59 वर्षो बाद ग्रहों के दुर्लभ संयोग में शुक्रवार को विराजेंगे गणपति, चित्रा नक्षत्र के पुण्य संयोग में मनेगी गणेश चतुर्थी

पटना। सर्व सिद्धि को देनेवाले भगवान गणेश का जन्मोत्सव का त्योहार शुक्रवार को भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चित्रा नक्षत्र व ब्रह्म योग में मनाया जाएगा। रिद्धि-सिद्धि के साथ विघ्नहर्ता गणपति की स्थापना कर पूरे दस दिनों तक गणेशोत्सव मनाया जाएगा। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक इनकी विधिवत पूजा-अर्चना के साथ भव्य आरती की जाएगी। यह महापर्व कल से शुरू होकर 19 सितंबर अनंत चतुर्दशी रविवार को शतभिषा नक्षत्र में संपन्न होगा। इसके अलावे कल रवियोग का पुण्यकारी संयोग भी बना है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार काम सिद्धि के लिए गणेश की उपासना आवश्यक है। वैनायकी गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में विधिवत पूजा के साथ दुर्बा और मोदक अर्पण की जाएगी। इस अति पुण्यप्रद योग में पूजा करने से विद्या-बुद्धि, सिद्धि, समृद्धि, शक्ति एवं सम्मान में वृद्धि होगी।
59 वर्षो बाद ग्रहों के दुर्लभ संयोग में विराजेंगे गणपति
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने बताया कि शुक्रवार को गणेश चतुर्थी के दिन लगभग 59 वर्षों के बाद चित्रा नक्षत्र के साथ चार ग्रहों का स्वयं की राशि में रहेंगे। बुद्धि व वाणी के ग्रह बुध तथा साहस व पराक्रम के कारक वाले मंगल ग्रह कन्या राशि में वही शुक्र एवं चंद्रमा की तुला राशि में युति होगी। सूर्य अपनी राशि सिंह में, बुध भी अपनी राशि कन्या में तथा शनि का स्वयं की राशि मकर में गोचर व दो बड़े ग्रह शनि और गुरु का एक साथ वक्री होने से अतीव पुण्यकारी संयोग बन रहा है।
चन्द्र दर्शन दोष से बचाव
पंडित झा के मुताबिक भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी यानि शुक्रवार की रात में चन्द्रमा को देखना निषिद्ध है, जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। इसीलिए इस दिन हाथ में फल, मिष्ठान या व्यंजन लेकर ही चंद्रदर्शन करना चाहिए। मिथिलांचल में कल चौठचन्द्र की पूजा की जाती है और इसके बाद चंद्रदर्शन किया जाता है। इससे अयोग्यता, उन्नति, सलामती, समृद्धि का वर मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण को इस दिन चंद्र दर्शन से सयमंतक मणि चोरी का मिथ्या आरोप लगा था, फिर नारद मुनि के बताने पर उन्होंने गणेश चतुर्थी का व्रत कर इस दोष से मुक्त हुए थे।
पर्व को लेकर प्रचलित कथा
ज्योतिषी पं. राकेश झा ने कहा कि इस पर्व को लेकर प्राचीन कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार शिव ने क्रोध में गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया था। इसके बाद पार्वती के नाराज होने पर उन्होंने गणेश को नया रूप दिया। बाद में गणेश प्रथम पूज्य देवता बने। शास्त्रों में गणेश की उपासना के कई विधान और शुभ फलदायक बताया गया है। गणपति की पूजा-अर्चना से हर काम पूरा होता है तथा भादो माह में उनकी पूरे देश में उपासना धूमधाम से की जाती है।
मूर्ति स्थापना व पूजा शुभ मुहूर्त
अमृत मुहूर्त : सुबह 08:40 बजे से 10:13 बजे तक
शुभ योग : दोपहर 11:46 बजे से 01:19 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त : मध्याह्न 11:21 बजे से 12:11 बजे तक

About Post Author

You may have missed