पटना में 12वीं की परीक्षा में एंट्री नहीं मिलने पर छात्रों का हंगामा, यूनिफॉर्म में नहीं आने पर नहीं मिला प्रवेश

पटना। जिले में शिक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक सख्ती के टकराव का एक नया उदाहरण सामने आया है। फुलवारीशरीफ के आदर्श उच्च विद्यालय पलंगा में 12वीं कक्षा की त्रैमासिक परीक्षा के दौरान छात्रों और स्कूल प्रशासन के बीच गंभीर विवाद हो गया। इसका कारण बना छात्रों का स्कूल यूनिफॉर्म न पहन कर आना, जिस पर प्रशासन ने उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। इसके बाद छात्रों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया, जिससे तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो गई।
यूनिफॉर्म नहीं पहनने पर परीक्षा से रोका गया
बुधवार को आयोजित त्रैमासिक परीक्षा में कई छात्र बिना स्कूल ड्रेस के परीक्षा केंद्र पहुंचे थे। स्कूल प्रशासन ने नियमों का हवाला देते हुए उन्हें परीक्षा कक्ष में प्रवेश देने से मना कर दिया। प्रशासन का कहना था कि निर्धारित नियमों के अनुसार छात्रों को निर्धारित यूनिफॉर्म में ही परीक्षा में शामिल होना चाहिए, और यह पहले से तय निर्देशों में स्पष्ट था।
छात्रों का आरोप, बुनियादी सुविधाएं नहीं
छात्रों ने परीक्षा से वंचित किए जाने पर नाराजगी जताई और जमकर हंगामा शुरू कर दिया। उनका आरोप था कि जब विद्यालय में बैठने के लिए उचित व्यवस्था तक नहीं है, तो यूनिफॉर्म जैसी बातों को लेकर इतना सख्त रवैया क्यों अपनाया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि कई छात्र आर्थिक रूप से कमजोर हैं और सभी के पास हर समय यूनिफॉर्म उपलब्ध नहीं होता।
विद्यालय प्रशासन और छात्रों में तीखी नोकझोंक
स्थिति तब और बिगड़ गई जब छात्रों और विद्यालय प्रशासन के बीच तीखी बहस होने लगी। छात्र गेट के बाहर एकत्र होकर नारेबाजी करने लगे और परीक्षा की शुचिता को लेकर विद्यालय की कार्यशैली पर सवाल उठाए। यह विरोध कुछ समय में उग्र रूप ले लिया, जिससे स्थिति को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया।
पुलिस को करनी पड़ी हस्तक्षेप की जरूरत
हंगामे की जानकारी मिलते ही स्थानीय थाना पुलिस मौके पर पहुंची और छात्रों को समझाने का प्रयास किया। पुलिस अधिकारियों ने विद्यालय प्रशासन से भी बात की और मामले को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की कोशिश की। हालांकि, तब तक कई छात्रों की परीक्षा का समय निकल चुका था, जिससे छात्रों में और भी असंतोष फैल गया।
शिक्षा और अनुशासन के बीच संतुलन की जरूरत
यह घटना एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या परीक्षा जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर छात्रों को केवल ड्रेस कोड के आधार पर वंचित किया जाना उचित है। जहां अनुशासन और नियमों का पालन जरूरी है, वहीं शिक्षा के मूल उद्देश्य को ध्यान में रखना भी उतना ही आवश्यक है। विशेष रूप से सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए लचीलापन भी जरूरी है।
प्रशासनिक सख्ती या संवेदनहीनता?
इस पूरे प्रकरण ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या विद्यालय प्रशासन की यह सख्ती समयानुकूल थी या इससे छात्रों का नुकसान हुआ। शिक्षा विभाग को इस पर विचार करना होगा कि अनुशासन के नाम पर छात्रों की पढ़ाई प्रभावित न हो और समय रहते समस्याओं का हल निकाला जाए।
आगे की कार्रवाई पर असमंजस
फिलहाल विद्यालय प्रशासन ने उच्च अधिकारियों को मामले की जानकारी दे दी है और पूरे घटनाक्रम की रिपोर्ट तैयार की जा रही है। यह देखना बाकी है कि जिन छात्रों की परीक्षा छूट गई है, उन्हें दोबारा परीक्षा का अवसर दिया जाएगा या नहीं। कुल मिलाकर, यह घटना बिहार के शिक्षा तंत्र में मौजूद संवेदनहीनता और नियमों की कठोरता के बीच सामंजस्य की कमी को उजागर करती है। आने वाले समय में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए शिक्षा विभाग को मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
