पटना में गंगा घाटों के उफान से छठ को लेकर असमंजस बरकरार, विकल्प तलाशने में जुटा जिला प्रशासन

पटना। बिहार में गंगा नदी में उफान है। जलस्तर चार दिनों से लगातार बढ़ रहा है। जलस्तर में भारी वृद्धि से पटना के कई घाटों पर लबालब पानी है। इस वजह से इस बार गंगा की गोद से सूर्य को अर्घ्य पर असमंजस है। अगर जलस्तर वृद्धि का सिलसिला रहा तो 92 गंगा घाटों में से आधे पर भी छठ का आयोजन मुश्किल हो जाएगा। राज्य की अन्य नदियां गंडक, कोसी, घाघरा, कमला बलान की भी यह स्थिति है। गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण कलेक्ट्रेट, बांसघाट, महेंद्रू घाट समेत दो दर्जन छोटे-बड़े गंगा घाटों पर छठ पूजा पर संशय बना हुआ है। पानी ज्यादा रहने से गंगा घाटों पर बैरिकेडिंग के लिए समय कम बचेगा। वहीं गंगा किनारे तीन प्रमुख घाटों पर इस बार छठ पूजा मुश्किल दिख रह है। ये तीनों घाट कच्चे हैं। पानी मूल घाट से औसतन डेढ़ किमी दूर है। यहां लंबा स्ट्रेच बनता है लेकिन इस बार जलस्तर बढ़ने से लंबा स्ट्रेच बनना मुश्किल लग रहा है। दलदल से लंबा संपर्क पथ कम समय में बनाना संभव नहीं है। नगर आयुक्त अनिमेष कुमार पराशर ने बताया कि गंगा के जलस्तर पर नजर रखी जा रही है। पाटीपुल घाट से एलसीटी घाट तक निरीक्षण किया गया है। अभी घाटों की सफाई की जा रही है। जितनी भी तैयारी हो सकती है, की जा रही है। जलस्तर घटने के बाद तेजी से घाटों पर बैरिकेडिंग का काम शुरू होगा। जब जलस्तर घटना शुरू होगा, तब तेजी से होगा।
पटना 55 तालाबों व 22 पार्कों में छठ की तैयारी में जुटा प्रशासन
गंगा के बढ़े जलस्तर ने छठ महापर्व की तैयारियों की रफ्तार धीमी कर दी है। इस स्थिति में जिला प्रशासन और पटना नगर नगर प्रशासन ने अभी से वैकल्पिक छठ घाटों की तैयारी शुरू कर दी है। इसके तहत शहर के 55 तालाबों और 22 पार्कों में छठ हो सकती है। इसके अलावा निगम प्रशासन की ओर से मोहल्लों में सामूहिक छठ को प्रोत्साहन देने के लिए अस्थायी तालाब तैयार करने से लेकर उसमें गंगाजल डालने तक की निशुल्क व्यवस्था हो रही है। सुरक्षित गंगा घाटों पर भी होगी पुख्ता तैयारी जिलाधिकारी डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने कहा कि अभी 15 दिन बचे हैं। जलस्तर घटने की पूरी संभावना है। पक्के घाटों पर जलस्तर के हिसाब से जितना क्षेत्र सुरक्षित रहेगा, वहां बैरिकेडिंग कराकर छठ पूजा करायी जाएगी। जहां सुरक्षा की स्थिति नहीं होगी, उन घाटों को प्रतिबंधित किया जाएगा। सभी अंचलों में पार्कों और तालाबों में भी वैकल्पिक व्यवस्था की जा रही है।

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