पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला को सुप्रीम कोर्ट से झटका, पुनर्विचार याचिका खारिज, उम्रकैद की सजा बरकरार

नई दिल्ली/पटना। बिहार के चर्चित बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड में दोषी करार दिए गए पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। देश की सर्वोच्च अदालत ने शुक्ला की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने अपने पहले के फैसले को बरकरार रखते हुए उनकी उम्रकैद की सजा को कायम रखा है। इस फैसले से शुक्ला की कानूनी उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा है। बता दें कि यह मामला वर्ष 1998 में तत्कालीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की दिनदहाड़े हत्या से जुड़ा है। उस समय प्रसाद इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में हुए कथित घोटाले को लेकर जांच के घेरे में थे और गिरफ्तार होने के बाद पटना के एक सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती थे। इलाज के दौरान, अस्पताल परिसर में ही टहलते समय उन पर हमला हुआ और उन्हें गोली मार दी गई, जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई। इस सनसनीखेज हत्या के मामले में बिहार के कई चर्चित बाहुबली नेताओं के नाम सामने आए। वर्ष 2009 में निचली अदालत ने इस मामले में पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, मुन्ना शुक्ला, मंटू तिवारी और अन्य छह लोगों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हालांकि 2014 में पटना हाईकोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। हाईकोर्ट के इस फैसले को बृजबिहारी प्रसाद की पत्नी रमा देवी और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद 4 अक्टूबर 2024 को अपना फैसला सुनाया, जिसमें मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा गया, जबकि सूरजभान सिंह और राजन तिवारी समेत अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुन्ना शुक्ला ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी, लेकिन अब सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि उसके पहले के निर्णय में कोई त्रुटि नहीं है और सजा यथावत रहेगी। अदालत ने पुनर्विचार याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए उसे खारिज कर दिया है। इस फैसले से जहां एक ओर शुक्ला की रिहाई की संभावनाएं खत्म हो गई हैं, वहीं दूसरी ओर बृजबिहारी प्रसाद के परिजनों को न्याय की उम्मीद की एक नई किरण नजर आई है। लंबे समय से चले आ रहे इस हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल एक बड़ा कानूनी संदेश देता है बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि संगीन आपराधिक मामलों में न्यायिक प्रक्रिया देर से सही, पर प्रभावी ढंग से अपना कार्य करती है।

 

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