नेपाल में फिर आया 5.6 तीव्रता का भूकंप, दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में महसूस किए गए झटके

नई दिल्ली। दिल्ली एनसीआर में एक बार फिर भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। इससे पहले 4 नवंबर को रात 11 बजकर 32 मिनट पर नेपाल में 6.4 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसमें 157 लोगों की मौत हो गई थी। भूकंप का असर भारत में भी देखने को मिला था। दिल्ली-एनसीआर के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और बिहार की राजधानी पटना में झटके महसूस किए गए थे। दिल्ली से लेकर लखनऊ तक धरती हिलने से लोग सहम गए हैं और घरों से बाहर निकल गए। हालांकि भारत में किसी तरह के जान-माल का नुकसान नहीं हुआ था। इससे पहले शुक्रवार देर रात भी भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए थे। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के मुताबिक रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 6.4 मापी गई थी। जानकारी के मुताबिक देर रात 11.32 बजे भूकंप के झटके लगे। भूकंप का केंद्र नेपाल था। वैज्ञानिक रूप से समझने के लिए हमें पृथ्वीद की संरचना को समझना होगा। पृथ्वीन टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। इसके नीचे तरल पदार्थ लावा है और इस पर टैक्टोनिक प्लेट्स तैरती रहती हैं। कई बार ये प्लेट्स आपस में टकरा जाती हैं। बार-बार टकराने से कई बार प्लेट्स के कोने मुड़ जाते हैं और ज्या दा दबाव पड़ने पर ये प्लेरट्स टूटने लगती हैं। ऐसे में नीचे से निकली ऊर्जा बाहर की ओर निकलने का रास्ता खोजती है। जब इससे डिस्टसर्बेंस बनता है तो इसके बाद भूकंप आता है। भूकंप का केंद्र उस स्थान को कहते हैं जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। इस स्थान पर भूकंप का कंपन ज्यादा होता है। कंपन की आवृत्ति ज्यों-ज्यों दूर होती जाती हैं, इसका प्रभाव कम होता जाता है। फिर भी यदि रिक्टर स्केल पर सात या इससे अधिक की तीव्रता वाला भूकंप है तो आसपास के 40 किमी के दायरे में झटका तेज होता है। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भूकंपीय आवृत्ति ऊपर की तरफ है या दायरे में। यदि कंपन की आवृत्ति ऊपर को है तो कम क्षेत्र प्रभावित होगा। भूकंप के बारे में सटीक पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है कि अगर भूकंप सचमुच आ ही जाए, तो हमें क्या करना चाहिए, या क्या ऐसा है, जो हमें हरगिज़ नहीं करना चाहिए। इस वजह से विशेषज्ञ बीच-बीच में ऐसे उपाय सुझाते रहे हैं, जिनसे भूकंप के बाद होने वाले खतरों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार नुकसान को कम करने और जान बचाने के लिए कुछ तरकीबें हैं, जिनसे काफी मदद मिल सकती है।

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