न्यायिक नियुक्तियों में दिव्यांग आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर, अदालत ने राज्यों से मांगा जवाब

नई दिल्ली। प्रधान न्याधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच के सामने दिव्यांगों (पीडब्ल्यूडी) के लिए जिला न्यायपालिका की न्यायिक नियुक्तियों में चार प्रतिशत आरक्षण सहित अन्य राहत देने की मांग को लेकर एक जनहिता याचिका पहुंची थी। मंगलवार को उस जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और सभी उच्च न्यायालयों से जवाब मांगा है। जनहित याचिका में दिव्यांगों के अधिकारों से संबंधित कानून के अनुसार न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति के लिए मौजूदा न्यायिक सेवा के नियमों को ठीक करने के लिए केंद्र और अन्य को निर्देश देने की मांग की गई है। प्रधान न्याधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले दो याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख की दलीलों पर गौर किया। याचिका में कहा गया है कि दिव्यांग जन अधिकार (आरपीडब्ल्यूडी) अधिनियम, 2016 के तहत न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति में दिव्यांग व्यक्तियों को उनका हक नहीं मिल रहा है। वर्ष 2016 का कानून एक विशेष कानून है जिसे दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों के संयुक्त राष्ट्र के समझौते को प्रभावी बनाने के लिए लागू किया गया है, जिसमें विशेष रूप से उनके सशक्तीकरण के लिए वहां निर्धारित सिद्धांतों के अलावा गैर-भेदभाव और समानता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कानूनी प्रावधान हैं। वकील शशांक सिंह के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि विधायिका ने यह उचित समझा कि वैधानिक प्रावधान के तहत दिव्यांगजनों के लिए आरक्षण चार प्रतिशत से कम नहीं होगा। जनहित याचिका उत्तर प्रदेश के नोएडा निवासी रेंगा रामानुजम और बेंगलुरु सुम्मैया खान द्वारा दायर की गई है। याचिका में कहा गया, ‘‘याचिकाकर्ता दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 33 के साथ पठित धारा 34 के आदेश के अनुसार अनिवार्य दिव्यांग कोटा के तहत जिला/निचली न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए विभिन्न राज्यों/उच्च न्यायालयों के मौजूदा न्यायिक सेवा नियमों को सही करने या सुव्यवस्थित करने के लिए इस माननीय न्यायालय से प्रतिवादियों को निर्देश देने के लिए वर्तमान याचिका दायर करने के लिए बाध्य हैं।’’ जनहित याचिका में कहा गया है कि निचली न्यायपालिका में न्यायिक नियुक्तियों में दिव्यांगजनों के लिए कोटा चार प्रतिशत से कम नहीं होना चाहिए, जैसा कि अधिनियम की धारा 34 के तहत अनिवार्य किया गया है।

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