मन की आंखे विकसित कीजिए और देखिए स्वर्ग बन गया है देश, गांव गोद में खेल रहे हैं और विकास पालने में झूल रहा है

-अभिषेक मिश्रा

भूख से दम तोड़ने वाली किसी लाश को देखकर अगर आप यह सोंच लेते हैं कि बेचारा बदनसीब था, गरीब था इसलिए दम तोड़ गया, पेड़ से लटके किसी किसान को देखकर यह अंदाजा लगा लेते हैं कि उसकी गरीबी ने उसकी जान ले ली तो आप गलत हैं साहब। करते हैं क्या आप ऐसा? और अगर आप ऐसा करते हैं तो ऐसा करते हुए जिन नेताओं को कोसते हैं उनके बारे में यह जान लिजिए कि उन्होंने गरीबी और गरीबों के लिए खीर और खिचड़ी का इंतजाम कर रखा है। आज हमारा देश भले सोने की चिड़ियां नहीं रहा लेकिन हमारे देश के यह स्वर्णयुग है जहां खिचड़ी और खीर का इंतजाम है। अब ऐसे इंतजाम के बाद भी गरीब दम तोड़ दें तो यह उनकी बदनसीबी है। उन्हें पता होना चाहिए न उस सियासी दावतखाने का जहां खिचड़ी और खीर का इंतजाम है। कसम से बता रहे हैं पड़ोसी पाकिस्तान पर उतना गुस्सा नहीं आता जितना भारत को गरीब देश कहने वालों पर आता है। अरे मुओं जानते क्या हो हमारे बारे में। कमबख्तों हमने तो दुश्मन पाकिस्तान को भी कब से आॅफर दे रखा है छोड़ो ये काश्मीर-वाश्मीर वरना फोकट में चीर दिये जाओगे यार अगर दूध-वूध की जरूरत हो तो बोलो खीर बनाकर देता हूं। सुना है न आपने दूध मांगोगे तो खीर देंगे काश्मीर मांगा तो चीर देंगे। अब स्कूलों की खिचड़ी खाकर कुछ बच्चे मर जांए तो भाई यह उनकी बदनसीबी है क्योंकि हो सकता है सरकारी इंतजामों वाली उच्च कोटि की गुणवत्ता वाली खिचड़ी पचा वाला हाजमा हीं न हो तो बेबजह सरकार पर आरोप। अरे जनाब क्या नहीं किया सरकार ने हमारे लिए और हम हैं कि बस सरकार और नेताओं को दोष देते हैं। 15 लाख दे दिए और हम हैं कि चार साल में सब उड़ा गये एक भी पैसा नहीं बचा पाए अब बताईए सरकार क्या करे? पत्रकार हूं इसलिए सवाल पूछने की गलती कई बार हो जाती है एक बार एक नेताजी से सवाल पूछ लिया था अरे साहब पब्लिक बड़ा बदनाम करती है आप नेताओं को कहती है आप गरीबों के लिए कुछ नहीं करते, मंहगाई बढ़ी है डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़े हैं। सवाल से नेताजी फिरंट हो गये मुझ पर-‘अरे छोड़िए सब आपलोग करवाते हैं। -‘जानते भी हैं हम गरीबों के लिए क्या करते हैं, पेट्रोल-डीजल और मंहगाई की बात करते हैं आप सब गरीब के लिए किये हैं। नेताजी की नाराजगी को देखकर सवाल पूछने की हिम्मत तो नहीं थी लेकिन जवाब पच नहीं रहा था इसलिए यह गुस्ताखी फिर कर बैठा-‘नेताजी यह डीजल पेट्रोल के दाम बढ़ने से भला गरीबों का फायदा कैसे हैं? नेताजी फिर फिरंट थे, कहा-‘हम अध्यादेश लाने वाले हैं कि अब यमराज का भैंसा भी पेट्रोल से चलेगा जितना मंहगा पेट्रेाल होगा यमराज यहां पर उतना हीं कम पधारेंगे और गरीबों की जान बची रहेगी। आप हीं लोग कहते हैं न कि इस देश में गरीबों की जान की कोई कीमत नहीं है, गरीब हीं मरते है तो लिजिए हमने समाधान कर दिया है।

हमने फिर पूछ लिया-‘नेताजी वो खीर मिली नहीं जो आपलोग बनाते हैं इस मंहगाई में सफेद रंग का सिर्फ झूठ हीं देखा है जो आपलोगों की कृपा से नसीब है दूध तो देखा नहीं इसलिए खीर का तो सवाल हीं नहीं उठता इसलिए खीर की हसरत थी लेकिन मिल नहीं रही अगर बन गयी हो तो खिला दिजिए’। नेताजी इस बार बहुत गुस्से में थे-‘तुमलोगों ने राष्ट्रभक्ति नाम की कोई चीज हैं हीं नहीं, देशभक्ति सीखो हमसे। कहां से दू खीर? जानते हो न इ पड़ोसी पाकिस्तान बड़का झमेलाबाज है। काश्मीर तो हम देने से रहे लेकिन खीर का वादा कर बैठे हैं भाई सोंचो अगर उ दूध मांग लिहिस तो अपन को तो खीर देना पड़ेगा न? त तुम देश के लिए अपनी खीर खाने की तमन्ना नहीं छोड़ सकते? नेताजी के जवाब से मैं बहुत प्रभावित हुआ। भला बताईए नेताओं के बारे में न जाने क्या क्या लोग कहते हैं। मुफ्त में बदनाम है नेताओं की दुलर्भ प्रजाति, देश के लिए कितना सोंचते हैं यह लोग, गरीबों की कितनी फिक्र है इन्हें।

अच्छे दिन आ गये, सिटी स्र्माट हो गयी, खीर-खिचड़ी के दावतखाने खुले हंैं, पंद्रह-पंद्रह लाख भी मिल गये हैं। देश स्वर्ग बन गया है लेकिन लोगों को यह स्वर्ग दिखाई नहीं देता न? दिखेगा भी कैसे मन की आंखे नहीं है उनके पास इतना बदलाव और ऐसी स्वर्गरूपी तस्वीर को देखने के लिए तो मन की आखें चाहिए। अब उस अयोग्ता का सरकार क्या करे जो आपके पास है। सरकार मन की बात कर रही है आप इस देश की तरक्की में इतना तो योगदान दिजिए कि मन की आंखे विकसित किजिए और हिन्दुस्तान के इस स्वर्णिम तस्वीर को देखिए जहां अच्छे दिन हैं सबकुछ स्मार्ट है। गांव गोद खेल रहा है, विकास पैदा हो गया पालने में झूल रहा है। यह सब देखिए और सरकार का गुण गाइए और गुण नहीं गाईए तो खीर खाईए और आनंद उठाईए और हां उस दावतखाने का पता सबको दिजिए जहां यह खीर बनती है।

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