तेजस्वी का नीतीश पर हमला, चुनावी घोषणाओं को बताया चुनावी हड़बड़ी का नाटक, सरकार की नीतियों पर उठाए सवाल

पटना। बिहार की राजनीति में विधानसभा चुनावों की आहट के साथ ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज होता जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और एनडीए सरकार को घेरते हुए उन्हें चुनावी घोषणाओं के जरिये जनता को भ्रमित करने का आरोप लगाया है। सोशल मीडिया मंच एक्स पर दिए अपने बयान में तेजस्वी ने सरकार की हालिया योजनाओं और घोषणाओं को “चुनावी हड़बड़ी का नाटक” कहा है।
चुनावी घोषणाओं पर व्यंग्य
तेजस्वी यादव ने अपने पोस्ट में सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि महागठबंधन की बढ़ती मजबूती और जनता के भीतर बदलाव की भावना देखकर एनडीए खेमे में बेचैनी बढ़ गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री की ‘मानसिक अनुपस्थिति’ में एनडीए गठबंधन अब अव्यवस्थित और घबराहट में फैसले ले रहा है। तेजस्वी के अनुसार, इन घोषणाओं का मकसद महज जनता को लुभाना है, न कि उन्हें जमीन पर उतारना। उन्होंने कटाक्ष करते हुए लिखा कि सरकार अब इतनी डरी हुई है कि हर घर के लिए अलग स्कूल, हर गांव के लिए अलग सूरज, रेलवे स्टेशन, अस्पताल और यहां तक कि हवाई अड्डा तक की घोषणाएं की जा सकती हैं। इस व्यंग्य के जरिए उन्होंने यह संकेत देने की कोशिश की कि सरकार की योजनाएं अवास्तविक और हास्यास्पद हो गई हैं।
नीतीश कुमार की नीतिगत स्थिरता पर सवाल
तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक स्थिरता और कार्यशैली पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने नीतीश के बार-बार शपथ लेने की प्रवृत्ति को लेकर कहा कि जो मुख्यमंत्री पांच साल में पांच बार शपथ लेते हैं, उनसे किसी स्थायित्व की उम्मीद करना व्यर्थ है। तेजस्वी ने यह भी याद दिलाया कि जब नौकरी देने की बात होती थी, तब नीतीश कुमार सवाल करते थे कि पैसा कहां से आएगा। लेकिन अब उनके नाम से हर दिन घोषणाएं और प्रेस नोट जारी किए जा रहे हैं।
विपक्ष की रणनीति में आक्रामकता
तेजस्वी के इस तीखे प्रहार को महज राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने सत्ता पक्ष को यह चुनौती दी है कि चुनावी माहौल में केवल घोषणाओं की बौछार से जनता को प्रभावित नहीं किया जा सकता, बल्कि ठोस नीतियों और उनके परिणामों से ही विश्वसनीयता स्थापित की जा सकती है। महागठबंधन की ओर से यह रुख स्पष्ट करता है कि आगामी चुनाव में वे केवल सरकार की विफलताओं को उजागर नहीं करेंगे, बल्कि जनता से जुड़ी समस्याओं और ठोस विकास की मांग को भी केंद्र में लाएंगे।
जनता के मुद्दों की ओर इशारा
तेजस्वी के बयानों से यह भी स्पष्ट होता है कि वे बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और महंगाई जैसे बुनियादी मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। उन्होंने सरकार से यह सवाल भी पूछा है कि जब पांच साल तक रोजगार और मूलभूत सुविधाओं पर कोई ठोस पहल नहीं हुई, तो चुनावी समय में अचानक घोषणाओं की भरमार क्यों हो रही है?
चुनाव पूर्व राजनीति गरम
तेजस्वी यादव के इस बयान से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, बिहार की राजनीति और भी गर्माती जा रही है। विपक्ष एकजुट होकर सत्तारूढ़ दल को उनके कामकाज और नीतियों के आधार पर कठघरे में खड़ा करना चाहता है। वहीं, एनडीए सरकार इन घोषणाओं के जरिए अपनी छवि को मजबूत करना चाहती है। इस तरह, बिहार की चुनावी राजनीति अब केवल वादों की नहीं, बल्कि उनके पीछे छुपी नीयत और निष्पादन क्षमता की भी परीक्षा बनती जा रही है।

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