अभिव्यक्ति की आजादी पर सेंसरशिप न थोपे बिहार सरकार : राजेश राठौड़

पटना। सोशल मीडिया पर सरकार द्वारा जारी किए गए नए सेंसरशिप ने आम जनता पर नाहक सेंसरशिप का दबाव डाला है। सरकार पहले विपक्ष को चुप कराने के लिए तरह-तरह के हथकंडे आजमाई और अब आम जनता को भी वाजिब मुद्दों पर मौन करने की तैयारी में है। उक्त बातें प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता राजेश राठौड़ ने कही।
उन्होंने सोशल मीडिया पर बिहार सरकार के मंत्रियों-अधिकारियों पर टिप्पणी को लेकर राज्य सरकार के ईओयू द्वारा जारी सर्कुलर को राज्य के आम जनमानस को गुलाम समझने वाली प्रवृत्ति का परिचायक बताया। उन्होंने कहा कि नीतीश राज में ब्यूरोक्रेसी बेलगाम हो गई है। जब आम जनता शोषण तथा उत्पीड़न से त्रस्त आकर सोशल मीडिया पर अपनी पीड़ा का इजहार कर रही है तो नाराज होकर नीतीश कुमार के सहमति से बड़े अधिकारियों के दबाव में ईओयू के द्वारा इस प्रकार का सर्कुलर जारी किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की आम आवाम बेहद बदहाली तथा पीड़ा के दौर से गुजर रही है। ऐसे में प्रदेश की आम जनता सोशल मीडिया पर अपने दर्द का उल्लेख करती है। बिहार की नीतीश सरकार चाहती है कि जनता अपने दर्द पर आह भरना भी छोड़ दें। उन्होंने कहा कि प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा लालफीताशाही के खिलाफ आम जनमानस की आवाज को कुचलने के लिए नीतीश सरकार के द्वारा यह फैसला लिया गया है। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि जनता राज्य सरकार के इस तुगलकी फरमान को कतई नहीं मानने वाली है। उन्होंने कहा कि नीतीश सरकार में सरकारी जुल्म के शिकार आम जनमानस सिर्फ जेल जाने के डर से चुप नहीं बैठने वाला है। ईओयू का काम आर्थिक अपराध से जुड़े मसले को जड़ से समाप्त करना है। जहां तक साइबर क्राइम का सवाल है, प्रदेश में साइबर क्राइम जमकर बढ़ रहे हैं लेकिन उसके खिलाफ बिहार पुलिस के पास कोई रणनीति नहीं है। साइबर क्राइम के शिकार लोग दिन-रात थानों का चक्कर लगाते रहते हैं। मगर उन्हें इंसाफ नहीं मिलता। अब सोशल मीडिया पर अपनी पीड़ा का इजहार करने वाले को सरकार जरूर जेल भेजने का डर दिखा रही है।
राजेश राठौड़ ने कहा कि यह सीधे-सीधे नीतीश सरकार के द्वारा अभिव्यक्ति पर कुठाराघात है। सीएम नीतीश कुमार को यह याद रखना चाहिए कि विपक्ष में रहते हुए वे स्वयं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के जबरदस्त हिमायती थे और आज उनकी सरकार खुद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पूरी तरह से समाप्त करने पर तुली है। अधिकारियों और नेताओं के अकर्मण्यता के खिलाफ सोशल मीडिया एक मजबूत मंच है और उस पर बेवजह सेंसरशिप करके नीतीश सरकार जनता के संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रही है।

About Post Author

You may have missed