जयद-रवियोग के युग्म संयोग में नागपंचमी 25 जुलाई को, ऐसे होता है सर्प भय दूर

पटना। सावन शुक्ल पंचमी यानि नागपंचमी का पर्व 25 जुलाई (शनिवार) को उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र व परिघ योग में मनाया जाएगा। इस युग्म संयोग में नाग पूजा करने से काल सर्प दोष से मुक्ति का अत्यंत श्रेष्ठ समय माना जाता है। नागों के प्रजातियो में अनंत, वासुकि, शेष, पद्मनाभ, कंबल, कर्कोटक, अश्व, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालीय तथा तक्षक प्रमुख है। देवी भागवत में प्रमुख नागों का नित्य स्मरण किया गया है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, हमारे ऋषि-मुनियों ने नागोपासना में अनेक व्रत-पूजन का विधान बताएं है।
जयद व रवियोग का युग्म संयोग
कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा शास्त्री ने बताया कि इस दिन जयद योग के साथ रवियोग के होने से और उत्तम हो गया है। भविष्य पुराण के अनुसार नागपंचमी के दिन घर के मुख्यद्वार पर गाय के गोबर से नाग की आकृति बनाकर उसकी पूजा करने से सर्प भय दूर हो जाता है। इस दिन नाग पूजन का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त सुबह 11:29 बजे से शाम 06:55बजे तक है। जहां सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को उत्तर भारत में नाग पूजा की जाती है, वहीं दक्षिण भारत में यह पर्व कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है।
नाग के बारह स्वरूप की होगी पूजा
भविष्य पुराण के अनुसार सावन महीने की पंचमी नाग देवता को समर्पित है। इस दिन सर्पों के 12 स्वरूपों की पूजा की जाती है। भगवान भोलेनाथ को सर्प अत्यंत प्रिय हैं, इसीलिए उनके प्रिय माह सावन में नाग पंचमी का त्योहार आता है। नाग जाति के प्रति श्रद्धा एवं सम्मान का प्रदर्शन करते हुए दूध-लावा चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है। सर्प जाति की भी पूजा करना और उन्हें भी देव सदृश्य मानना केवल और केवल सनातन धर्म की उदत्त भाव परंपरा में संभव है। यह बल-पौरुष, तर्कशक्ति के परीक्षण का पर्व है, जिसे श्रद्धापूर्वक विधि-विधान से मनाने पर भगवान शिव प्रसन्न हो कर मनचाहा वरदान देते हैं। नाग पंचमी का पर्व नागों के साथ जीवों के प्रति सम्मान, उनके संवर्धन एवं संरक्षण की प्रेरणा देता है।
नाग पूजन से अक्षय पुण्य व कालसर्प दोष के मुक्ति
ज्योतिषी झा ने बताया कि गरूड़ पुराण के अनुसार सावन के कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष को नागपंचमी के दिन व्रत भी रखते हैं। व्रत करने वाले श्रद्धालु मिट्टी या आटे का सर्प बनाकर उन्हें विभिन्न रंगों से सजाते हैं और सजाने के बाद फूल, खीर, दूध, लावा, धुप, दीप आदि से उनकी पूजा करते हैं। नाग देवता को पंचमी तिथि का स्वामी माना जाता है। इस दिन सर्प के प्रकोप से बचने के लिए नाग पंचमी की पूजा की जाती है। जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष है उन्हें इस दिन नाग देवता की पूजा करनी चाहिए, इस दिन पूजा करने से कुंडली का यह दोष समाप्त हो जाता है। नाग पूजा के बाद “ॐ भुजंगेशाय विद्महे, सर्पराजाय धीमहि, तन्नो नाग: प्रचोदयात” मंत्र से इनकी प्रार्थना करने से सर्पदोष एवं कालसर्प दोष के मुक्ति मिलती है। इस दिन सर्पों को दूध से स्नान और पूजन कर दूध से पिलाने से अक्षय-पुण्य की प्राप्ति होती है।
मनसा देवी की पूजा
पंडित झा ने कहा कि उत्तरी भारत में नाग पंचमी के दिन मनसा देवी की भी पूजा की जाती है। देवी मनसा को नागों की देवी माना गया है। इसीलिए बंगाल, उड़ीसा और अन्य क्षेत्रों में मनसा देवी के दर्शन व उपासना भी किया जाता है। नागपंचमी पर रुद्राभिषेक का भी अत्यंत महत्व है। पुराणों के अनुसार पृथ्वी का भार शेषनाग ने अपने सिर पर उठाया हुआ है इसलिए उनकी पूजा का विशेष महत्व है। ये दिन गरुड़ पंचमी के नाम से भी प्रसिद्ध है और नाग देवता के साथ इस दिन गरुड़ की भी पूजा की जाती है।
कुंवारों के लिए खास
पंडित झा ने कहा कि इस नाग पंचमी कुंवारों के लिए खास संयोग है। शिव की सच्चे मन से पूजा करने से उनका विवाह शीघ्र हो जायेगा। जलाभिषेक, रुद्री पाठ तथा ॐ नम: शिवाय का जाप करने से शिव जी मनचाहा वरदान भी देंगे, जो विवाहित है उन्हें सुखमय वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होगा। इस सोमवारी पर रुद्राभिषेक, शिवसहस्रनाम, शिव पंचाक्षर, शिव महिम्न, रुद्राष्टक, शिव कवच तथा शिव तांडव स्त्रोत्र का 108 बार पाठ करने से दरिद्रता का ह्रास और शिव की विशेष कृपा प्राप्त होगी।

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