परिवार, समाज और राष्ट्र के विकास का माइलस्टोन है सहिष्णुता : साध्वी कनकप्रभा

पटना। जीवन-निर्माण के घटक तत्वों में एक बुनियादी घटक है- सहिष्णुता। अच्छा जीवन जीने के लिए सहना जरूरी है। जो सहता है, वह रहता है। जिसमें सहन करने की क्षमता नहीं होती, उसके अस्तित्व को ही खतरा हो जाता है। सहन करना लघुता का नहीं, महत्ता का प्रतीक है। ‘क्षमा बड़न को होत है’ यह कथन निराधार नहीं है। संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उन्होंने बहुत सहन किया है। महावीर, बुद्ध, ईसा, सुकरात, भिक्षु, गांधी, तुलसी आदि महापुरुषों का जीवन सहिष्णुता की जीवंत प्रेरणा है। यह कहना है तेरापंथ धर्म संघ की अष्टम असाधारण साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा का, जो गत 50 वर्षों से नारी चेतना को जागृत करने, स्वस्थ परिवार स्वस्थ समाज के निर्माण का अद्भुत कार्य कर रही हैं।
वे कहती हैं सहिष्णुता के दो रूप हैं- शारीरिक और मानसिक। सामान्यत: शारीरिक कष्ट सहन हो जाते हैं, पर मानसिक कष्ट को सहना कठिन होता है। किंतु यह स्थिति तब आती है, जब शारीरिक कष्टों के साथ मन का योग होता है। शरीर से मन को हटा लिया जाए तो कष्टानुभूति में बहुत अंतर आ जाता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने सफलता के कतिपय सूत्रों की चर्चा करते हुए एक सूत्र दिया- सहन करो, सफल बनो। जीने के लिए अथवा सफल जीवन जीने के लिए सहिष्णुता के अतिरिक्त कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है। परिवार, समाज और राष्ट्र के विकास का माइलस्टोन है सहिष्णुता। विकास शिखर पर आरोहण करने के लिए सहिष्णुता के सोपान का सहारा लेना ही होगा। सहिष्णुता का विकास सबके लिए आवश्यक है। विद्यार्थियों के लिए सहिष्णुता वह चाबी है जो जीवन के अमूल्य खजाने का ताला खोल सकती है।

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