वोटर वेरीफिकेशन पर उपेंद्र कुशवाहा ने उठाए सवाल, कहा- परेशान हो रहे लोग, अधिक समय दे आयोग

पटना। बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण का कार्य जोरों पर है और इसके साथ ही इस प्रक्रिया को लेकर सियासी गर्माहट भी तेज हो गई है। अब इस मामले में एनडीए के घटक दल राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी चिंता जाहिर की है। उन्होंने चुनाव आयोग की ओर से निर्धारित समयसीमा पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इतनी कम अवधि में करोड़ों लोगों के दस्तावेजों का सत्यापन कर पाना संभव नहीं है।
दस्तावेजों की कमी बनी बड़ी बाधा
उपेंद्र कुशवाहा ने अपने बयान में साफ कहा कि बिहार के करोड़ों लोग रोज़गार के सिलसिले में राज्य से बाहर रहते हैं और उन्हें इतने कम समय में अपने दस्तावेजों के साथ हाजिर होना मुश्किल हो रहा है। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके पास आधार, निवास प्रमाण पत्र या जन्मतिथि से संबंधित कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं है। खासतौर से वे लोग जो कभी स्कूल नहीं गए, उनके लिए मैट्रिक सर्टिफिकेट जुटाना भी संभव नहीं है।
गलती से न हटे वैध वोटर का नाम
कुशवाहा ने यह भी चिंता जताई कि कहीं इस जल्दबाजी में उन लोगों का नाम भी मतदाता सूची से न हटा दिया जाए जो वास्तव में वैध वोटर हैं। उन्होंने चुनाव आयोग से अपील की कि इस प्रक्रिया को और पारदर्शी और लचीला बनाया जाए ताकि जनता को अनावश्यक रूप से परेशानी न हो। उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि पुनरीक्षण की समयसीमा को बढ़ाया जाए ताकि सभी मतदाता पूरी तैयारी के साथ अपने कागजात प्रस्तुत कर सकें।
एनडीए के भीतर मतभेद का संकेत
कुशवाहा की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब बिहार में विपक्ष पहले से ही इस मुद्दे पर सरकार और चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा कर रहा है। विपक्षी दलों का कहना है कि मतदाता सूची में व्यापक स्तर पर छेड़छाड़ की आशंका है और यह प्रक्रिया जल्दबाजी में पूरी की जा रही है। वहीं, बीजेपी, जेडीयू, लोजपा और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा जैसी एनडीए की अन्य पार्टियां इस अभियान को एक नियमित और निष्पक्ष प्रक्रिया बता रही हैं। उनका दावा है कि विपक्ष चुनावी हार के डर से इस मुद्दे को तूल दे रहा है।
8 करोड़ मतदाताओं का सत्यापन
गौरतलब है कि बिहार में 25 जून से 26 जुलाई के बीच मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान चलाया जा रहा है। इस दौरान करीब 8 करोड़ मतदाताओं के दस्तावेजों की जांच की जानी है। यह एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती है और समय की सीमित अवधि के कारण प्रक्रिया को लेकर आम लोगों में असमंजस बना हुआ है।
चुनाव आयोग की अगली रणनीति पर निगाहें
अब सभी की नजरें चुनाव आयोग पर टिकी हैं कि वह उपेंद्र कुशवाहा की अपील और विपक्ष के आरोपों को कितनी गंभीरता से लेता है। क्या आयोग समयसीमा को बढ़ाने या प्रक्रिया में कुछ ढील देने पर विचार करेगा, यह आने वाले दिनों में साफ होगा। लेकिन इतना तय है कि कुशवाहा के बयान ने इस मुद्दे को केवल विपक्ष तक सीमित नहीं रखा, बल्कि अब यह एनडीए के भीतर भी बहस का विषय बन गया है। मतदाता सूची की शुद्धता लोकतंत्र की बुनियाद होती है, लेकिन यदि यह प्रक्रिया आम नागरिकों के लिए बोझ और परेशानी का कारण बन जाए तो इसकी समीक्षा जरूरी है। उपेंद्र कुशवाहा की चिंता केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि उन लाखों लोगों की आवाज है जो दस्तावेजों की कमी के कारण अपनी लोकतांत्रिक पहचान खोने के डर से जूझ रहे हैं।

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