हवन, पुष्पांजलि व कन्या पूजन के साथ कल होगा नवरात्र का समापन, कन्या में साक्षात भगवती का वास

रवियोग में महानवमी कल


पटना। शारदीय नवरात्र के आठवें दिन शनिवार को सर्वार्थ सिद्धि योग में देवी अष्टम स्वरूप में माता महागौरी की पूजा तथा भगवती की विधिवत श्रृंगार पूजा, कमल पुष्प, अपराजित का फूल तथा नाना प्रकार के भोग अर्पण कर श्रद्धालुओं ने सर्वसिद्धि प्राप्ति की कामना किए। वहीं रविवार को रवियोग में नवदुर्गा के अंतिम स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा कर नौ दिनों से चली आ रही सप्तशती, रामचरित मानस आदि धर्म ग्रंथ का पाठ कर समापन करेंगे। हवन, तर्पण, मार्जन के बाद पुष्पांजलि कर माता के भक्त देवी स्वरूपा कुंवारी कन्याओं का पूजन कर प्रसाद ग्रहण करेंगे। उपवास करने वाले श्रद्धालु कल ही पारण करेंगे और विजयादशमी को देवी की विदाई कर जयंती धारण करेंगे।
पूजन से सर्वसिद्धि की होगी प्राप्ति
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य ज्योतिर्विद आचार्य राकेश झा ने देवी पुराण के हवाले से बताया कि जगत जननी के नौ रूपों में सबसे अंतिम देवी माता सिद्धिदात्री की उपासना करने से सर्वसिद्धि की प्राप्त होती हैं। इनकी साधना करने से लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति होती है। भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री देवी की कृपा से तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। देवी का स्मरण, ध्यान, पूजन से माता के भक्तों को सांसारिक असारता का बोध तथा अमृत पद की प्राप्ति होती हैं।
कन्या में साक्षात भगवती का वास
ज्योतिषी झा ने भगवती पुराण के हवाले से बताया कि नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नवरात्र में छोटी कन्याओं में माता का स्वरूप बताया जाता है। तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं। छल और कपट से दूर ये कन्याएं पवित्र बताई जाती हैं और कहा जाता है कि जब नवरात्र में माता पृथ्वी लोक पर आती हैं तो सबसे पहले कन्याओं में ही विराजित होती हैं। भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देनी चाहिए। इस प्रकार महामाया भगवती प्रसन्न होकर मनोरथ पूर्ण करती हैं।


कन्या पूजन से मनोकामना पूर्ति
पंडित झा के अनुसार, एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो कन्या की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन कन्याओं की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छ: की पूजा से सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ कन्याओं की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में दो साल की कन्या कुमारी, तीन साल की त्रिमूर्ति, चार साल की कल्याणी, पांच साल की रोहिणी, छ: साल की कालिका, सात साल की चंडिका, आठ साल की शांभवी, नौ साल की दुर्गा और दस साल की कन्या सुभद्रा मानी जाती हैं।
राशि के अनुसार करें मां की आराधना
मेष : रक्त चंदन, लाल पुष्प और सफेद मिष्ठान्न अर्पण करें।
वृष : पंचमेवा, सुपाड़ी, सफेद चंदन, पुष्प चढ़ाएं।
मिथुन : केला, पुष्प, धूप से पूजा करें।
कर्क : बताशा, चावल, दही का अर्पण करें।
सिंह : तांबे के पात्र में रोली, चंदन, केसर, कर्पूर के साथ आरती करें।
कन्या : फल, पान पत्ता, गंगाजल मां को अर्पित करें।
तुला : दूध, चावल, चुनरी चढ़ाएं और घी के दीपक से आरती करें।
वृश्चिक : लाल फूल, गुड़, चावल और चंदन के साथ पूजा करें।
धनु : हल्दी, केसर, तिल का तेल, पीत पुष्प अर्पित करें।
मकर : सरसों तेल का दीया, पुष्प, चावल, कुमकुम और हलवा मां को अर्पण करें।
कुंभ : पुष्प, कुमकुम, तेल का दीपक और फल अर्पित करें।
मीन : हल्दी, चावल, पीले फूल और केले के साथ पूजन करें।

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