महासप्तमी पर मनेर में बड़ी देवी मां का खुला पट, दर्शन करने को उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
पटना। राजधानी पटना के पास मनेर प्रखंड में नवरात्रि के महासप्तमी के अवसर पर बड़ी देवी मां का पट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए विधि-विधान के साथ खोला गया। जैसे ही पट खुला, श्रद्धालुओं की भारी भीड़ माता के दर्शन के लिए उमड़ पड़ी। मनेर में यह परंपरा 1930 से लगातार चली आ रही है, और हर साल नवरात्रि के दौरान बड़ी देवी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस आयोजन की खासियत यह है कि इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के लोग मिलकर पूजा का आयोजन करते हैं। यह आयोजन सांप्रदायिक सौहार्द और एकता का अद्वितीय उदाहरण है, जो मनेर की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है।
बड़ी देवी का ऐतिहासिक महत्व
मनेर प्रखंड मुख्यालय के बड़े चौराहा पर स्थित सरस्वती चंद्र पुस्तकालय के पास बड़ी देवी की प्रतिमा की स्थापना का इतिहास 94 साल पुराना है। इस परंपरा की शुरुआत 1930 में हुई थी, जब हिंदू और मुस्लिम समुदायों के लोगों ने मिलकर मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना की थी। यह आयोजन भारत की स्वतंत्रता से पहले का है, जब देश सांप्रदायिक एकता और सामाजिक समरसता के विचारों से प्रेरित था। मनेर नगर परिषद के अध्यक्ष विद्याधर विनोद ने बताया कि इस आयोजन की नींव हमारे पूर्वजों ने रखी थी, और तब से लेकर आज तक मनेर के लोग उसी रीति-रिवाज और परंपरा का पालन कर रहे हैं।
सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक
मनेर को हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है, और बड़ी देवी की पूजा इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। पिछले 94 वर्षों से यहां सभी धर्मों के लोग मिलकर बड़ी देवी की पूजा करते आ रहे हैं। इस आयोजन में न केवल हिंदू बल्कि मुस्लिम, सिख, ईसाई समुदाय के लोग भी पूरे श्रद्धा और आस्था के साथ भाग लेते हैं। यह पूजा आयोजन मनेर की सांस्कृतिक धरोहर और सौहार्दपूर्ण वातावरण का प्रतीक है, जिसे आज भी बड़ी श्रद्धा और समर्पण के साथ निभाया जा रहा है। मनेर शरीफ, जहां इस पूजा का आयोजन होता है, वैसे भी हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए जाना जाता है। यहां के लोग सदियों से धार्मिक भिन्नताओं को दरकिनार कर एकजुटता के साथ त्योहार मनाते आ रहे हैं। विद्याधर विनोद ने बताया कि यह परंपरा उनके पूर्वजों द्वारा स्थापित की गई थी, और आज की पीढ़ी इसे उसी उत्साह और समर्पण के साथ आगे बढ़ा रही है।
नवरात्रि और महासप्तमी का महत्त्व
नवरात्रि का सातवां दिन, जिसे महासप्तमी कहा जाता है, मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा का दिन होता है। इस दिन को शक्ति, साहस, और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है। मनेर में भी इस दिन का विशेष महत्त्व है, क्योंकि इस दिन बड़ी देवी का पट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोला जाता है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस दिन देवी के दर्शन से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। पट खुलने के साथ ही पूरा मनेर नगर भक्ति और श्रद्धा के रंग में डूब जाता है, और देवी मां के जयकारों से गूंज उठता है।
शांतिपूर्ण पूजा और आयोजन
मनेर में बड़ी देवी की पूजा और नवरात्रि का आयोजन हमेशा शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण तरीके से किया जाता है। हर साल की तरह इस साल भी महासप्तमी के दिन बड़ी देवी का पट विधिवत खोला गया, और श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। नगर परिषद अध्यक्ष विद्याधर विनोद ने बताया कि मनेर के लोग इस परंपरा को पूरी आस्था और समर्पण के साथ निभाते हैं। यहां न केवल धार्मिक एकता बल्कि सामाजिक एकजुटता का भी संदेश दिया जाता है। बड़ी देवी की पूजा का यह आयोजन धार्मिक आस्थाओं के साथ-साथ सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है। यहां हर धर्म और संप्रदाय के लोग मिलकर इस पर्व को मनाते हैं, और यही इस आयोजन की सबसे बड़ी विशेषता है। विद्याधर विनोद ने कहा कि मनेर वासी आगे भी इस परंपरा को बनाए रखेंगे और शांतिपूर्ण तरीके से नवरात्रि का आयोजन करते रहेंगे। मनेर में बड़ी देवी की पूजा और महासप्तमी का यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द और एकता का जीवंत उदाहरण भी है। पिछले 94 वर्षों से चल रहे इस आयोजन में हर धर्म और संप्रदाय के लोग मिलकर बड़ी देवी की पूजा करते आ रहे हैं। यह परंपरा मनेर की सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक समरसता को दर्शाती है, जिसे आज भी मनेर के लोग पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ निभा रहे हैं।