गया में अफीम की खेती पर नकेल कसने की तैयारी में प्रशासन, ड्रोन से निगरानी कर नष्ट होगी फसलें

गया। बिहार के गया जिले के कई गांव में अफीम की खेती होने की सूचना मिलने के बाद पुलिस की टीम द्वारा ड्रोन से इलाके में सर्वेक्षण कराया गया। इस संबंध में थाना प्रभारी ने बताया कि भलुआ पंचायत के डांग, फनगुनिया, सनख्वा, खैरा आदि इलाके में बड़े पैमाने पर अफीम की फसल लगाये जाने के चित्र मिले हैं। संबंधित इलाके में अभियान चलाकर फसलों को नष्ट किया जायेगा। बतादें कि भलुआ पंचायत का इलाका घोर नक्सलग्रस्त माना जाता है, जहां कई साल से अफीम की फसल लगायी जा रही है। इन इलाकों में सुरक्षाबलों की कम आवाजाही के कारण फसल लगायी जाती है और इनमें से अधिकतर फसल वन भूमि पर ही लगायी जाती है। संबंधित मुद्दे को लकर जिला प्रशासन के द्वारा ड्रोन से सर्वे कराया गया है। अफीम की खेती करने के लिए नारकोटिक्स विभाग से अनुमति लेनी होती है।

वही बिना अनुमति के इसकी खेती करने पर आपके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। अफीम की बुवाई के 100 से 115 दिनों के अंदर पौधे से फूल आने शुरू हो जाते हैं। इसके बाद फूलों से 15 से 20 दिनों में डोडा निकलना शुरू हो जाता है। बीजों में अनेक रासायनिक तत्व पाए जाते हैं। जोकि नशीले होते हैं। फसल की गुणवत्ता के अनुसार अफीम की कीमत 8,000 से 1,00,000 प्रति किलो तक होती है। अफीम के पौधे की लंबाई 3-4 फुट होती है। यह हरे रेशों और चिकने कांडवाला पौधा होता है। अफीम के पत्ते लम्बे, डंठल विहीन और गुड़हल के पत्तों जैसे होते हैं। वहीं इसके फूल सफ़ेद और नीले रंग और कटोरीनुमा होते हैं। जबकि अफीम का रंग काला होता है। इसका स्वाद बेहद कड़वा होता है। इसे हिंदी में अफीम, सस्कृत में अहिफेन, मराठी आफूा और अंग्रेजी ओपियुम और पोपी कहा जाता है।

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