सोनपुर मेला अब बस थियेटरों के भरोसे?

सोनपुर। पहले हाथी, फिर चिड़िया और अब सभी जंगली जानवर पर प्रतिबंध तो फिर देश दुनिया से एशिया के प्रसिद्ध पशु मेला में क्या देखने आए सैलानी? गहरी साजिश तो नहीं विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेले का वजूद समाप्त करने का। देर शाम इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने सोनपुर मेले में पहुुंचा। थियेटर के कारण मेले में भीड है। बाहर के दुकानदार तीन दिन में ही निराश होकर कभी नहीं आने की उम्मीद के साथ वापस जाने की तैयारी में हैं। महज तीन चार विदेशी पर्यटक आए थे, वे भी जा चुके हैं।
साधु व हाथी के कारण पूरी दुनिया में प्रसिद्ध सोनपुर मेले का इतिहास बहुत पुराना है। राजा राजवाडों के समय डेढ माह तक यह मेला चलता था। मनोरंजन के लिए काबूल से ढाका तक के तवायफों के तंबू लगते थे। आजादी के बाद भी यह सिलसिला जारी रहा। नब्बे के दशक में मुजरा व नौटंकी की जगह थियेटर का आगमन मेले में हुआ। यही थियेटर अभी मेले का शान है। मेले मेंं तो वैसा कुछ रहा नहीं, बस लोग थिएटर का लुफ्त उठाने के लिए ही सोनपुर मेले का रुख कर रहे हैं। शहरी क्षेत्रों का फैलाव होने से इस मेले की सेहत पर कोई असर नहीं हुआ पर हाथी के खरीद बिक्री, चिडियों व अन्य जंगली जानवरों पर प्रतिबंध लग जाने के बाद मेले में आकर्षण थिएटर को लेकर ही है। जानकार हैरानी व्यक्त करते हैं कि सिर्फ पोस्टर को अश्लील बता जिला प्रशासन ने मेले में आए सभी नौ थिएटर का लाइसेंस पिछले साल रद्द कर दिया था। इस साल सशर्त अनुमति प्रदान की गई है। सभी थिएटरों के अंदर कैमरे से निगरानी की व्यवस्था है। उदास चेहरा लिए दर्जनों व्यापरियों ने बताया कि जब सब कुछ बंद हो गया तो अब पब्लिक क्यों आएगी। अब तो थियेटरों से ही थोड़ी बहुत आस लगी हुई है।

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