165 साल बाद आश्विन में लगा मलमास, एक माह तक नहीं होंगे शुभ कार्य

18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक रहेगा मलमास, दुर्गा पूजा 17 अक्टूबर से


पटना। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक तीन वर्ष में एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है, जिसे अधिकमास, मलमास या पुरूषोत्तम मास की संज्ञा दी गई है। हिंदू धर्म में इस माह का विशेष महत्व है। हिंदू धर्मपरायण के मानने वाले लोग इस पूरे मास में पूजा-पाठ, भगवद् भक्ति, व्रत-उपवास, जप और योग आदि धार्मिक कार्य करते हैं। इस वर्ष मलमास के कारण 165 साल बाद दो आश्विन मास होंगे। मलमास 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक रहेगा। प्रत्येक 32 महीने और 16 दिन के बाद मलमास पड़ता है। सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में जाने पर संक्रांति होती है। सौर मास में 12 और राशियां भी 12 होती है, पर जब दोनों पक्षों में संक्रांति नहीं होती है तब अधिकमास या मलमास होता है।
सूर्य वर्ष व चंद्र वर्ष के बीच का संतुलन है मलमास
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा शास्त्री ने वशिष्ठ सिद्धांत के हवाले से बताया कि भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है। इसका आगमन सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।
पुरुषोत्तम मास विष्णु पूजन फलदायी
ज्योतिषी झा के मुताबिक मलमास में भगवान विष्णु का पूजन, ग्रह शांति, दान-पुण्य, तीर्थ यात्रा, विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। विष्णु पूजन करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास में यज्ञ-हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। धार्मिक मान्यता है कि अधिकमास में किये गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किये गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है।
मलमास में शुभ मांगलिक कार्य वर्जित
हिंदू धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र कर्म वर्जित हैं। माना जाता है कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है। इसीलिए इस मास में हिंदू धर्म के विशिष्ट संस्कार नामकरण, मुंडन,यज्ञोपवीत, विवाह, गृहप्रवेश, व्यापार का शुभारंभ, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी नहीं होती हैं।
अधिकमास के स्वामी भगवान विष्णु
पंडित झा ने बताया कि अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते हैं। पुरूषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसीलिए इस मास को पुरूषोत्तम मास भी कहा जाता है। ऋषि-मुनियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार नहीं हुए। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने उपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मलमास के साथ पुरूषोत्तम मास भी बन गया।

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