गायब रहे तेजस्वी-तेजप्रताप समेत विपक्षी विधायक,’बड़ी लड़ाई’ हार गए अब्दुल बारी सिद्दीकी।
पटना।बिहार विधानसभा में आज की कार्यवाही में हुए एक हाई वोल्टेज ड्रामेबाजी से यह स्पष्ट हो गया कि बिहार में विपक्ष सिर्फ आराम फरमाने में विश्वास रखता है।अगर विपक्ष के सभी विधायक आज सदन में मौजूद होते तो नीतीश सरकार को आज बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ता।मगर आदत से लाचार विपक्षी विधायक सदन में उपस्थिति की अपनी महत्वपूर्ण दायित्वों को छोड़कर बाहर विचरण करते रहे।जिस कारण पूर्व नेता प्रतिपक्ष अब्दुल बारी सिद्दिकी को अपने ही प्रस्ताव के लिए अपने ही पक्ष के विधायकों के गैर हाजिरी हरण मुंह की नहीं खानी पड़ती। सबसे खास बात तो यह है कि नीतीश सरकार के बाद मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए रखने वाले राजद के दोनों राजकुमार तेजस्वी यादव तेज प्रताप यादव भी सदन में अनुपस्थित थे। मामला कुछ ऐसा था कि सदन में कार्यवाही के दौरान अब्दुल बारी सिद्धकी ने संकल्प प्रस्ताव लाया कि बिहार में विगत 5 वर्षों के दौरान बने सड़कों की गुणवत्ता की जांच केंद्रीय सतर्कता आयोग करें।सिद्दीकी के प्रस्ताव के अनुसार बिहार में बनी सड़कों में बड़ा प्राक्कलन घोटाला हुआ है।अतः इसकी जांच केंद्रीय सतर्कता आयोग से होनी चाहिए।सिद्धकी अपने प्रस्ताव पर अड़े रहे। सरकार के जवाब के बावजूद उन्होंने इस प्रस्ताव पर वोटिंग करवा दी।वोटिंग के दौरान सरकार के पक्ष में 69 तथा विपक्ष में 52 वोट गिरे।जिस कारण सिद्दीकी का प्रस्ताव खारिज हो गया। सदन में राजद तथा कांग्रेस के कई विधायक अनुपस्थित थे।जिस कारण विपक्ष को मुंह की खानी पड़ी।इस दौरान माले विधायकों का साथ अब्दुल बारी सिद्दीकी के प्रस्ताव को मिला। ज्ञातव्य हो कि विपक्ष बार-बार नीतीश सरकार पर भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर हमलावर होता रहा है।मगर आज जब जांच कराने के लिए सदन में शक्ति प्रदर्शन की आवश्यकता हुई तो नेता प्रतिपक्ष के साथ ही प्रतिपक्ष के आधे विधायक गायब रहे।सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार में विपक्ष की स्थिति क्या से क्या हो गई है?
उल्लेखनीय है कुछ ऐसा ही कार्यवाही के दौरान विपक्ष के कटौती प्रस्ताव पर सदन में मत विभाजन की स्थिति पैदा हो गई। ।मत विभाजन तो हुआ।मगर सत्ता पक्ष के समर्थन में जहां 85 मत गिरे,वहीं विपक्ष को मात्र 52 में संतोष करना पड़ा।सहकारिता विभाग की ओर यह कटौती प्रस्ताव राजद नेता व पूर्व वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी की ओर से लाया गया था। सरकार कटौती प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी। ऐसे में सदन के समक्ष मतदान के अलावा कोई रास्ता नहीं था।