सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग में शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर को, चन्द्र की किरणें बरसाएंगी औषधीय अमृत

पटना। आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में शुक्रवार 30 अक्टूबर को सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग में मनाया जाएगा। शारदीय पूर्णिमा को चन्द्रमा की 16 कलाओं की कलाओं के साथ अपनी शीतलता पृथ्वी पर प्रसारित करता है। इस दिन धन व वैभव की देवी माता लक्ष्मी चंद्रलोक से पृथ्वी पर आती हैं। यह पूर्णिमा सभी बारह पूर्णिमाओं में सबसे सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में औषधीय गुण मौजूद रहते हैं, जिनमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की शक्ति होती है। इस दिन चन्द्रमा से अमृत की वर्षा होती है जो धन, प्रेम और सेहत तीनों प्रदान करती है। प्रेम और कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण भगवान कृष्ण ने इसी दिन महारास रचाया था।
सिद्धि योग में शरद पूर्णिमा से समृद्धि व वैभव
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने बताया कि आश्विन शुक्ल पूर्णिमा शुक्रवार को अश्विनी नक्षत्र व रवियोग व सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग में शरद पूर्णिमा मनायी जाएगी। इस पुण्य फलदायी योग में शुभ व मंगल कार्य करने से कार्य जल्दी सिद्ध होता है। इस दिन संध्या में माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा-अर्चना, श्रीसूक्त का पाठ, कमल पुष्प व कमलगट्टा का अर्पण तथा पूरी रात घी का दीपक जलाने से सुख-समृद्धि, धन लाभ, वैभव एवं ऐश्वर्य में वृद्धि होती हैं। शरद पूर्णिमा के दिन खरीदारी और नए काम आरंभ करना शुभकर होगा।
चन्द्र की किरणें बरसाएंगी औषधीय अमृत
पंडित झा ने कहा कि शरद पूर्णिमा के रात्रि में चंद्रमा की सोममय रश्मियां पेड़-पौधों और वनस्पतियों पर पड़ने से उनमें भी अमृत का संचार हो जाता है। रात में चन्द्र की किरणों से जो अमृत वर्षा होती है, उसके फलस्वरुप घरों के छतों पर रखा खीर अमृत सामान हो जाती है। उसमें चंद्रमा से जनित दोष शांति, रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि और आरोग्य प्रदान करने की क्षमता आ जाती है। यह प्रसाद ग्रहण करने से प्राणी को मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। चंद्र की पीड़ा के कारण जातक को कफ, खांसी, सर्दी-जुकाम, अस्थमा, फेफड़ों और श्वांस के रोग संबंधी परेशानियां रहती है। शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्र का अवलोकन व आराधना तथा शीतल खीर का प्रसाद ग्रहण करने से इन रोगों से मुक्ति मिलती है। जिन विद्यार्थियों का मन पढ़ाई में न लगता हो, वे इस दिन चन्द्र यंत्र धारण करके परीक्षा या प्रतियोगिता में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं।
शरद पूर्णिमा का पौराणिक महत्व
ज्योतिषी झा ने बताया कि आश्विन पूर्णिमा यानि शरद पूर्णिमा देवों के चतुर्मास के शयनकाल का अंतिम चरण होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए सुख, सौभाग्य, आयु, आरोग्य और धन-संपदा की प्राप्ति के लिए इस पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। इस रात को मां लक्ष्मी स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर प्रकट होती हैं। शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की पूजा, विष्णुसहस्रनाम का पाठ, चौमुख दीपक जलाने से श्रद्धालु में घर में सुख शांति, आर्थिक संकटों से छुटकारा, सुख-समृद्धि में निरंतर इजाफा होता है।

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