सर्वार्थ सिद्धि और रवियोग के युग्म संयोग में नम आखों से हुई माँ दुर्गा की विदाई

धर्म-आध्यात्म। शारदीय नवरात्र में लगातार आठ दिनों में नव दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा, उपासना के बाद आश्विन शुक्ल दशमी शुक्रवार को सर्वार्थ सिद्धि व रवियोग के युग्म संयोग में श्रद्धालुओं ने शस्त्र पूजा, जयंती धारण कर विजयादशमी का पर्व मनाया। इस दिन शुक्रवार दिन होने से देवी की विदाई गज पर हुई। देवी पुराण के अनुसार हाथी पर भगवती दुर्गा की विदाई होने से आगामी साल में उत्तम वृष्टि के आसार होते है। जो कृषि, पर्यावरण तथा आम जनमानस के लिए शुभ होता है। वही नवरात्र में व्रत रखने वाले तथा फलाहार करने वाले श्रद्धालुओं ने नम आखों से देवी की विदाई एवं पूजन अवशिष्ट विसर्जित करने के बाद पारण कर अपना व्रत पूर्ण किया। सभी पूजा पंडालों में स्थापित प्रतिमाओं का विसर्जन हुआ।

माता की भक्ति से मिलती हैं शक्ति

ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने बताया कि शारदीय नवरात्र में ज्यादातर माता के उपासक नौ दिनों तक फलाहार पर ही देवी की आराधना में लीन रहते है। वही कुछ भक्त दिन में फलाहार तथा रात्रिकाल में शुद्ध व सात्विक अन्न ग्रहण करते है। इसके बावजूद भी भागदौड़ भरी जिंदगी में परिवार का भरण-पोषण करने के लिए वे पूजा आराधना के बाद अपने कार्यों का बखूबी निष्पादन करने में लगे रहते है। उन्हें इतनी शक्ति, ऊर्जा माता की भक्ति से ही मिलती है। जगत जननी अपने सभी भक्तों का एक मां की भांति पूरा ध्यान रखती है। उन्ही के कृपा मात्र से यह महाअनुष्ठान पूर्ण हो पाता है।

विजयादशमी को शुभ कार्य का रहा उत्तम मुहूर्त

ज्योतिषी झा ने कहा चातुर्मास के कारण चार मास तक किसी भी प्रकार के शुभ कार्य वर्जित है। ऐसे में विजयादशमी के दिन एक ऐसा दिन होता है जिसमें दसों द्वार खुला होने से सभी तरह के शूभ कार्य करना उत्तम होता है। सिद्ध मुहूर्त होने के कारण इसमें कोई मुहूर्त या समय काल देखने की आवयश्कता नहीं है। शुक्रवार को भी भूमि पूजन, गृहप्रवेश, सगाई, नूतन व्यापर आरंभ, सत्यनारायण पूजा, वाहन की खरीदी हुई।

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