सीएम नीतीश कुमार को लेना पड़ेगा यू टर्न-कृषि मंत्री सुधाकर सिंह कर रहे हैं प्रस्ताव तैयार

राजद के एजेंडे में है पुरानी मंडी व्यवस्था को बहाल करना-पुनर्जीवित होगा कृषि विपणन पर्षद

पटना।(बन बिहारी)।प्रदेश के सीएम नीतीश कुमार को जल्द ही अपने एक बड़े फैसले से यू टर्न लेना पड़ सकता है।दरअसल सत्ता में आने के बाद 2006 में नीतीश कुमार जो भाजपा के साथ बहुमत वाली सरकार में थे।तब उन्होंने बिहार में मंडी व्यवस्था को समाप्त करते हुए बिहार राज्य कृषि विपणन पर्षद को विघटित कर दिया था।जिसके बाद राज्य की 54 कृषि उत्पादन बाजार समितियां समाप्त हो गई थी।अब प्रदेश के नए कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने वापस से मंडी व्यवस्था को आरंभ करने हेतु प्रस्ताव तैयार करने के लिए विभाग को पीत पत्र जारी कर निर्देश दिया है।जिसके बाद उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही कुछ संशोधनों के साथ कैबिनेट में मंजूरी के लिए बिहार राज्य कृषि विपणन परिषद के पुनर्गठन का प्रस्ताव रखा जाएगा।ऐसे में अगर राजद कोटे के मंत्री सुधाकर सिंह बिहार में समाप्त किए गए बिहार राज्य कृषि विपणन पर्षद को पुनर्जीवित करने में सफल हो जाते हैं। तो निश्चित तौर पर बिहार की कृषि व्यवस्था की में यह फैसला एक मील का पत्थर साबित होगा।क्योंकि जिन उद्देश्यों तथा लक्ष्य के तहत बिहार राज्य में कृषि मंडियों को समाप्त किया गया था।वह हासिल नहीं हो सका इसके विपरित इसका नकारात्मक प्रभाव बिहार के कृषि व्यवस्था पर पड़ा। 2006 में बिहार सरकार ने पूर्व की अराजक परिस्थितियों से गठित बाजार समितियों को ब्रिटिश विघटित कर किसानों को कहीं भी उत्पाद बेचने की स्वतंत्रता दी थी।लेकिन इसका कोई इलाज बिहार के किसानों तक नहीं पहुंच सका। उस वक्त नीतीश सरकार ने यह निष्कर्ष निकाला था कि बिहार कृषि उपज बाजार (निरसन) अधिनियम, 2006 की शुरूआत कृषि-बाजारों को स्थापित करने और चलाने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश सुनिश्चित करेगी, जिससे राज्य भारत का कृषि केंद्र बन जाएगा।यह दावा किया गया था कि किसानों को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनाने के लिए बिहार प्रमुख बाजार बुनियादी ढांचे से लैस होगा। लेकिन क्या ये दावे सच हुए?बिहार एपीएमसी अधिनियम के उन्मूलन के बाद भी बिहार की कृषि विपणन प्रणाली कृषि क्षेत्र में कोई निवेश आकर्षित करने में असमर्थ थी।

कृषि सुधार के हिस्से के रूप में, बिहार राज्य कृषि विपणन बोर्ड और राज्य भर के सभी एपीएमसी को समाप्त कर दिया गया।परिणामस्वरूप, बिहार राज्य कृषि विपणन पर्षद को राजस्व की हानि हुई, जिससे राज्य में प्रचलित विकासात्मक गतिविधियाँ कमजोर हो गईं। बिहार राज्य कृषि विपणन पर्षद से एकत्र किए गए राजस्व का उपयोग पहले न केवल इन बाजार यार्डों के आधुनिकीकरण के लिए बल्कि सड़क निर्माण और अन्य बुनियादी ढांचे के विकास के लिए किया जाता था ताकि किसानों की बाजार तक पहुंच बढ़ाई जा सके।इसी तरह, कृषि उत्पादन बाजार समिति अधिनियम को निरस्त करने के बाद, विनियमित कृषि विपणन प्रणाली को एक नए द्वारा बदल दिया गया, जिसके तहत बिहार में विभिन्न प्रकार के बाजार सामने आए।वर्तमान में राज्य के सभी प्रमुख फल और सब्जी उत्पादक क्षेत्रों में थोक बाजार हैं।जो बिना किसी बुनियादी ढांचे के सुबह 7-10 बजे से सड़क किनारे काम कर रहे हैं।हालांकि मार्केटिंग यार्ड अभी भी अस्तित्व में हैं, लेकिन उन यार्डों का प्रबंधन करने वाले निकायों को समाप्त कर दिया गया है और वहां कार्यरत कर्मचारियों को कहीं और तैनात किया गया है।इससे निजी,अनियमित बाजारों का प्रसार हुआ है।जो व्यापारियों के साथ-साथ किसानों से बाजार शुल्क लेते हैं और वजन, छंटाई, ग्रेडिंग और भंडारण के लिए किसी भी बुनियादी ढांचे की कमी होती है।बेईमान व्यापारी अवैध रूप से कृषि उपज की एक बड़ी मात्रा को अन्य राज्यों में ले जाते हैं जो सुनिश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करते हैं। इस प्रकार, किसानों को व्यापारियों की दया पर छोड़ दिया गया।जो बेईमानी से किसानों से खरीदी गई कृषि उपज के लिए कम कीमत तय करने लगे।

वर्तमान कृषि मंत्री सुधाकर सिंह राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र हैं।राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद तथा उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव दोनों के गुड फेथ में हैं।कैबिनेट की पहली मीटिंग में ही उन्होंने अपने तेवर दिखा दिए थे।सीएम नीतीश कुमार को कृषि मंत्री सुधाकर सिंह का तेवर तथा एजेंडा भले ही पसंद ना हो। लेकिन अपने विभाग में प्रस्ताव तैयार करने के लिए पीत पत्र लिखकर उन्होंने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है। किसी मंत्री ने स्पष्ट भी किया है कि राजद की घोषणा पत्र में पहले से पुरानी मंडी व्यवस्था को बहाल करने का उल्लेख है।इतना ही नहीं प्रदेश में धान खरीद के मामले में भ्रष्टाचार रोकने के लिए एकल एजेंसी के खरीद के अधिकार को भी समाप्त करने की दिशा में विभागीय पहल के लिए कृषि मंत्री ने निर्देश दिए हैं। विशेषज्ञों का भी दावा है कि बिहार में पुरानी मंडी व्यवस्था को समाप्त कर देने से कृषि क्षेत्र में किसी प्रकार का लाभ नहीं हुआ है।ऐसे में कृषक बैकग्राउंड से आने वाले किसी मंत्री अगर वापस से बिहार राज्य कृषि विपणन अधिनियम को लागू करना चाहते हैं।तो निश्चित तौर पर उन्होंने प्रदेश के नए कृषि रोडमैप को लेकर ही यह योजना बनाई होगी।अब यहां उल्लेखनीय तथ्य यह है कि क्या सीएम नीतीश कुमार अपने डेढ़ दशक पुराने फैसले से यू टर्न लेने को तैयार होते हैं अथवा नहीं।इस संदर्भ में राजनीतिक विश्लेषकों का भी यही मत है कि महागठबंधन की सरकार में अब राजद के एजेंडे को पूरी तरह से नकार पाना सीएम नीतीश कुमार के लिए संभव नहीं प्रतीत होता है।हालांकि कैबिनेट में जब कृषि विभाग के तरफ से प्रस्ताव पेश किया जाएगा।तब तस्वीर साफ हो जाएगी।

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