चौंकाने वाला खुलासा : एएमआर के बढ़ते खतरे के साथ मछली पालन बना ‘टाइम बम’, सीसा और कैडमियम खतरनाक स्तर पर पाया गया

पटना। फेडरेशन आफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन आर्गेनाइजेशंस (एफआईएपीओ) और आल क्रिएचर्स ग्रेट एंड स्माल (एसीजीएस) की एक नई जांच में भारत में जलीय कृषि के बारे में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। मछली और झींगा के 100 प्रतिशत खेतों में सीसा और कैडमियम अपने खतरनाक स्तर पर पाया गया है। एंटीबायोटिक दवाओं और कीटनाशकों के अनियंत्रित उपयोग के कारण न केवल रोग बेकाबू हो रहे हैं, बल्कि मछलियों के स्वास्थ्य पर खतरा हो रहा है और एएमआर के बढ़ते खतरे के साथ मछली पालन एक टाइम बम है।
250 मछली और झींगा फार्म की जांच की
एफआईएपीओ और एसीजीएस ने देश में मछली पालन में 10 उच्चतम उत्पादक राज्यों में लगभग 250 मछली और झींगा फार्म की जांच की। इस जांच में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पांडिचेरी, गुजरात, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा में ताजे व खारे पानी के फार्म और बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और असम में मीठे पानी के खेत शामिल हंै। यह जांच इसलिए की गयी थी जिससे भारत में पशु कल्याण, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय खतरे के मानकों पर मछली और झींगा खेतों की स्थिति का मूल्यांकन किया जा सके।
100% मछली फार्म में पानी बाहर निकलता नहीं
बिहार में पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय और पटना जिलों में 20 मछली पालन के क्षेत्रों को शामिल किया गया था। मछली के 100% फार्म में सीसा और कैडमियम के जहर का स्तर 100 प्रतिशत था, जो सार्वजनिक क्षेत्र के स्वास्थ्य के खतरों पर बहुत ही खराब था (0.25/1)।
100% मछली फार्म में कही भी पानी बाहर निकलता नहीं है, इसका मतलब है कि गंदे पानी के कारण मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है। कई मछुआरों ने यह स्वीकार किया कि उन्हें हर साल फैलने वाली बीमारियों और बाढ़ के कारण काफी नुकसान होता है। सभी मछली फार्मों में बुनियादी रखरखाव की कमी थी और कूड़े थे और मछलियों के फार्म के पास खुले में शौच होता रहता है। सभी मछली फार्मों में आक्सीजन के खराब स्तर थे, जिसका अर्थ हुआ कि वह एक-एक सांस लेने के लिए परेशान हो रही थीं।
मछली की आबादी के साथ मनुष्यों को भी नुकसान
एफआईएपीओ की कार्यकारी निदेशक वर्दा मेहरोत्रा कहती हैं हमने इस बढ़ते क्षेत्र में चौंकाने वाली स्थितियां पाई हैं। मछलियों को बिना किसी कचरा प्रबंधन प्रक्रिया के गंदी बाड़ों में रखा जाता है। उन्हें जिंदा ही काट दिया जाता है। इन मछलियों के खेतों से दूषित पानी को ही स्थानीय जलस्रोतों और मुहल्लों में छोड़ा जाता है, जिसके कारण परजीवी बढ़ते हैं, जिससे मछली की आबादी के साथ-साथ मनुष्यों को भी नुकसान होता है।
यह बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता
एसीजीएस की प्रबंध न्यासी अंजली गोपालन का कहना है कि हम अपनी जीवनशैली और कामों में उन समस्याओं को समझना ही नहीं चाहते हैं, जो जलीय जीव महसूस करते हैं, क्योंकि वह मानव सभ्यता से बहुत दूर रहते हैं। देश के प्रशासन और राजनीतिक असंवेदनशीलता के कारण जलीय सफाई और मछलियों की सेहत के प्रति जनता एवं उद्योग की संवेदनशीलता का अभाव ही हमें दिखता है। यही कारण है कि निश्चित ही यह ऐसी सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है, जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए, ताकि हम एक जलीय आपदा से बच पाएं।
