सोमवार रात्रि 11:26 बजे तक होगा होलिका दहन, त्रिपुष्कर योग में होली मंगलवार को

पटना। बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार होली मंगलवार को उत्तर फाल्गुन नक्षत्र तथा त्रिपुष्कर योग में मनाई जाएगी। वहीं होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को पूर्वफाल्गुन नक्षत्र में सोमवार को प्रदोष काल से लेकर निशामुख रात्रि 11:26 बजे तक जलाई जाएगी। होली का पर्व हिन्दू धर्म में काफी पवित्र माना गया है। इस दिन रंगों के आगे द्वेष और बैर की भावनाएं फीकी पड़ जाती है। होलिका दहन के दिन होलिका की पूजा की जाती है। महिलाएं व्रत रखकर हल्दी का टीका लगाकर सात बार होलिका की परिक्रमा कर परिवार की सुख-शांति की कामना करती हैं और सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ संतान के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं।
होलिका पूजन से अनिष्टता का होगा नाश
कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने पंचांगों के मत से बताया कि सोमवार को होलिका दहन का शुभ मुहूर्त मिथिला पंचांग के अनुसार प्रदोष काल से मध्यरात्रि तक है। वहीं बनारसी पंचांग के मुताबिक प्रदोष काल से लेकर निशामुख रात्रि 11:26 बजे तक है। प्रात: 06:08 बजे से दोपहर 12:32 बजे तक भद्रा है। इसीलिए होलिका दहन भद्रा के बाद किया जाता है। भद्रा को विघ्नकारक माना गया है। भद्रा में होलिका दहन करने से हानि और अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। पैराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद को होलिका की अग्नि भी नहीं जला पाई थी। उन्होंने बताया कि होलिका की पूजा करते समय “ॐ होलिकायै नम:” मंत्र का उच्चारण करना चाहिए, इससे अनिष्ट कारक का नाश होता है।
होलिका भस्म का होता है खास महत्व
ज्योतिषी झा के अनुसार होलिका दहन की भस्म को काफी पवित्र माना गया है। इस आग में गेहूं, चना की नई बाली, गन्ना को भुनने से शुभता का वरदान मिलता है। होली के दिन संध्या बेला में इसका टीका लगाने से सुख-समृद्धि और आयु की वृद्धि होती है। इसके साथ ही इस दिन ईश्वर से नई फसल की खुशहाली की कामना भी की जाती है। सेंक कर लाये गये धान्यों को खाने से काया हमेशा निरोगी रहती है। घर में माता अन्नपूर्णा की कृपा बनी रहती है।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
पंडित झा ने पुराणों का हवाला देते हुए बताया कि दानवराज हिरण्यकश्यप नामक राजा के पुत्र प्रहलाद उनका नाम जपने के बजाए भगवान श्रीहरि का पूजा और जाप करते हैं। इससे राजा ने क्रुद्ध होकर अपनी बहन होलिका को आदेश देते हैं कि प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, चूंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि अग्नि में उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा। लेकिन भक्त की अटूट भक्ति के कारण ठीक इसका उल्टा हो गया। प्रहलाद उस अग्नि से बच गए और होलिका जलकर भस्म हो गई। होली का पर्व का उद्देश्य है कि भक्तों की रक्षा के लिए भगवान सदा उपस्थित रहते हैं।
होलिका दहन मुहूर्त
सोमवार शाम 06:22 बजे से निशा मुख रात्रि 11:26 बजे तक
राशि के अनुसार करे होलिका की पूजा व परिक्रमा
मेष राशि के लोग गुड़ की आहुति देकर 9 परिक्रमा करें
वृष राशि वाले चीनी की आहुति देकर 11 परिक्रमा करें
मिथुन राशि के लोग कपूर की आहुति देकर 7 परिक्रमा करें
कर्क के लोग लोहबान की आहुति देकर 7 परिक्रमा करें
सिंह राशि के लोग गुड़ की आहुति देकर 5 परिक्रमा करें
कन्या राशि के लोग कपूर की आहुति देकर 7 परिक्रमा करें
तुला राशि वाले कपूर की आहुति देकर 5 परिक्रमा करें
वृश्चिक राशि के लोग गुड़ की आहुति देकर 7 परिक्रमा करें
धनु राशि के लोग जौ और चना की आहुति देकर 7 परिक्रमा करें
मकर राशि के लोग तिल की आहुति देकर 3 परिक्रमा करें
कुंभ राशि के लोग तिल की आहुति देकर 5 परिक्रमा करें
मीन राशि के लोग जौ और चना की आहुति देकर 9 परिक्रमा करें
राशि के अनुसार खेलें होली
मेष- लाल,पीला या सफेद
वृष- सफेद,हरा या नीला
मिथुन- हरा, नीला या सफेद
कर्क-सफेद, पीला या लाल
सिंह- लाल, गुलाबी, पीला या सफेद
कन्या- हरा, नीला या चमकीला सफेद
तुला- सफेद, हरा या नीला
वृश्चिक- लाल गुलाबी, नारंगीया पीला
धनु- पीला, गुलाबी या नारंगी
मकर- नीला, हरा या बैंगनी
कुंभ- नीला, हरा या सफेद
मीन- पीला, गुलाबी, लाल या सफेद

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