महात्मा गांधी के पोते अरुण गांधी का हुआ निधन, 89 वर्ष की आयु में महाराष्ट्र में ली अंतिम सांस

मुंबई। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पोते अरुण गांधी का मंगलवार को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में निधन हो गया। वह 89 वर्ष के थे। यह जानकारी परिवार के सूत्रों ने दी। परिवार के सूत्रों ने बताया कि वह कुछ समय से बीमार थे। अरुण गांधी के बेटे तुषार गांधी ने बताया कि लेखक एवं सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता अरुण गांधी का अंतिम संस्कार आज कोल्हापुर में किया जाएगा। अरुण गांधी का जन्म डरबन में 14 अप्रैल 1934 को हुआ था। वह मणिलाल गांधी और सुशीला मशरुवाला के पुत्र थे। अरुण गांधी अपने दादा के पदचिह्नों पर चलते हुए एक सामाजिक कार्यकर्ता बने। बताया जाता है कि 1982 में, जब कोलंबिया पिक्चर्स ने गांधी जी के जीवन पर आधारित फीचर फिल्म गांधी जारी की और भारत सरकार ने फिल्म को 25 मिलियन डॉलर की सब्सिडी दी तो अरुण ने यह कहते हुए भारत सरकार की आलोचना की कि पैसे खर्च करने के लिए और भी महत्वपूर्ण चीजें हैं। हालांकि, फिल्म देखने के बाद उन्हें भारत सरकार का फैसला सही लगा। उन्होंने अपना पहला लेख वापस लेते हुए एक और लेख लिखा। जिसमे उन्होंने फिल्म और भारत सरकार की सब्सिडी देने की पहल का स्वागत किया।पढ़ें : हेट स्पीच केस में तुषार गांधी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सनवाई टली1987 में, अरुण गांधी मिसिसिपी विश्वविद्यालय में एक अध्ययन पर काम करने के लिए अपनी पत्नी सुनंदा के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए थे।

उन्होंने मेम्फिस, टेनेसी में एक कैथोलिक शैक्षणिक संस्थान क्रिश्चियन ब्रदर्स यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित एमके गांधी अहिंसा संस्थान की स्थापना की। यह संस्थान स्थानीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर अहिंसा के सिद्धांतों को लागू करने के लिए काम करता है। अरुण गांधी और सुनंदा गांधी को “गांधी की विरासत को अमेरिका में लाने के लिए” पीस एबे करेज आॅफ कॉन्शियस अवार्ड मिला। यह पुरस्कार उन्होंने मशहुर जो बोस्टन में जॉन एफ कैनेडी लाइब्रेरी में प्रदान किया गया था।1996 में, उन्होंने मोहनदास गांधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर के दर्शन और जीवन के वार्षिक उत्सव के रूप में सीजन फॉर अहिंसा की स्थापना की। 2007 के अंत में, अरुण गांधी ने सैलिसबरी विश्वविद्यालय में “व्यक्तिगत नेतृत्व और अहिंसा पर गांधी” नामक एक पाठ्यक्रम पढ़ाया। 12 नवंबर, 2007 को, अरुण गांधी का सैलिसबरी यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर कॉन्फ्लिक्ट रेजोल्यूशन के ‘वन पर्सन कैन मेक ए डिफरेंस’ व्याख्यान श्रृंखला में दिये गये व्याख्यान को आज भी याद किया जाता है।

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