फतुहा : कोरोना ने भगवान बावन को भी लिया लील, लगने वाला बारुणी मेला नहीं हुई आयोजित

फतुहा। कोरोना संकट ने पहली बार फतुहा के सदियों पुरानी ऐतिहासिक व पारंपरिक बारुणी मेला को लील लिया। गंगा, पुनपुन व नारायणी नदी के संगम पर भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले भगवान बावन के जन्म के उपलक्ष्य में भाद्रपद के द्वादशी तिथि को लगने वाला मेला पहली बार आयोजित नहीं हुई। सोशल डिस्टेंस व कोरोना की बढ़ते संक्रमण को लेकर प्रशासन ने मेला लगाने की इजाजत नहीं दी। इस कारण जहां त्रिवेणी संगम स्थित भगवान बावन के मंदिर में उनके अवतार दिन को भी पट बंद रहा, वहीं लगने वाला मेला स्थल गोविंदपुर में सन्नाटा पसरा रहा।
विदित हो कि इस मेला में कई तरह के झूले, मौत का कुआं, जादू घर के साथ-साथ कई तरह के दुकान व मनोरंजन केन्द्र लगाए जाते थे तथा यह मेला सात दिन तक चलती थी। लेकिन इस बार न तो मेले के जगह पर बांसुरी वाला दिखाई दिए और न ही रंग-बिरंगे बैलून बेचने वाले। मेला में अहम बात यह है कि हर बार हर तरह के पेड़-पौधे वाले भी अपनी दुकान लगा गाछ को बेचा करते थे, लेकिन इस बार नर्सरी लगाने वाले, पत्थर का सिलौट बेचने वाले भी नहीं आए।


बताते चलें कि भगवान बावन के अवतार दिन दूरदराज से लोग त्रिवेणी संगम पहुंचते थे, गंगा स्नान कर भगवान बावन के मंदिर में मत्था टेकते थे तथा इसके बाद मेला का आनंद उठा घर वापस हो जाते थे। लेकिन इस बार बिल्कुल सन्नाटा रहा। जयदेव की लिखी दशावतार स्तुति के अनुसार बताया जाता है कि भगवान विष्णु ने राजा बली को छलने व उसके बद्ध करने के लिए भाद्रपद के द्वादशी तिथि को पांचवा अवतार भगवान बावन के रुप में ग्रहण किया था। लोगों के अनुसार, भगवान बावन का अवतार इसी त्रिवेणी संगम पर हुआ था तथा तीन कदम जमीन मांगते हुए राजा बली का बद्ध किया था। लोगों की माने तो पुराणों में भी त्रिवेणी संगम पर भगवान बावन के अवतरण का चर्चा मिलता है। लेकिन बारुणी मेला कब से आयोजित हो रही है, इसमें लोगों के बीच विचार भिन्न हैं लेकिन वृद्ध लोगों की माने तो त्रिवेणी संगम पर भगवान बावन के अवतरण पर लगने वाला मेला सदियों से आयोजित होते आ रही है।

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