विरोध के स्वर को जगह देकर ही सही लोकतंत्र चल पाएगा: नरेंद्र सिंह

पटना। बिहार की राजनीति के कद्दावर नेता सह पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह ने देश भर में अभी चल रहे राजनीतिक परिवेश पर टिप्पणी करते हुए कहा की सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है उसे जनता के वोटों से जीत कर आए लोगों को स्वीकार करना चाहिए। लोकतंत्र का विस्तार और उसका मजबूत होना इस बात पर निर्भर करता है कि वह कितने संवेदनशील ढंग से अपने समाज और जनता की असहमतियों और उनके प्रतिरोधों को सुनता और समझता है और फिर उनसे संवाद भी करता है। बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय ने जो पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामले में एक महत्वपूर्ण सुझाव टिप्पणी के रूप में सरकार को दिया है। अदालत ने कहा है कि असहमतियों और विरोधियों को जगह दे नहीं तो असंतोष इकट्ठा होकर कहीं से ही फट सकता है। जैसे ज्यादा देर बंद करने पर प्रेशर कुकर फट जाता है। यह चेतावनी और सुझाव लोकतंत्र के लिए बहुत ही मूल्यवान है। वाद विवाद संवाद और सहमतियों-प्रतिरोध आदि सब को सुन-समझ कर जगह देकर ही लोकतंत्र शक्तिमान बनता है। सामाजिक विचारक इस बात को हमेशा से कहते रहे हैं। यह एक सुझाव है कि इसे जनता के वोटों से सत्ता में पहुंचने वाले वर्ग को गांठ बांध लेना चाहिए। भारतीय लोग समाज में विशेष रूप से ऐसे लोक उत्सव-लोक अवसर बनाए गए हैं। जहां जनता अपने शासकों और सत्ता के विरुद्ध अनेक रूपों में प्रतिरोध दर्ज कराती है और शासक समुदाय उन्हें कहने सुनने और प्रदर्शित करने का मौका देता है। प्रसिद्ध संस्कृति वेता मिखाइल बॉरवतन ने ऐसे लोक त्योहारों को समाज के लिए सेफ्टी वाल्व कहा है। जिसके कारण समाज में विभिन्न समुदाय अपना विरोध, प्रतिरोध और शिकायत दर्ज करा कर भी सह अस्तित्व में बने रहते हैं। भारतीय समाज में प्रचलित अनेकों लोकगीतों-मुहावरों में अपने शासकों और अधिपत्य वाले सबको के प्रति प्रतिरोध का भाव व्यक्त होता रहता है। ऐसे ही प्रतिरोधों को अपने में जगह देकर भारतीय समाज क्षमा हारी और समरस बना हुआ है। इसे क्षत-विक्षत करना लोकतंत्र और संविधान के प्रति घोर अन्याय होगा।

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