वाम दल ने सीएम नीतीश को लपेटा: सीएए, एनआरसी और एनपीआर पर भी बहुत कुछ कहा

25 जनवरी को पूरे राज्य में मानव शृंखला का होगा आयोजन, 30 जनवरी को जिला मुख्यालयों पर सत्याग्रह

पटना। सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ चल रहे देशव्यापी आंदोलन की अगली कड़ी में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 25 जनवरी को पूरे राज्य में पांच वाम दल सीपीआई, सीपीआईएम, भाकपा-माले, फारवर्ड ब्लॉक और आरएसपी ने मानव श्रृंखला का आयोजन करने की घोषणा की है। वहीं 30 जनवरी महात्मा गांधी की शहादत दिवस पर जिला मुख्यालय पर एक दिवसीय सत्याग्रह का आयोजन होगा। दोनों रोज देश के अनेक संगठनों-व्यक्तियों के प्लेटफॉर्म हम भारत के लोग द्वारा भी कार्यक्रम की घोषणा की गई है। वामदलों ने बिहार की जनता से इसे ऐतिहासिक बनाने की अपील की है। संवाददाता सम्मेलन को भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल, सीपीआईएम के राज्य सचिव अवधेश कुमार, सीपीआई के विजय नारायण मिश्र, माले पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेन्द्र झा, सीपीएम के गणेश शंकर सिंह ने संबोधित किया। वामदलों ने संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यदि एनआरसी के खिलाफ हैं तो वे एनपीआर पर क्यों चुप्पी साधे हुए हैं? ऐसे सीएए के सवाल पर नीतीश जी का पोजीशन हम सबने देख लिया है और उनकी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की पूरी तरह पोल खुल चुकी है। यदि आप एनआरसी के खिलाफ हैं तो आपको एनपीआर के भी खिलाफ होना होगा। वाम दलों ने मांग किया कि केरल विधानसभा की तर्ज पर बिहार विधानसभा से भी सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया जाए और एनपीआर पर रोक लगाई जाए।
नेताओं ने कहा कि इस बार एनपीआर के फॉर्म में एक अलग से कॉलम जोड़ा गया है जिसमें माता-पिता के जन्म की तारीख भरनी होगी। इससे साफ है कि इसके जरिए संदिग्ध नागरिकों की पहचान की जाएगी और एनआरसी के दौरान उनसे दस्तावेज मांगें जायेंगे। यदि माता-पिता का जन्म स्थान और जन्म तिथि जरूरी नहीं है तो फिर एनपीआर के जरिए यह डाटा क्यों इकट्ठा किया जा रहा है? यह पूरी प्रक्रिया मनमानी है। किसी को संदिग्ध नागरिक घोषित करने के बारे में कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं है। इसका मतलब है कि इसमें भ्रष्टाचार की भी बड़ी गुंजाइश है। कोई स्थानीय अधिकारी किसी को भी संदिग्ध घोषित कर सकता है और संदिग्ध न घोषित करने के लिए घूस मांग सकता है। इसलिए एनपीआर बिलकुल ही अलग चीज है, इसलिए यह कानून गरीबों व वंचित समुदाय के खिलाफ है और भ्रष्टाचार का दरवाजा खोलने वाला है, जो भारतीय लोकतंत्र के सेहत के लिए बहुत खतरनाक होगा। सीएम नीतीश कुमार को इस महत्वपूर्ण सवाल पर बोलना चाहिए और इसका विरोध करना चाहिए। वाम दल ने मांग किया कि बिहार में इसे लागू नहीं किया जाए और विधान के आसन्न सत्र में इस आशय का प्रस्ताव पारित किया जाए।
उक्त नेताओं ने कहा कि असम में पिछले दिन नागरिकता का जो रजिस्टर बना, उसमें बिहार के 73019 प्रवासी मजदूरों की नागरिकता को सत्यापित करने का आवेदन बिहार सरकार को प्राप्त हुआ। उसमें बिहार सरकार महज 17227 मजदूरों का ही सत्यापन कर सकी। 55792 प्रवासी मजदूर आज असम में अपनी नागरिकता खोने के कगार पर हैं, जो लंबे समय से असम में निवास कर रहे हैं। उन्होंने बिहार सरकार से त्वरित पहल कदमी लेते हुए सभी प्रवासी मजदूरों की नागरिकता सत्यापित करने की गारंटी देने की मांग की।
वाम दल ने सीएम नीतीशके ड्रीम प्रोजेक्ट जल जीवन हरियाली योजना पर कहा कि आज पूरे बिहार में उक्त योजना के नाम पर नीतीश कुमार दरअसल गरीब उजाड़ो अभियान चला रहे हैं। आहर-पोखर-नहर इत्यादि की जमीन पर बसे गरीबों को हटने की नोटिस थमा दी गई है। हर कोई जानता है कि इस तरह की जमीन पर वास्तव में भू स्वामियों और दबंगों का कब्जा है। इन दबंगों पर तो सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है लेकिन गरीबों को निशाना जरूर बना रही है। पूर्वी चंपारण से लेकर के राज्य के दूसरे हिस्सों में भी गरीबों पर कहर ढाया जा रहा है। हम सरकार के इस कदम की कड़ी आलोचना करते है। साथ ही बिहार सरकार के 19 जनवरी को आयोजित मानव श्रृंखला की बिहार की जनता से बहिष्कार करने की अपील करते हैं।

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