PATNA : बिहार IFT की स्थापना के 75 साल होने पर इप्टा के कलाकारों ने कार्यक्रम की शुरुआत, गीत झूम झूम के नाचो आज से की

पटना,फुलवारीशरीफ। आज़ादी के 75वें साल और बिहार IFT की स्थापना के 75 साल पूरे होने की पूर्व संध्या पर रंग बिरंगी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति इप्टा के कलाकारों ने की। कार्यक्रम की शुरुआत शंकर शैलेंद्र के गीत झूम झूम के नाचो आज से हुई। यह मुंबई में इप्टा ने 14 अगस्त 1947 की आधी रात को आज़ादी का जश्न मनाते हुए गया। इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में श्वेत प्रीति, निशा पराशर व नेहा पांडेय ने गीत प्रस्तुत किया। शाकिब ने आमिर अजीज की कविता सब कुछ याद रखा जाएगा का पाठ किया। सुंदरम कुमार ने गोपाल दास नीरज की कविता धर्म है का पाठ किया। आज़ादी के जश्न को मानते हुए अमन ने जवाहर लाल नेहरू की किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया के अंश भारत माता पर गुफ्तगू किया। भारत माता के इस अंश के बहाने अमन ने राष्ट्रवाद के अर्थों को गूढ़ अर्थ को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया। नागार्जुन की चर्चित कविता प्रेत का बयान की नाटकीय प्रस्तुति सूरज, सुमंत और संजय की। सुमंत कुमार ने संजय कुंदन की कविता प्रश्न का सस्वर पाठ किया। कार्यक्रम के तहत अजीमुल्लाह खां के गीत हिंदुस्तान हमारा की प्रस्तुति सीताराम सिंह के निर्देशन में की। गायन में श्वेत प्रीति, निशा पराशर, नेहा पांडेय, पीयूष सिंह और संजय कुमार शामिल थें। संजय कुमार ने नागार्जुन की एक और कविता तेरी खोपड़ी के अंदर का पाठ किया। तनवीर अख़्तर के निर्देशन में बच्चा लाल उन्मेश की कविता कौन जात हो भाई का पाठ संजय कुमार ने किया। कार्यक्रम के अंतिम चरण में साहिर लुधियानवी की नज़्म वो सुबह हमीं से आयेगी का गायन सीताराम सिंह ने निर्देशन में प्रस्तुत किया गया। रशीद जहां के ऐतिहासिक नाटक औरत मर्द की प्रस्तुति तनवीर अख़्तर के निर्देशन में की गई। नाटक शिवानी और शाकिब खां ने अभिनय किया। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता देश कागज़ पर बना नक्शा नहीं होता की प्रस्तुति कल्याण कुमार ने की। 75वीं सालगिरह की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम का समापन गंगा की कसम के गायन से हुई। कार्यक्रम का संचालन पटना इप्टा के सचिव पीयूष सिंह ने किया और धन्यवाद ज्ञापन फीरोज अशरफ खां ने किया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव मंडल के साथी शैलेंद्र ने कहा कि सरकार आज़ादी के 75 साल का जश्न अमृत महोत्सव के रूप में मना रही है। सरकार  यह कौन सा अमृत काल मना रही है जहां लाश गंगा में तैरती हैं। खाने के नाम पर, धर्म के नाम पर ख़ून बहते हैं। नौकरी मांगने वाले देश द्रोही करार दे दिए जाते हैं। लड़के लड़की की दोस्ती के कई नाम दे दिए जाते हैं। अगर यह अमृत काल है तो विष काल क्या होगा? इप्टा की सांस्कृतिक चुनौती को रखांकित करते हुए शैलेंद्र ने कहा कि जब इप्टा बना तो भूख, अकाल और युद्ध था। लेकिन आज नफ़रत, घृणा, हिंसा और अंधेरा है। इसके लिए सांस्कृतिक संघर्ष ही एक मात्र विकल्प है। इप्टा इस संघर्ष के नेतृत्व कर। सांस्कृतिक संघर्ष का नगाड़ा बजाए और फासीवादियों की नींद उड़ा दे।

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