शारदीय नवरात्र : शुक्रवार को सुकर्मा योग में खुलेगा माता का पट, भक्तों को देंगी दर्शन

सातवें दिन होगी देवी कालरात्रि की उपासना


पटना। शारदीय नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरुपों की पूजा की जाती है। गुरुवार को देवी के छठे रूप में कात्यायनी माता का पूजन हुआ। वहीं शुक्रवार को सातवें दिन में देवी कालरात्रि की पूजा होगी। आज सभी पूजा पंडालों, मंदिरों एवं घरों में स्थापित माता जगत जननी का विधि-विधान से पूजा करने के बाद वेदोक्त मंत्रोचार के साथ माता का पट खोला जाएगा। कल माता कालरात्रि की पूजा और मध्यरात्रि में महानिशा पूजा की जाएगी। कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा शास्त्री ने पंचागों के हवाले से बताया कि शारदीय नवरात्र के सप्तमी तिथि में माता दुर्गा का पट सुकर्मा योग में प्रात: 07:05 बजे के बाद खोला जाएगा। सूर्योदय के बाद नक्षत्र बदलने पर देवी माता भक्तों को दर्शन देंगी।
आज से शुरू होगा चार दिवसीय विशेष पूजा
पंडित झा ने कहा कि आज आश्विन शुक्ल सप्तमी को माता का पट खुलने के बाद श्रद्धालु अगले चार दिनों तक माता की विशेष आराधना करेंगे। शुक्रवार को पट खुलने के बाद श्रद्धालुओं को माता का विहंगम दर्शन प्राप्त होगा। कल मध्यरात्रि में महानिशा पूजा में माता को प्रसन्न कर उनकी विशेष अनुकंपा पाएंगे। शनिवार को महाष्टमी में माता महागौरी की पूजा के साथ श्रृंगार पूजा भी किया जाएगा। वहीं महानवमी दिन रविवार को सिद्धिदात्री माता का पूजा, दुर्गा सप्तशती पाठ का समापन, हवन, पुष्पांजलि व कन्या पूजन किया जाएगा। आश्विन शुक्ल दशमी सोमवार को विजयादशमी के रूप में मनाएंगे। इसी दिन देवी की विदाई और जयंती धारण किया जाएगा।


देवी के तृतीय नेत्र अंतर्मन से मिलती है सिद्धि
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य ज्योतिर्विद आचार्य राकेश झा के अनुसार, इनके मस्तक पर शिवजी की तरह तीसरा नेत्र है। तीसरा नेत्र हमारे अंतर्मन का प्रतीक है। इसका सीधा सा अर्थ है कि जब हम भक्ति के मार्ग पर चलते हुए ईश्वर के करीब पहुंच जाते हैं तो तीसरी आंख यानी अंतर्मन ही हमें सही रास्ता दिखाता है। जब किसी साधक के साथ ऐसी स्थिति हो जाए तो समझ लेना चाहिए कि वह भक्ति के अंतिम पड़ाव की ओर है, जहां से उसे सिद्धि प्राप्त हो सकती है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार, देवी के इस स्वरूप ने चण्ड-मुण्ड और रक्तबीज सहित कई राक्षसों का वध किया है। देवी कालरात्रि को काली और चामुण्डा भी कहा जाता है। चण्ड और मुण्ड का वध करने के कारण देवी का नाम चामुंडा पड़ा। देवी दुर्गा के क्रोध से ही मां कालरात्रि प्रकट हुई हैं।
देवी के आराधना से दूर होंगे दु:ख व भय
मां कालरात्रि की आराधना विशेष फलदायी होती है। देवी अपने उपासकों को काल से बचाती हैं अर्थात उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती। इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत, प्रेत, राक्षस और सभी नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश, ग्रह-बाधाओं, शत्रुओं से भी छुटकारा दिलाती है। इनके उपासक को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, ात्रि-भय नहीं होता है।
माता का पट खुलने का शुभ मुहूर्त
उत्तराषाढ़ नक्षत्र : प्रात: 07:05से दिन भर
अभिजित मुहूर्त : दोपहर 11:11 बजे से 11: 56 बजे तक

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