PATNA : अर्धसैनिक बलों के सुरक्षा व्यवस्था के बीच आज निकलेंगे मोहर्रम के ताजिए
- इमाम हुसैन की शहादत इंसानियत को दिखाती रहेगी अमन कि राह
- रैपिड एक्शन फोर्स का फ्लैग मार्च , फुलवारी में 15 लाइसेंसी अखाड़ों को मिला परमिशन
पटना, फुलवारीशरीफ(अजीत)। मंगलवार को मुहर्रम की 10 वीं तारीख है। इस दिन को हजरत इमाम हुसैन की शहादत के रूप में याद करते है। अर्धसैनिक बलों की सुरक्षा में आज फुलवारी शरीफ और आसपास के तमाम इलाकों में मोहर्रम का अखाड़ा निकलेगा। फुलवारीशरीफ के कर्बला में आकर्षक ढंग से सजावट की गई है शहर के विभिन्न इलाकों से ताजिया का पहला यहां कर्बला इलाकों में होगा उसके स्वागत के लिए पूरी तैयारियां की गई है। हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में निकलने वाला मोहर्रम को लेकर फुलवारीशरीफ में एडिशनल SP मनीष कुमार सिन्हा के ऑफिस में शांति समिति की बैठक हुई। बैठक में निर्णय लिया गया की सभी प्रमुख चौक चौराहों और मोहल्लों में पर्याप्त संख्या में फोर्स की तैनाती रहेगी। हर इमामबाड़े के पास पुलिस टीम को तैनात किया गया है। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक जिन 15 लाइसेंसी हथियारों को परमिशन मिला है उनका ही अखाड़ा निकलेगा। प्रशासनिक अधिकारियों ने बताया कि जिन मोहल्लों के अखाड़े को लाइसेंस नहीं मिला है उनका अखाड़ा नहीं निकलने दिया जाएगा। वही सोशल मीडिया पर भी आसामाजिक गतिविधि में रहने वाले लोगों के खिलाफ प्रशासन की टेक्निकल सेल पैनी नजर बनाए रखेगी। वही मोहर्रम की पूर्व संध्या पर फुलवारीशरीफ थाना से रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों का फ्लैग मार्च निकाला गया। नगर परिषद फुलवारीशरीफ के तरफ से पर्याप्त संख्या में साफ-सफाई और बिजली की लाइटिंग की व्यवस्था की गई है। फुलवारी शरीफ मैं ईसापुर नया टोला कर्बला नोहँसा मिलकियाना लाल मियां की दरगाह खलील पुरा सबजपुरा मनसूर मोहल्ला सय्यददाना मोहल्ला महतवाना गुलिस्तान मोहल्ला खानकाह मोहल्ला चुनौती कुआं समेत संपतचक परसा बाजार जानीपुर अनीसाबाद पहाड़पुर चितकोहरा दमरीया के शहरी व ग्रामीण इलाकों में शहर के इमामबाड़ो में जहाँ हजरत इमाम हुसैन की याद में मातम की मजलिस सहित कई तरह के एहतेमाम किए जा रहे हैं। वहीं, ताजिया के अखाड़ों से मर्सिया की आवाजें गूंज रही हैं। हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के नवासे इमाम हुसैन की याद में कुरआनख्वानी और फातिहा का भी सिलसिला शुरू है
हक पर कुर्बान होने की मिसाल
एक तरफ सिर्फ 72 जांनिसार, दूसरी तरफ यजीद के लष्कर की तादाद हजारों में थी। इससे यह साबित हो जाता है कि हजरत हुसैन किसी तरह भी करबला के जंग को टालना चाहते थे, लेकिन कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था। दुनिया को यह सबक सिखाना था कि सच्चाई के लिए बड़ी से बड़ी ताकतों के सामने झुकना नहीं है और असत्य को हर हाल में अस्वीकार करना है, लेकिन यजीद और उसकी सेना ने 10वीं मुहर्रम को हजरत हुसैन और उनके सहयोगियों को घेरकर शहीद कर डाला। जब तक दुनिया में अत्याचार, अधर्म और असत्य रहेगा, तब तक हर साल मुहर्रम के माह में हजरत हुसैन की शहादत की प्रासंगिकता बरकरार रहेगी।