December 7, 2025

पटना में जानवरों में फैली बीमारी, 12 से अधिक पशु बीमार, पशुपालकों में दहशत

पटना। बरसाती मौसम में जहां मनुष्यों के बीच वायरल संक्रमण बढ़ जाता है, वहीं पशुओं में भी कई बीमारियां फैलने लगती हैं। इसी कड़ी में पटना जिले के बिहटा इलाके के कई गांवों में लंपी जैसी स्किन डिजीज ने दस्तक दी है। अब तक दर्जनों पशु इस संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। खासकर गाय और बैल जैसे दुधारू पशुओं पर इसका असर ज्यादा दिख रहा है, जिससे पशुपालक काफी चिंतित हो गए हैं।
बीमारी के लक्षण और पहचान
पशुपालकों के अनुसार यह बीमारी अचानक ही पशुओं को अपनी गिरफ्त में ले लेती है। शुरुआत में पशुओं को तेज बुखार आता है और शरीर पर छोटे-छोटे दाने या गांठें बनने लगती हैं। धीरे-धीरे ये गांठें बड़े घाव का रूप ले लेती हैं और शरीर पर फैली कठोर सूजन दिखाई देने लगती है। कई पशुओं में पैरों में सूजन के कारण चलने-फिरने में दिक्कत होती है। दूध देने वाली गायों में दूध का उत्पादन बहुत कम हो जाता है। पशुपालक मुकेश कुमार सिंह ने बताया कि उनकी गिर नस्ल की गाय अचानक बीमार पड़ी और शरीर पर कई जगह बड़े-बड़े घाव बन गए। पशु चिकित्सकों ने जांच के बाद इसे लंपी जैसी स्किन डिजीज बताया।
बीमारी का कारण
डॉक्टरों के अनुसार यह बीमारी मुख्य रूप से एक वायरल संक्रमण है। इसका प्रसार मक्खी, मच्छर और अन्य कीटों के माध्यम से होता है। बारिश के मौसम में नमी और गंदगी की वजह से कीट-पतंगों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे संक्रमण तेजी से फैलने लगता है। यह बीमारी एक पशु से दूसरे पशु तक भी फैल सकती है। इसलिए इसे रोकने के लिए संक्रमित पशु को अलग रखना और आसपास के वातावरण को साफ रखना बेहद जरूरी है।
प्रभावित गांव और संख्या
बिहटा के आसपास कई गांव इस बीमारी की चपेट में आ गए हैं। कटेसर राघोपुर, श्रीचंदपुर और आनंदपुर जैसे गांवों से अब तक दर्जनों मवेशियों के बीमार होने की सूचना मिली है। आधिकारिक जानकारी के अनुसार अब तक लगभग 33 पशु संक्रमित पाए गए हैं, जबकि शुरुआती खबरों में 12 पशुओं की स्थिति गंभीर बताई गई थी। लगातार नए मामले सामने आने से पशुपालकों की चिंता और बढ़ गई है।
आर्थिक नुकसान और दहशत
इस बीमारी का सबसे ज्यादा असर पशुपालकों की आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है। गाय और भैंस जैसे पशु ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं। दूध उत्पादन में भारी कमी आने से परिवारों की आमदनी घट रही है। साथ ही बीमार पशुओं की देखभाल और दवा पर अतिरिक्त खर्च बढ़ रहा है। पशुपालकों को डर है कि अगर बीमारी ने और ज्यादा फैलाव किया तो उनके कई पशु मर भी सकते हैं। यही कारण है कि प्रभावित गांवों में दहशत और बेचैनी का माहौल है।
प्रशासन और चिकित्सा विभाग की भूमिका
बिहटा के पशु चिकित्सा पदाधिकारी ने बताया कि पशु चिकित्सा टीम लगातार प्रभावित इलाकों का दौरा कर रही है। बीमार पशुओं की पहचान करके लक्षणों के आधार पर उनका इलाज किया जा रहा है। साथ ही दवाएं भी उपलब्ध कराई जा रही हैं। पशुपालकों को सख्त हिदायत दी गई है कि बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें और पशुशाला की नियमित सफाई करते रहें।
सावधानियां और बचाव
इस बीमारी से निपटने के लिए पशुपालकों को कुछ जरूरी सावधानियां बरतनी होंगी। सबसे पहले बीमार पशु को आइसोलेट करना जरूरी है ताकि संक्रमण आगे न फैले। मवेशियों को साफ पानी पिलाना और पौष्टिक आहार देना भी उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। कीट-पतंगों से बचाव के लिए नियमित रूप से कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए। पटना के ग्रामीण इलाकों में फैली यह स्किन डिजीज पशुपालकों के लिए एक गंभीर चुनौती बनकर सामने आई है। यह सिर्फ पशुओं की सेहत का सवाल नहीं है, बल्कि सीधे-सीधे किसानों और ग्रामीण परिवारों की आर्थिक सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है। इसलिए प्रशासनिक स्तर पर तेजी से कदम उठाने और ग्रामीणों को जागरूक करने की जरूरत है। समय पर इलाज और उचित सावधानियों से इस बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है और पशुपालकों को बड़े नुकसान से बचाया जा सकता है।

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