पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र व शुभ योग में देव शिल्पी विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को, मलमास भी इसी दिन से
पटना। जिसकी संपूर्ण सृष्टि और कर्म व्यापार है वह विश्वकर्मा हंै। संपूर्ण सृष्टि में जो भी कर्म सृजनात्मक है, जिन कर्मो से जीव का जीवन संचालित होता है, उन सभी के मूल में विश्वकर्मा विद्यमान हैं। ऐसे में भगवान विश्वकर्मा का पूजन जहां प्रत्येक व्यक्ति को प्राकृतिक उर्जा देता है, वहीं कामकाज में आनी वाली सारी अड़चनों को दूर करता है। यह पर्व प्रत्येक साल 17 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन व्यापारिक प्रतिष्ठान, कल-कारखानों में विधिवत पूजा की जाती है। इसी दिन निर्माण के देवता विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। विश्वकर्मा को देवशिल्पी यानी देवताओं के वास्तुकार के रूप में पूजा जाता है। विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यापार में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती है, साथ ही माता लक्ष्मी के आगमन के आसार में भी वृद्धि होती है।
विश्वकर्मा की पूजा से रोजी-रोजगार में उन्नति
ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा शास्त्री ने पंचांगों के हवाले से कहा कि 17 सितंबर (गुरुवार) को आश्विन कृष्ण अमावस्या को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र एवं शुभ योग के युग्म संयोग में भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना की जाएगी। इस बार पूजा के दिन ही पितृपक्षांत, पितृ विसर्जन, महालया के समापन के साथ एक मास का मलमास भी आरंभ हो जाएगा। इस योग में विश्वकर्मा भगवान की पूजा करने से रोजी-रोजगार, कारोबार, नौकरी-पेशा में उन्नति होती है। इसके साथ ही इस दिन भगवान शिव, विष्णु की आराधना तथा पितृ कर्म करने से इनकी विशेष अनुकंपा की प्राप्ति होगी।
निर्माण के देवता हैं भगवान विश्वकर्मा
ज्योतिषी पंडित झा ने कहा कि भगवान विश्वकर्मा ने सतयुग में स्वर्गलोक, त्रेता युग में लंका, द्वापर में द्वारिका और कलयुग में हस्तिनापुर की रचना किये हैं। यहां तक की सुदामापुरी का निर्माण भी उन्होंने ही किया। ऐसे में यह पूजा उन लोगों के ज्यादा महत्वपूर्ण है, जो कलाकार, बुनकर, शिल्पकार और व्यापारी हैं। इस दिन ज्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं। इस दिन भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के 7वें धर्मपुत्र के रूप में जन्म लिए थे।
अनुपम शिल्प में प्रणेता हैं विश्वकर्मा
ऋग्वेद के 10वें अध्याय के 121वें सूक्त के मुताबिक, भगवान विश्वकर्मा के द्वारा ही धरती, आकाश और जल की रचना हुए है। देव शिल्प ने ही देवताओं के घर, नगर, अस्त्र-शस्त्र आदि का निर्माण किया था, इसीलिए उन्हें देव बढ़ई भी कहा जाता है। भगवान विश्वकर्मा के शिल्प कौशल का ओडिशा का विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर अप्रतिम नमूना है। विष्णु पुराण के अनुसार जगन्नाथ मंदिर की अनुपम शिल्प रचना से प्रसन्न होकर भगवान नारायण उन्हें शिल्पावतार के रूप में सम्मानित किया था। पौराणिक कथा अनुसार, माता पार्वती की इच्छा पर भगवान शिव ने एक स्वर्ण महल के निर्माण की जिम्मेदारी विश्वकर्मा को ही दी थी। महल की पूजा के लिए भगवान शिव ने प्रकांड विद्वान रावण का बुलाया था, परंतु रावण महल को देख इतना मंत्रमुग्ध हुआ कि उसने दक्षिणा स्वरूप महल ही मांग लिया। भोलेनाथ ने रावण को महल दान में देकर कैलाश पर्वत चले गए। देवशिल्पी विश्वकर्मा ने पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगर, कौरव वंश के लिए हस्तिनापुर और भगवान कृष्ण के द्वारका का निर्माण भी किया।
विश्वकर्मा पूजा शुभ मुहूर्त
संक्रांति काल मुहूर्त : सुबह 09: 51 बजे से
अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 11:19 बजे से 12:08 बजे तक
गुली काल मुहूर्त : प्रात: 08:41 बजे से 10:12 बजे तक