अपनी हालात पर आंसू बहा रहा पटना के पालीगंज का अति प्राचीन सड़क

  • स्वतंत्रता के पूर्व एकमात्र सड़क थी पालीगंज के दक्षिणी इलाकों व मशहूर समदा मेला जाने का

पालीगंज (वेद प्रकाश)। स्वतंत्रता के पूर्व पटना जिला के पालीगंज अनुमंडल सह प्रखंड क्षेत्र के दक्षिणी इलाकों व समदा गांव स्थित भारत का दूसरे सबसे बड़े छोटन ओझा मवेशी मेला तक पहुंचने का एकमात्र सड़क अपनी हालात पर आंसू बहा रही है। इस सड़क का अपना निजी जमीन होने के बावजूद भी इस ओर किसी भी जनप्रतिनिधि या अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट नहीं हुआ। फिलहाल कुछ दिनों पूर्व सड़कों का निरीक्षण करने पहुंचे पथ निर्माण मंत्री नितिन नवीन ने भी इस सड़क की सुधि लेना मुनासिब नहीं समझा। जबकि इस सड़क के निर्माण कराने की मांग को लेकर बीते विधानसभा चुनाव के दौरान निरखपुर व सिद्धिपुर सहित कई गांव के लोगों ने वोट बहिष्कार भी किया था।
गौरतलब है कि यह सड़क पालीगंज से निकलकर निरखपुर, गौसगंज होते हुए किंजर के पास अरवल-जहानाबाद मुख्य सड़क से मिलती है। इस सड़क के मध्य गौसगंज गांव के पास से दो किलोमीटर पूर्व की ओर निकली सड़क समदा गांव स्थित भारत के दूसरे सबसे बड़े छोटन ओझा मवेशी मेला को जोड़ती है। इस सड़क की कुल लंबाई 16 किलोमीटर है, जिसकी 80 फुट चौड़ी अपनी निजी जमीन है। इस सड़क पर झाड़ीनुमा घास उग आए हैं। अगले वर्ष मनरेगा के तहत इस पर मिट्टी भरे गयी थी लेकिन बरसात में मौसम में इस सड़क से गुजरी ट्रैक्टरों ने इसकी दुर्दशा कर दी है। अभी इस सड़क से साइकिल तो क्या पैदल भी चलना मुश्किल हो गया है। पालीगंज से किंजर चौक की दूरी इस सड़क से होकर मात्र 16 किलोमीटर है। किंजर चौक से होकर एक ओर अरवल तो दूसरी ओर जहानाबाद जिले को मिलनेवाली मुख्य सड़क जाती है। वहीं एनएच 139 मुख्य सड़क टेकरी होकर गया व बोधगया को जाती है। अभी किसी भी सड़क से होकर पालीगंज से किंजर पहुंचने में बाइक से एक घंटे समय लगती है। जबकि इस सड़क को बन जाने पर मात्र 20 से 30 मिनट में पालीगंज से किंजर पहुंचा जा सकता है।
ज्ञात हो कि पहले इस सड़क के अलावे दक्षिणी इलाके के लोगों को पालीगंज जाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं था। इसी रास्ते से होकर कई राज्यों के व्यापारी समदा मेले में व्यवसाय करने आते थे। लेकिन भारत को स्वतंत्र होने के बाद इस इलाके से पैगम्बरपुर गांव निवासी कन्हाई सिंह को जनता ने जिताकर विधायक बनाया। जिन्होंने इस सड़क पर ध्यान देने के बजाए एक पगडंडी को सड़क में तब्दील कर पालीगंज से खिरिमोड़ होते हुए अतौलह तक निर्माण कराया। उसके बाद लोग इस कच्ची सड़क के बजाए ज्यादा दूरी तय कर पालीगंज पहुंचने पर मजबूर हो गए। वहीं दस वर्षों पूर्व जन प्रतिनिधियों ने मदारीपुर गांव से एक अन्य पगडंडी को सड़क में तब्दील कर पाली-चंदोस मुख्य सड़क से जोड़ दिया। अब उसी सड़क से इस इलाके के लोग पालीगंज आते-जाते हंै। वहीं इस क्षेत्र से शेरे बिहार की उपाधि लेकर रामलखन सिंह यादव व चंद्रदेव प्रसाद वर्मा केन्द्रीय मंत्री तक बने लेकिन सड़क पर मिट्टी तक नहीं दिलाये। बिहार में विकास की बह रही हवा में कई छोटे-बड़े सड़के बनी, जिसकी अपनी निजी जमीन तक नहीं था। लेकिन इस सड़क का निजी जमीन के अलावे सब कुछ होने के बावजूद भी कायाकल्प तक नहीं हो पाया।
ग्रामीणों का कहना है कि इस इलाके से जीतकर रामकृपाल यादव भाजपा की केंद्र सरकार में ग्रामीण राज्य विकास मंत्री भी बने, जो आज सांसद हैं। जिनसे कहने पर वे बार बार यही कहते हैं कि कार्य प्रोसेस में है लेकिन कार्य धरती पर दिखाई नहीं दिया। जबकि उनसे सड़क निर्माण की मांग वर्षों पूर्व से की जा रही है। वहीं स्थानीय विधायकों ने तो चुप्पी साध ली है। चुनाव के समय सैकड़ों छोटे-बड़े नेताओं ने बनवाने का वादा किया लेकिन बाद में सभी भूल गए। इससे एक कहानी सिद्ध होती है कि “पतझड़ के मौसम में पत्तियां टूट जाती है व समय गुजरने पर वादे भूल जाते हैं।”

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