नवरात्र के दूसरे दिन हुई माता ब्रह्मचारिणी की पूजा, तृतीया को मां चन्द्रघंटा की उपासना
पटना। शनिवार से शुरू हुए शारदीय नवरात्र में रविवार को श्रद्धालु आवाहित देवी-देवताओं के पूजन के बाद नवदुर्गा में द्वितीय ब्रह्मचारिणी माता की पूजा पूरे विधि विधान से किया। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या तथा चारिणी का मतलब है आचरण करने वाली देवी। इस माता के हाथ में अक्ष माला और कमंडल धारण की है। भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद् के सदस्य आचार्य राकेश झा ने बताया कि माता ब्रह्मचारिणी की पूजा से ज्ञान, सदाचार, लगन, एकाग्रता व संयम रखने की शक्ति प्राप्त होती है। श्रद्धालु अपने कर्म पथ से नहीं भटकता है तथा दीर्घायुं होता है। कलियुग में समस्त कामनाओं को सिद्ध करने वाली माता दुर्गा अपने भक्तों का दु:ख, दरिद्रता, भय, रोग का नाश तथा निर्भयता, सुख-ऐश्वर्य, यश, कामना व सिद्धि प्रदान करती है। मान्यता है कि देवी माता अपने शरणागत का हमेशा रक्षा व कल्याण करती है।
कल होगी मां चन्द्रघंटा की उपासना
पंडित झा ने कहा कि शारदीय नवरात्र के तृतीया तिथि को माता चंद्रघंटा की उपासना होती है। मां चंद्रघंटा का रूप बहुत ही सौम्य है। मां को सुगंध अति प्रिय है। उनका वाहन सिंह है। उनके दस हाथ हैं। हर हाथ में अलग-अलग शस्त्र हैं। वे आसुरी शक्तियों से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। देवी चंद्रघंटा की आराधना करने वालों का अहंकार नष्ट होता है तथा सौभाग्य, शांति एवं वैभव की प्राप्ति होती है।
देवी की पूजन से कांति-गुण में होगी वृद्धि
माता चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना से देवी अपने भक्तों के सर्व पाप हर लेती हैं और उसके काम के बीच आने वाली बाधाओं को नष्ट करती हैं। मां चंद्रघंटा सिंह पर सवार हैं, इसलिए इनकी पूजा करने वाला पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। मां चंद्रघंटा के माथे पर अर्धचंद्र सुशोभित है, इसलिए इनकी आराधना से स्वभाव में विनम्रता तो आती ही है, साथ ही मुख, नेत्र और संपूर्ण काया में कांति-गुण में वृद्धि होती है। इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है।
उपासना से भूलोक व परलोक में देवी करेंगी कल्याण
पंडित झा ने कहा कि भगवती चंद्रघंटा की उपासना करने से उपासक को आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है और जो श्रद्धालु इस दिन श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक दुर्गा सप्तसती का पाठ करता है, वह संसार में यश, कीर्ति एवं सम्मान को प्राप्त करता है। माता चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना भक्तों को सभी जन्मों के कष्टों और पापों से मुक्त कर भूलोक तथा परलोक में कल्याण करती है। भगवती अपने दोनों हाथों से साधकों को चिरायु, सुख-संपदा और रोगों से मुक्त होने का वरदान भी देती हैं।
माता चन्द्रघंटा का मंत्र
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्र कैयुर्ता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।