भाजपा अध्यक्ष के सवाल पर कांग्रेस ने दिया जवाब, कहा- सस्ती लोकप्रियता पाने की बचकानी कोशिश में अपना बौद्धिक स्तर जगजाहिर कर दिया

पटना। बिहार भाजपा के अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने कांग्रेस से यह पूछा कि कांग्रेस यह बताए कि कृषि कानूनों में कमियां क्या हैं। इस पर बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने डॉ. संजय जायसवाल के सवाल पर तल्ख टिप्पणी करते हुए जवाब में कहा है कि अखबारों के जरिए सस्ती लोकप्रियता पाने की इस बचकानी कोशिश में उन्होंने अपना बौद्धिक स्तर जगजाहिर कर दिया। डॉ. जयसवाल का बौद्धिक स्तर अगर यह है तो निश्चित तौर पर उनकी शैक्षणिक योग्यता की जांच होनी चाहिए। कांग्रेस ने लगातार किसान विरोधी इन तीनों कानूनों की पूरी जानकारी देश के सामने रखी है। असित नाथ ने कहा कि इतना ही नहीं, कांग्रेस ने खेती का खून तीन काले कानून नाम की पुस्तिका भी लोगों तक पहुंचाई है। भाजपा के कई प्रवक्ताओं ने उस पुस्तिका के आधार पर अपने बयान भी जारी किए। बावजूद इसके अगर डॉ. जायसवाल अब तक इससे अनभिज्ञ हैं तो फिर उनकी बौद्धिक क्षमता तरस खाने के लायक है।
असित नाथ ने तीनों कृषि कानूनों के बारे में विस्तृत रूप से बताते हुए अंत में कहा कि मुझे डॉ. संजय जयसवाल के इस सवाल पर ही आश्चर्य हो रहा है। वो काफी पढ़े-लिखे परिवार से आते हैं। उनके पास भी डॉक्टरी की ऊंची डिग्री है। बावजूद इसके उनका ऐसा बौद्धिक स्तर होना तकलीफदेह है। यह सिर्फ मेरे लिए ही तकलीफदेह नहीं है, वरन बेतिया में रहने वाले उच्च शिक्षित उनके परिवार के लोगों को भी उनकी बौद्धिक बदहाली से तकलीफ हुई होगी।
तीनों कृषि कानूनों के बारे में बताया
कृषि विरोधी तीनों कानूनों में एक संशोधन कानून है। आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया है। इस कानून की धारा 3 की उपधारा 1 में अतिरिक्त उपधारा 1अ जोड़कर अनाज, दाल, आलू, प्याज और तेलहन को असीमित समय तक गोदामों में रखने की छूट दे दी गई है। अब डॉ. जायसवाल यह बताएं कि पूंजीपतियों के गोदाम में तेलहन और दलहन बंद हो गए तो क्या आम आदमी हजार रुपए लीटर सरसों तेल और 1200 रुपए किलो दाल खरीदने की क्षमता रखता है। इसी कानून में यह भी कहा गया है कि कीमतों में 50 फीसदी या सौ फीसदी की बढ़ोतरी होने पर भी प्रोसेसर या वैल्यू चैन पार्टिसिपेंट पर जमाखोरी के आरोप नहीं लगाए जा सकेंगे और ऐसा करना उनकी मानहानि मानी जाएगी। अब यह भी डॉ. जायसवाल को अगर ये किसानों के पक्ष में लगता है तो फिर उनकी बौद्धिक क्षमता को सलाम है।
अब दूसरे कानून की चर्चा। व्यापार एवं वाणिज्य कानून 2020। यह पूरी तरह से नया कानून है। इस कानून के तहत फसल की कीमत बाजार से तय होगी और बाजार पर एमएसपी के प्रावधान लागू नहीं होंगे। इस कानून की धारा 2 एम में ट्रेड एरिया को परिभाषित किया गया है। इस कानून की धारा 6 के मुताबिक इस ट्रेड एरिया को मार्केट फीस, सेस और लेवी से छूट दी गई है जबकि सरकारी क्रय केंद्रों पर टैक्स पहले की तरह लागू होंगे। वाह जयसवाल जी वाह! इतनी भी बात आप नहीं समझ पाए कि कॉरपोरेट के बाजार पर कोई टैक्स नहीं लेकिन सरकारी क्रय केंद्रों से पूरा टैक्स वसूले जाने के प्रावधान के पीछे सरकार की मंशा क्या है। ये आपको किसान विरोधी नहीं लगता है? ये आपको बाजार की गुलामी नहीं दिखती? कमाल की बौद्धिक क्षमता है आपकी! इसी कानून के चैप्टर 3 की धारा 8 में यह साफ लिखा गया है कि विवाद होने की स्थिति में इसे न्यायालय तक नहीं ले जाया जा सकेगा। भाई जयसवाल जी, एक बात बताइए, जब इतना ही अच्छा आप लोगों ने कानून बना दिया है तो फिर इसकी न्यायिक परिभाषा से इतना डर क्यों रहे हैं आप लोग। कोर्ट में जाने से आप लोगों का क्या बिगड़ जाएगा।
अब तीसरे कानून की बात। सरकार ने बड़े ही शातिराना तरीके से इस कानून को नाम दिया है किसान सशक्तिकरण एवं संरक्षण कानून। इसकी धारा 4 की उपधारा 4 में यह स्पष्ट है कि एग्रीमेंट के समय फसल की क्वालिटी, ग्रेड और स्तर कंपनी के प्रतिनिधि तय करेंगे और फसल की कटाई के समय अगर यह उनके अनुरूप नहीं हुआ तो कंपनी उपज नहीं खरीदने के लिए स्वतंत्र होगी। इसी कानून की धारा 7 की उपधारा 1 और 2 में यह कहा गया है कि इस कानून के तहत किए गए अनुबंध राज्य सरकारों के खरीद-फरोख्त कानून के दायरे से बाहर होंगे। क्या बात है! मतलब कारपोरेट, कानून पर शासन तो करेगा लेकिन किसानों के अधिकारों की रक्षा किसी कानून के तहत नहीं की जाएगी।

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