सबकुछ दिखाता-बताता है कि छठ महापर्व क्यों है?

फुलवारी शरीफ (अजीत कुमार)। पटना छठ की छटा से निखर गया है. संवर गया है. कह सकते हैं कि साफ सुथरा होकर शहर सा हो गया है. छठ की छटा ऐसी है जिसके हर रंग इंद्रधनुषी हैं. इसमें कुछ रंग लोक-संस्कृति के हैं, कुछ रंग आस्था के हैं, कुछ रंग भक्ति के हैं और सबसे बढ़ कर रंग प्रेम व एकजुटता के हैं. राजधानी का ऑटो स्टैंड हो या फिर मीठापुर बस स्टैंड. पटना जंक्शन हाे या जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा. सभी जगह यह रंग निखर कर सामने आ रहा है. क्या परदेसी और क्या देसी? सबको छठ में अपने घर पहुंचना है, छठ मैया की आराधना में अपनी भागीदारी दर्ज करानी है. कोई सात समंदर पार से आ रहा है तो कोई पास पड़ोस के राज्यों से. लेकिन सबको घर पहुंचने की जल्दी है. शहर के मुहल्लों में नये चेहरे हैं, नयी सजावट है. घरों में दिवाली के सूख चुके वंदनवार नये हो गये हैं. रंग-बिरंगी झालरें और गहरी हो चुकी है. महाभारत काल से शुरू हुई छठी मईया की पूजा और सूर्योपासना का महापर्व को लेकर शुद्धता और स्वच्छता का अमिट संगम देखने को मिलता है। कहा जाता है कि सूर्य पुत्र कर्ण ने सबसे पहले सूर्य देव को कमर तक सरोवर के जल में घंटो खड़े होकर अर्ध्य दिया था जो परंपरा आज भी चली आ रही है। छठ व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है, न पुरोहित की और ना ही गुरु की. जरूरत पड़ती है तो पास-पड़ोस के साथ की, जो सेवा के लिए आसानी से उपलब्ध रहता है. इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की भूमिका निरंतर बनी रहती है. यह सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा भाव और भक्ति भाव से किए गए सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन देखने को मिलता है। छठ गीतों में भी पटना के घाटों और उसकी आस्थाआें का जिक्र है. पटना के घाट पर उगेलन सुरूजमल…झांके झूके… से लेकर पटना के घाट पर देहब हम अरघिया, हम ना जाइब दोसर घाट… की जिद भी है. चौक चौराहों पर दऊरा-सूप-नारियल अभी सजे हुए हैं, जो कोई छूट गया है वो खरीद रहा है. शहर में प्रवेश के हर रास्ते पर नेताजी से लेकर कॉरपोरेट और व्यवसायिक घराने हाथ जोड़कर स्वागत कर रहे हैं. गंगा की ओर जाने के रास्ते पर साइनेज है और घाटों पर सुविधाओं की हेल्पलाइन के नंबर भी हैं. स्वयंसेवी संस्थाएं और राजनैतिक शख्सियत अपनी ताकत के साथ लगे हैं. कोई अपने वोटरों और समर्थकों को साध रहा है तो कोई यह चाह रहा है कि वंचित भी छठ मनाने से कहीं छूट ना जाएं. सबकी कोशिश यही कि वे छठ में भागीदारी से ना छूट जाएं. यह सबकुछ दिखाता-बताता है कि छठ महापर्व क्यों है?

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