जातीय जनगणना कराकर बिहार में फिर जाति के नाम पर लड़वाना चाह रहे मुख्यमंत्री : विजय सिन्हा
- विजय सिन्हा बोले- मोदी सरकार के बनने के बाद देश में जाति का फैक्टर कमजोर हो रहा इसीलिए क्षेत्रीय दल कर रहे जाति जनगणना की मांग
पटना। बिहार में शनिवार से शुरू हो रही जातीय जनगणना की व्यवहार्यता पर भाजपा ने सवाल उठाया है। नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने नीतीश सरकार को जातीय उन्माद को बढ़ावा देने वाला करार देते हुए कहा कि ये सोचने की बात है कि वर्ष 1931 के बाद आजाद भारत में किसी सरकार ने जातीय जनगणना की आवश्यकता क्यों नहीं समझी? केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद मानो जैसे देश में जाति फैक्टर धीरे-धीरे कमजोर होने लगा। लोग विकास की बात करने लगे। तब क्षेत्रीय दलों की जातीय आधारित राजनीति खतरे में पड़ गई। ऐसे दल फिर से समाज को आपस मे लड़ाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते है। उन्होंने कहा कि राम मनोहर लोहिया, महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण और पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने जाति विहीन समाज और भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने की बात की। लेकिन, नीतीश कुमार उसकी जगह जो जातीय उन्माद फैला रहे थे उसी की ओर बढ़ रहे हैं।
राज्य में बेरोजगार सड़कों पर बैठे हैं, और सरकार जाति जनगणना पर 500 करोड़ कर रही : विजय सिन्हा
उन्होंने कहा कि जाति जनगणना पर होने वाला 500 करोड़ के खर्च का क्या मतलब है। राज्य में बेरोजगार युवा सड़कों पर बैठे हैं। बीपीएससी-बीएसएससी के जो प्रतिभावान युवा सड़क पर बैठे हैं उनकी समस्या का समाधान कहां होगा। नीतीश कुमार से विजय सिन्हा ने सवाल किया कि बिहार जब आजादी का शताब्दी वर्ष मनाएगा तो नीतीश राज्य को क्या देना चाहते हैं। जब जरूरत बिहार के विकास की गति बढ़ानी की है तो उस दौर में नीतीश सत्ता प्राप्ति के लिए जाति के नाम पर बिहार को प्रदूषित करना चाहते हैं। जातीय उन्माद पैदा करना चाहते हैं। विजय सिन्हा ने कहा कि बिहार से जो लोग बाहर हैं नीतीश कुमार उनकी चिंता करें। किस कारण पिछले 32 साल में बिहार से लोगों का पलायन हुआ। किसके कारण वह बिहार के छोड़े। विजय सिन्हा कहा कि हमारा नीतीश कुमार से आग्रह होगा कि वे राज्य में हुए करोड़ों लोगों के पलायन के विषय पर बात करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाएं। उन्होंने कहा कि पिछले 32 साल में बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार ही सत्तासीन हैं। इसके बाद भी राज्य में जातीय जनगणना जैसी पहल की गई है जिसका कोई औचित्य नहीं है।