बिहार में महागठबंधन को झटका देगी जेएमएम, 12 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी, घोषणा जल्द

पटना। बिहार की सियासत में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले ही गहमागहमी तेज हो गई है। इसी क्रम में झारखंड की सत्तारूढ़ पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने बिहार में अलग होकर चुनाव लड़ने की तैयारी करके एक नई राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। यह फैसला महागठबंधन के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है, खासकर तब जब विपक्षी दल एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ रणनीति बनाने में जुटे हैं।
इंडिया गठबंधन से दूरी
जेएमएम के केंद्रीय महासचिव और प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी पार्टी बिहार में अपने बलबूते चुनाव लड़ेगी। उन्होंने कहा कि इंडिया गठबंधन ने बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर दो बैठकें कीं, लेकिन झामुमो को इनमें आमंत्रित नहीं किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि जब हमें बुलाया ही नहीं जा रहा तो जबरन हम गठबंधन में शामिल भी नहीं होंगे। यह बयान महागठबंधन के भीतर एक गंभीर संकेत माना जा रहा है कि समन्वय की कमी के कारण क्षेत्रीय दलों में असंतोष पनप रहा है। जेएमएम का यह कदम केवल राजनीतिक स्वाभिमान नहीं, बल्कि अपने जनाधार को विस्तार देने की रणनीति का हिस्सा भी प्रतीत होता है।
पूर्व अनुभव और गठबंधन धर्म का उल्लेख
सुप्रियो भट्टाचार्य ने झामुमो के गठबंधन धर्म के पालन का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि झारखंड में हमने कांग्रेस और आरजेडी को सम्मान दिया। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी को महज एक सीट मिली थी, लेकिन हमने उनके विधायक को मंत्री पद दिया और पूरा कार्यकाल निभाया। अब वैसा ही सम्मान हमें बिहार में भी मिलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जेएमएम का यह तर्क स्पष्ट रूप से महागठबंधन के भीतर असमानता और आपसी विश्वास की कमी की ओर इशारा करता है। झामुमो यह जताना चाहता है कि सम्मान और भागीदारी एकतरफा नहीं होनी चाहिए।
चुनी गईं 12 विधानसभा सीटें
जेएमएम ने बिहार में 12 ऐसी विधानसभा सीटों की पहचान की है जहां वह अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रहा है। इन सीटों में चकाई, तारापुर, कटोरिया, मनिहारी, झाझा, बांका, ठाकुरगंज, रुपौली, रामपुर, बनमनखी, जमालपुर और पीरपैंती शामिल हैं। इन क्षेत्रों में आदिवासी आबादी अच्छी संख्या में है, जो जेएमएम का पारंपरिक जनाधार मानी जाती है। जेएमएम को उम्मीद है कि झारखंड में उसकी सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों और आदिवासी कल्याण की नीतियों का असर इन सीमावर्ती क्षेत्रों में भी दिखेगा। पार्टी पहले भी बिहार में चुनाव लड़ चुकी है और 2010 में चकाई सीट पर जीत दर्ज कर चुकी है, जो उसके आत्मविश्वास को और मजबूत करता है।
स्थानीय नेताओं के साथ तैयारी शुरू
झामुमो ने इन 12 सीटों पर स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें शुरू कर दी हैं। इन बैठकों में प्रत्याशी चयन, प्रचार की रणनीति और संगठन की मजबूती पर चर्चा की जा रही है। पार्टी का लक्ष्य है कि सीमावर्ती जिलों में जनसंपर्क बढ़ाकर झारखंड की उपलब्धियों को मतदाताओं तक पहुंचाया जाए। इस रणनीति से झामुमो न केवल अपनी राजनीतिक पहचान बनाए रखना चाहता है, बल्कि बिहार में भी अपने जनाधार का विस्तार करना चाहता है। यह कदम लंबे समय में पार्टी को क्षेत्रीय राजनीति में और मजबूत कर सकता है।
महागठबंधन के लिए चेतावनी का संकेत
झामुमो के इस फैसले से यह स्पष्ट है कि महागठबंधन के लिए यह चुनाव आसान नहीं होगा। क्षेत्रीय दलों की उपेक्षा और संवादहीनता अगर इसी तरह बनी रही, तो महागठबंधन में दरार आ सकती है। झामुमो जैसे दलों की नाराजगी विपक्षी एकता को कमजोर कर सकती है, जिससे भाजपा को परोक्ष रूप से लाभ मिल सकता है। झामुमो का बिहार में अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय एक बड़ा राजनीतिक संदेश है। यह केवल सीटों की बात नहीं, बल्कि क्षेत्रीय सम्मान और राजनीतिक स्वतंत्रता की भावना से जुड़ा मुद्दा है। यदि इंडिया गठबंधन ने जल्द समन्वय नहीं किया, तो अन्य दलों में भी असंतोष की लहर उठ सकती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि झामुमो अपने दम पर कितनी प्रभावी भूमिका निभा पाता है और यह कदम बिहार की राजनीति को किस दिशा में ले जाता है।

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