आस्था का केंद्र : बारह अर्क स्थलों में एक है पटना का ओलार्क सूर्य मंदिर, द्वापर युग से है मंदिर का संबंध

दुल्हिन बाजार (वेद प्रकाश)। पटना के दुल्हिन बाजार प्रखंड के उलार गांव में स्थित भक्ति व आस्था का ऐतिहासिक केंद्र ओलार्क सूर्य मंदिर का संबंध द्वापर युग से बतलाया जाता है। यहां पहुंचने के लिए दुल्हिन बाजार व पालीगंज के बीचोबीच रकसिया गांव के पास पाली-पटना मुख्य मार्ग से एक पक्की सड़क जाती है। वहीं रकसिया गांव के पास से मात्र 500 मीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर सूर्य उपासकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर में दो प्रवेश द्वार पूरब व पश्चिम दिशा की ओर है। पश्चिमी द्वार पर एक चमत्कारी तालाब है। कहा जाता है कि तालाब में स्नान करनेवालों को कुष्ठ व चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है।
धार्मिक मान्यताएं
हिन्दुओं के प्रसिद्ध धर्मग्रंथ शाम्ब पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जाम्बन्ति पुत्र राजा शाम्ब सुंदर स्त्रियों व युवतियों के साथ सरोवर में स्नान कर रहे थे। उसी समय महर्षि गर्ग सरोवर के नजदीक वाले रास्ते से कही जा रहे थे, जिन्हें देखने के बावजूद भी राजा शाम्ब ने उनकी न तो अभिवादन किया बल्कि युवतियों से अलग तक नहीं हटे। वहीं राजा शाम्ब ने महर्षि का उपहास किया, जिससे क्रोधित होकर महर्षि गर्ग ने राजा शाम्ब को कुष्ठ रोगी होने का श्राप दे दिया। जानकारी पाकर भगवान श्रीकृष्ण को बहुत दुख हुआ। उन्होंने राजा शाम्ब को इस श्राप से मुक्ति के लिए शाकद्वीप से बैद्य व सूर्य उपासक ब्राह्मणों को बुलाकर उपचार व भगवान सूर्य की उपासना करवाया। वहीं जिन नदियों व तालाबों के किनारे की मिट्टी व जल में गंधक की मौजूदगी पायी गयी, वहां यज्ञ का आयोजन करवाकर अर्क स्थल के रूप में प्रतिष्ठापित किया। जिसमें बारह अर्क स्थल शामिल हैं। जैसे उलार के ओलार्क, उड़ीसा के कोणार्क, देव के देवार्क, पंडारक के पुण्यार्क, ओंगारी के औंगार्क, काशी के लोलार्क, कन्दाहा सहरसा के मार्केण्डेयार्क, उत्तराखंड कटारमल के कटलार्क, बड़गांव के बालार्क, चंद्रभागा नदी किनारे चानार्क, पंजाब के चिनाव नदी किनारे आदित्यार्क व गुजरात के पुष्पावती नदी किनारे मोढेरार्क, तब से आज तक हिन्दू धर्म को माननेवाले लोग इन स्थलों पर पूजा अर्चना कर रोगों व व्याधियों से मुक्ति पा रहे हैं।


इतिहास
भारतीय इतिहास के अनुसार मुगल शासक औरंगजेब ने इस स्थान पर बने मंदिर को तोड़वा दिया था, पर भक्तगण जीर्ण-शीर्ण मंदिर के ऊपर लगे पीपल के पेड़ व जंगलरूपी स्थान में भगवान सूर्य की प्रतिमा की पूजा करते रहे। अचानक 1948 में पहुंचे संत सद्गुरू अलबेला बाबाजी महाराज ने कठिया बाबा के बगीचा में रहनेवाले एक संत नारायण दास उर्फ सुखलु दास के आग्रह पर पीपल के पेड़ की पूजा अर्चना किये, जिसके प्रभाव से पीपल का पेड़ सुख गया। उसके बाद अलबेला जी महाराज ने स्थानीय लोगों व भक्तों के सहयोग से इस स्थान पर सूर्य मंदिर का निर्माण कराया। लोगों का मानना है कि मंदिर के पास बने चमत्कारी सरोवर में स्नान करने से थकावट दूर हो जाती है व चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है। इसके जल व आसपास के मिटटी की जांच के उपरांत गंधक की मौजूदगी पायी गयी है।
स्थिति
वहीं मंदिर के महंत व पुजारी अवध बिहारी दासजी महाराज ने बताया कि प्रत्येक रविवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां आकर सरोवर में स्नान कर मंदिर में स्थापित भगवान सूर्य को दूध से अभिषेक कराते हैं। उन्होंने बताया कि छठ पूजा के अवसर पर राज्य व देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये श्रद्धालुओं की भीड़ से मंदिर परिसर मानव जमघट में तब्दील हो जाती है। श्रद्धालुओं व व्रतियों की सुविधाओं के लिये पूर्व में मंदिर पूजा कमिटी की ओर से ही सभी व्यवस्था की जाती थी लेकिन वर्ष 2016 में छठ पूजा की व्यवस्था का जायजा लेने पहुंचे पटना जिला विकास आयुक्त अमरेंद्र कुमार ने बिहार सरकार की ओर से पांच लाख की राशि उपलब्ध कराई थी, तब से कार्तिक छठ के अवसर पर आयोजित होनेवाली उलार महोत्सव को संचालन के लिए सरकार की ओर से भी आर्थिक सहयोग किया जा रहा है। साथ ही इस मंदिर को राष्ट्रीय पंचांग से भी जोड़ दिया गया है। वहीं इस वर्ष भी सरकार की ओर से मदद मिलने की उम्मीद की जा रही है।


पूजा की तैयारियां
तैयारी के संबंध में पालीगंज एसडीओ मुकेश कुमार ने बताया कि मंदिर परिसर में स्थित तालाब में चारों ओर बेरिकेटिंग सहित एसडीआरएफ के जवान तैनात होंगे, साथ ही व्रतियों की सुरक्षा को लेकर सड़कों पर बेरिकेटिंग व पर्याप्त पुलिस बल के साथ कंट्रोल रूम की व्यवस्था होगी। पेयजल, शौचालय, लाइटिंग सहित अन्य सभी प्रकार की सुविधाओं की उचित प्रबंध होगी। जबकि कोरोना टीकाकरण का प्रमाण पत्र के साथ ही प्रवेश की अनुमति होगी। एक व्रति के साथ मात्र दो-तीन लोग ही मंदिर परिसर में प्रवेश कर पाएंगे।

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