डंका बजाने वाले के जीवन में खुशियां नहीं

पटना सिटी (आनंद केसरी)। छठ पर्व पर ऐसे व्रती, जो कोई मन्नत मांगती हैं और उसके पूरा होने पर कोई बैंड बाजा, तो कोई डंका बजाकर घर से घाट या तालाब तक जाती हैं। पटना के शहरी क्षेत्र में डंका बजाने वाले अमूमन नालंदा, शेखपुरा और लखीसराय जिला के विभिन्न एरिया से आते हैं। यह लोग नहाए खाए से लेकर खरना के दिन सुबह ट्रेनों से उतरकर विभिन्न मोहल्ले में डंका बजाते हुए घूमते हैं। उसी दौरान जिनके घर में छठ होता है और वे डंका वाले को रखना चाहते हैं। ऐसे लोगों से बात कर रखते हैं। डंका बजाने वाले श्रीदास, जगदेव रविदास, रंजीत कुमार, दिलीप रविदास आदि बताते हैं कि वे लोग वैसे तो विभिन्न त्योहारों पर अपने ही एरिया में डंका बजाते रहते हैं, मगर खासकर कार्तिक मास के छठ के मौके पर वह पटना शहर आते हैं। यहां उन लोगों को 3 दिनों के डंका बजाने पर बमुश्किल 2000 से 3000 रुपया मिल पाता है। खाना जिनके यहां डंका बजाते हैं, मिलता है। छठ के पारण की समाप्ति के बाद जब व्रती घर लौटती हैं, उसके बाद वे अपनी मेहनत की राशि और प्रसाद लेकर अपने घर को लौट जाते हैं। डंका में वे मोरपंख भी लगाते हैं। उनका पहनावा अलग होता है। पैर में घुंघरू भी होता है। इसी हिसाब से उनका रेट तय होता है। लेकिन डंका बजाने वालों का कहना है कि भले ही पूरा होने की खुशी में शामिल होते हैं, मगर उनका परिवार खुश नहीं रह पाता है। इसके पीछे का कारण यह है कि यह पुश्तैनी धंधा वर्षों से कर रहे हैं, मगर अभाव की जिंदगी जी रहे हैं। काम अवसर के अनुसार मिलता है। खासकर विभिन्न त्योहारों पर ही उन्हें काम मिल पाता है। विवाह के मौके पर भी बहुत कम मिल पाता है या तो फिर उन्हें बैंड बाजा बजाना पड़ता है या फिर अन्य काम करना पड़ता है। जरूरत है डंका बजाने वालों के जीवन में भी डंका बजने की।

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