ संयोग बन रहा है। यह पर्व पारिवारिक सुख समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए व्रती पुरे विधि-विधान से छठ का व्रत करेंगी। इस पर्व को करने से रोग, शोक, भय आदि से मुक्ति मिलती है। छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चला आ रहा है। वहीं शनिवार 2 नवंबर को सायंकालीन अर्घ्य पर त्रिपुष्कर योग का संयोग बन रहा है, जबकि 3 नवंबर रविवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य पर सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ-साथ त्रिपुष्कर योग का शुभ संयोग बन रहा है।

आरोग्यता व संतान के लिए उत्तम है छठ व्रत

ज्योतिषी झा के अनुसार सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्यता, सौभाग्य व संतान के लिए किया जाता है। स्कंद पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है। वर्षकृत्यम में भी छठ की चर्चा है।

नहाय-खाय एवं खरना के प्रसाद से दूर होते हैं कष्ट

पंडित झा के अनुसार छठ महापर्व के प्रथम दिन नहाय-खाय में लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल, आंवला की चासनी के सेवन का खास महत्व है। वैदिक मान्यता है कि इससे पुत्र की प्राप्ति होती है वहीं वैज्ञानिक मान्यता है कि गर्भाशय मजबूत होता है। खरना के प्रसाद में ईख के कच्चे रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आँख की पीड़ा समाप्त हो जाते है। वहीं इसके प्रसाद से तेजस्विता, निरोगिता व बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है।

भगवान सूर्य की मानस बहन है षष्ठी देवी

पंडित झा ने अथर्वेद के हवाले से बताया कि षष्ठी देवी भगवान सूर्य की मानस बहन हैं। प्रकृति के षष्टम अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं। उन्हें बालकों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है। बालक के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी मइया की पूजा की जाती है। ताकि बच्चे के दीर्घायु और निरोग रहे। एक अन्य आख्यान के अनुसार कार्तिकेय की शक्ति हैं षष्ठी देवी। षष्ठी देवी को देवसेना भी कहा गया है।

प्रत्यक्ष देव भास्कर को प्रिय है सप्तमी तिथि

पंडित झा ने बताया कि प्रत्यक्ष देव भगवान भास्कर को सप्तमी तिथि अत्यंत प्रिय है। विष्णु पुराण के अनुसार तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य को सप्तमी तिथि प्रदान की गई। इसलिए उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है। सूर्य भगवान अपने इस प्रिय तिथि पर पूजा से अभिष्ठ फल प्रदान करते हैं।

 

नहाय खाय से पारण तक बरसती है छठी मैया की कृपा

ज्योतिषी पंडित झा ने बताया कि छठ महापर्व खासकर शरीर, मन तथा आत्मा की शुद्धि का पर्व है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार नहाय-खाय से छठ के पारण सप्तमी तिथि तक उन भक्तों पर षष्ठी माता की कृपा बरसती है जो श्रद्धापूर्वक व्रत-उपासना करते हैं। प्रत्यक्ष देवता सूर्य को पीतल या तांबे के पात्र से अर्घ्य देने से आरोग्यता का वरदान मिलता है। पंडित झा ने कहा सूर्य को आरोग्य का देवता माना गया है। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता है।

खरना पूजा व अर्घ्य मुहूर्त

खरना का पूजा- संध्या 05: 32 बजे 07:40 बजे तक
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का समय- शाम 05:32 बजे तक
प्रातः कालीन सूर्य को अर्घ्य – सुबह 06:29 बजे के बाद दिया जायेगा

छठ महापर्व के सामग्री का विशेष महत्व

सूप, डाला- अर्घ्य में नए बांस से बनी सूप व डाला का इस्तेमाल किया जाता है। सूप से वंश वृद्धि होती है और वंश की रक्षा होती है।
ईख- ईख आरोग्यता का घोतक है।
ठेकुआ- ठेकुआ समृद्धि का घोतक है।
ऋतूफल- ऋतुफल के फल से विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।

अर्घ्य

सूर्य उपासना के महापर्व में भगवान भास्कर को पीतल के पात्र से दूध तथा तांबे के पात्र से जल से अर्घ्य देना चाहिए। चांदी, स्टील, शीशा व प्लास्टिक के पात्र से सूर्य को अर्घ्य नहीं देना चाहिए।

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