मेडिवर्सल हॉस्पिटल एवं डॉ. निशिकांत पर FIR दर्ज; कटघरे में मेडिवर्सल हॉस्पिटल, जदयू नेता संजय सिन्हा मौत प्रकरण

राजधनी। पटना के बहुचर्चित संजय सिन्हा मेडिवर्सल हॉस्पिटल प्रकरण में मेडिकल बोर्ड की जांच रिपोर्ट आने पर पटना के कंकड़बाग थाने में मामला दर्ज हुआ। जानकारी के अनुसार, संजय सिन्हा के भाई कुमार जयेश ने कंकड़बाग थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी है। बता दे की डॉक्टरों के इलाज के बाद जिंदगी पाने वाले मरीज उन्हें भगवान का दर्जा देते हैं। इसके ठीक उलट बिहार की राजधानी पटना में एक अस्पताल में चिकित्सकीय-हत्या’ का प्रकरण सामने आया है। इसे ‘हत्या’ कहने में इसलिए गुरेज नहीं कि विपरीत रिपोर्ट के बावजूद मेडिवर्सल हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने नासमझ कदम उठाया और एक जिंदगी का अंत हो गया। इसमें कोई शक नहीं कि अब चिकित्सा क्षेत्र में कॉरपोरेट की बढ़ती दखलअंदाजी से इस पेशे का व्यवसायीकरण हो गया है।
ऐसे लिखी मौत की पटकथा जो कि कल्पना से परे है। एक इंसान जो बेहतर जीवन जीना चाहता था। उसकी मौत की दर्दनाक पटकथा लिखी दी जाती है। बिहार जद(यू) के प्रदेश सचिव संजय सिन्हा भले-चंगे थे। उम्र महज 55 के आस-पास घुटने क दर्द से परेशान थे। चूंकि राजनीतिक, समाज सेवा क्षेत्र से जुड़े थे, इसलिए उन्होंने सोचा कि घुटने का प्रत्यारोपण करा लिया जाये। जिससे कि कार्य मे दर्द रुकावट न बने। अच्छे अस्पताल और विशेषज्ञ की तलाश गई। अच्छे अस्पताल और विशेषज्ञ में नाम आया मेडिवर्सल अस्पताल एवं डॉ. निशिकांत। जानकारी के अनुसार, 8 मार्च को उन्हें मेडिवर्सल हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। चिकित्सकों के सुझाव पर संबंधित कई जांच कराए गए। परिजनों को बताया गया कि 10 मार्च को इनका ऑपरेशन किया जाएगा। इसी बीच, एक रिपोर्ट आई जो हृदय परीक्षण से संबंधित थी।
रिपोर्ट के अनुसार, हर्दय सिर्फ 25 से 30 फीसदी ही काम कर रहा था। ऐसे व्यक्ति को सर्जरी के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। मगर डॉक्टरों को ऑपरेशन की जल्दी थी कही संजय सिन्हा या उनके परिजनों को ये बात मालूम हो जायेगी तो वो ऑपरेशन से मना कर देंगे ऐसे में हॉस्पिटल का नुकसान हो जायेगा। बिना कुछ सोचे समझे डॉक्टर निशिकांत ऑपरेशन कर देते है। संजय सिन्हा को ऑपरेशन थियेटर से निकालकर आईसीयू वेंटिलेटर में एडमिट कर दिया जाता है। डॉ. निशिकांत परिजनों को बताते है कि ऑपरेशन हो चुका है, सफल रहा है, लेकिन मरीज को दिल संबंधी कुछ परेशानी है, इसलिए आईसीयू वेंटिलेटर में रखा गया है। वो अब आप लोग समझ ले मैने अपना काम कर दिया है।
मगर होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था। पैरों पर खड़ा होने के लिए अस्पताल पहुंचे थे संजय सिन्हा, लेकिन अस्पताल से अर्थी पर लौटे। जिंदगी और मौत का फासला इतनी जल्दी सिकुड़ जाएगा, किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। वे जब तक आईसीयू में रहे, परिजनों को आंकड़ेबाजी में उलझाया जाता रहा। कभी पल्स रेट, तो कभी ब्लड प्रेशर और कभी हृदय की गति को लेकर भ्रामक आंकड़े मेडिवर्सल अस्पताल प्रबंधन की ओर से दिया जाता रहा। अंत में परिजनों को दुःखद जानकारी दी गई कि वह अब नहीं रहे।
सवाल जो समझ से परे है ?
क्या घुटने की सर्जरी उच्च हृदय जोखिम के साथ इतनी महत्वपूर्ण थी कि डॉक्टरों ने आगे बढ़ने का फैसला किया आखिर क्यों ?
परिवार और रोगी के साथ इस पर कभी चर्चा नहीं की गई। उन्होंने आपस में चर्चा की और निर्णय लिया आखिर क्यों ?
सवाल अभी बहुत है जिसकी जांच अभी पुलिस अभी कर रही है । पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार उनकी मृत्यु 24 घंटे पहले हो गई थी यानि कि 9 मार्च की मगर हॉस्पिटल ने 10 मार्च को संजय सिन्हा को मृत घोषित किया है । संजय सिन्हा की मौत की सच्चाई पर से पर्दा उठा सकती है।
सिन्हा परिवार का आरोप है कि मेडिवर्सल अस्पताल द्वारा मेडिकल बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत चिकित्सकीय सहमति पत्र पर अंकित हस्ताक्षर मृतक संजय सिन्हा का नहीं है एवं अन्य दस्तावेज भी बदल दिये गये है, जिससे कि उक्त अस्पताल की लापरवाही साबित न हो सके।
भाई जयेश ने कहा है कि वो सभी बातों को सबूतों के साथ कोर्ट में देगें।

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