उत्तर भाद्रपद नक्षत्र में देवोत्थान एकादशी बुधवार को, शुरू होगा शुभ मांगलिक कार्य, जानिए आखिर सोते-जागते क्यों हैं भगवान विष्णु

पटना। बुधवार को कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान नारायण लगभग पांच माह के बाद उत्तरभाद्रपद नक्षत्र में निंद्रा से जागृत होंगे। कल श्रद्धालु प्रबोधनी-देवोत्थान एकादशी व तुलसी विवाह भी मनाएंगे। इसी के साथ चतुर्मास व्रत का भी समापन होगा। वहीं हिन्दू धर्मावलंबियों के शुभ मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाएंगे। धार्मिक मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान आषाढ़ शुक्ल हरिशयन एकादशी से चार मास लेकिन इस बार अधिक मास के कारण पांच महीने के लिए शयन करने चले गए और भादव शुक्ल एकादशी (करमा एकादशी) के दिन भगवान करवट लेते हैं जबकि प्रबोधनी या देवोत्थान एकादशी के दिन शयन से उठते हैं। इस दौरान श्रीहरि पाताल लोक में राजा बलि के यहां निवास करते हैं। चतुर्मास के देवता व संचालन कर्ता भगवान शिव होते हैं। चार मास के दौरान हिन्दुओं के सारे शुभ मांगलिक कार्य बंद रहे हैं।
कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा शास्त्री ने कहा कि आज सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश के उपरान्त कार्तिक शुक्ल देवोत्थान एकादशी को भगवान विष्णु अपनी योग-साधना से निवृत्त होकर लोकहित हेतु जागृत होंगे। इसके बाद से सभी शुभ मांगलिक कार्य शुरू हो जाएगा। एकादशी पर रवियोग का शुभ संयोग बन रहा है। इस चतुर्मास के दौरान शादी-ब्याह, जनेऊ, मुंडन आदि संस्कार नहीं होते हैं। पंडित झा ने नारद पुराण के हवाले से बताया कि आज एकादशी के दिन गोधूलि वेला में शंख, डमरू, मृदंग, झाल और घंटी बजाकर भगवान नारायण को निद्रा से जगाया जायेगा।
जन्म-मृत्यु चक्र से मिलेगी मुक्ति
पंडित झा ने बताया कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति के लिए एकादशी का व्रत किया जाता है। पदम पुराण के हवाले से एकादशी महात्म्य के अनुसार उन्होंने कहा कि देवोत्थान एकादशी व्रत का फल एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के समान होता है। एकादशी तिथि का उपवास बुद्धिमान, शांति प्रदाता व संततिदायक है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान व भगवान विष्णु के पूजन का विशेष महत्त्व है। इस व्रत को करने से जन्म-जन्मांतर के पाप क्षीण हो जाते हैं तथा जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
आखिर सोते-जागते क्यों हैं भगवान विष्णु
आचार्य झा ने धर्मशास्त्रों के हवाले से बताया कि एक बार भगवान विष्णु से उनकी प्रिया लक्ष्मी जी ने आग्रह भाव में कहा-हे प्रभु! आप दिन-रात जागते हैं लेकिन, जब आप सोते हैं तो फिर कई वर्षों के लिए सो जाते हैं। ऐसे में समस्त प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाता है। इसलिए आप नियम से ही विश्राम किया कीजिए। आपके ऐसा करने से मुझे भी कुछ समय आराम मिलेगा। लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले-‘देवी’! तुमने उचित कहा है। मेरे जागने से सभी देवों और खासकर तुम्हें मेरी सेवा में रहने के कारण विश्राम नहीं मिलता है, इसलिए आज से मैं हर वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और योगनिद्रा कहलाएगी, जो मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी रहेगी। इस दौरान जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर तुम्हारे सहित सदैव निवास करूंगा।
तुलसी-शालिग्राम विवाह से मिलेगा सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद
ज्योतिषी झा ने कहा कि कार्तिक में स्नान करने वाले श्रद्धालु एकादशी को भगवान विष्णु के रूप शालीग्राम एवं विष्णुप्रिया तुलसी का विवाह संपन्न करते हैं। पूर्ण रीति-रिवाज से तुलसी वृक्ष से शालीग्राम के फेरे एक सुंदर मंडप के नीचे किए जाते हैं। विवाह में कई गीत, भजन व तुलसी नामाष्टक सहित विष्णुसहस्त्रनाम के पाठ करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार तुलसी-शालिग्राम विवाह कराने से पुण्य की प्राप्ति होती है तथा दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है। कार्तिक मास में तुलसी रुपी दान से बढ़कर कोई दान नहीं हैं। पृथ्वी लोक में देवी तुलसी आठ नामों वृंदावनी, वृंदा, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नंदिनी, कृष्णजीवनी और तुलसी नाम से प्रसिद्ध हुईं हैं। श्री हरि के भोग में तुलसी दल का होना अनिवार्य है, भगवान की माला और चरणों में तुलसी चढ़ाई जाती है।
अकाल मृत्यु से रक्षा व निरोगता के लिए चरणामृत ग्रहण
पंडित झा के अनुसार बुधवार को भगवान श्री हरि के पूजा उपरांत श्रद्धालु को सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए प्रभु का चरणामृत ग्रहण करना चाहिए। मान्यता है कि चरणामृत सभी रोगों का नाश कर अकाल मृत्यु से रक्षा करता है, सभी कष्टों का निवारण करता है। देवोत्थनी एकादशी के दिन विष्णु स्तुति, शालीग्राम व तुलसी महिमा का पाठ करना चाहिए। विष्णु पुराण के अनुसार, देवोत्थान एकादशी को भगवान विष्णु का अभिनंदन करते हैं, वे समस्त दुखों से मुक्त होकर जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं।

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